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दलित साहित्य के संरक्षक डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर- मास्टर भोमाराम बोस
~ 85 वे जन्म दिवस पर विशेष ~
डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर जी का जन्म एक साधारण किसान-मजदूर परिवार में ग्राम मुखलेमपुर,दिल्ली में हुआ। बचपन से ही आप पढ़ाई के साथ साथ साहित्यिक क्षेत्र में विशेष रुचि रखते थे। आपकी माताजी श्रीमती रामकली व पिताजी श्री खेमचंद जी के साथ आप कृषि कार्यों में हाथ बंटाते हुए बी.ए. ऑनर्स (संस्कृत) किया। विवाहोपरांत आपकी पत्नी श्रीमती त्रिलोचन सुमनाक्षर ने आपके हर कार्य में सहयोग किया। डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर जी अखबार बेचने से लेकर दिल्ली नगर निगम में पार्षद,विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी रहे। आपने 02 अक्टूबर 1962 को हिमायती पाक्षिक समाचार पत्र का प्रकाशन कार्य प्रारंभ किया जो आज भी निरंतर जारी है।
हिमायती के माध्यम से आपने देश व दुनिया के सामने भारतीय समाज में दलितों, आदिवासियों, महिलाओं की दशा एवं दिशा पर लेखन कार्य करते हुए समाज में व्याप्त छुआछूत, भेदभाव, सामाजिक असमानता, दलित अत्याचार, बढ़ती महंगाई, नशा प्रवृत्ति, सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास, आरक्षण, आर्थिक असमानता पर निर्भीक होकर खुलकर लिखा। डॉ. सुमनाक्षर को यह अहसास हुआ कि जब तक समाज संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर,तथागत बुद्ध, सन्त कबीर, सन्त रविदास आदि महापुरुषों की विचारधारा पर अमल नहीं करेगा तब तक अनुसूचित जाति, जन जाति के लोगों का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है। आपका मानना है कि विचारों से ही क्रांति आती है और हमें अपने समाज के आम आदमी तक बहुजन समाज के महापुरुषों के संदेश जन जन तक पहुंचाने होंगे। इसी उद्देश्य को मध्यनजर रखते हुए भारत देश के प्रबुद्धजनों की दिल्ली में एक सभा तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एवं पूर्व स्वतंत्रता सेनानी बाबू जगजीवन राम जी की अध्यक्षता में एक सभा बुलाई। जिसमें सभी ने एकमत होकर यह तय किया कि अगर हमें स्वाभिमान के साथ जीवन जीना है तो हमें डॉ. आंबेडकर साहब व भगवान बुद्ध के बताए रास्ते पर चलना होगा। हमें अपना गौरवशाली इतिहास लिखना होगा। दिनांक 06 अप्रैल 1984 को दिल्ली में भारतीय दलित साहित्य अकादमी की स्थापना कर डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर जी को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान सौंपी गई। इस अकादमी का मूल उद्देश्य दलितों में स्वाभिमान की भावना जागृत करना तथा उनकी रचनाओं को मंच प्रदान करना था। 40 वर्षो के इस सफर में भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए देश व दुनिया में अपना झंडा बुलंद किया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ सुमनाक्षर जी के नैतृत्व में 39 राष्ट्रीय दलित साहित्य सम्मेलन, 02 अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन तथा 2100 से अधिक राज्य व जिला स्तरीय सम्मेलन व सेमिनार आयोजित कर गौरवशाली इतिहास बनाया है।
डॉ. सुमनाक्षर जी द्वारा रचित व काव्य संग्रह सिंधु घाटी बोल उठी सन 1990 में प्रकाशित हुई। करीब 40 कविताओं के संग्रह में कवि का असमानता के विरुद्ध विद्रोही तेवर साफ दिखाई देते हैं। उनके ह्रदय में दलितों के प्रति अथाह पीड़ा है। जिसके लिए वे समाज के शिक्षित, नौकरी पेशा, राजनेता, पत्रकार, साधु-संतों, बौद्ध भिक्षुओं, भद्र कवियों व इतिहासकारों को ललकार कर आह्वान करते हैं कि आप कभी दलित की झोपड़ी की तरफ भी झाँको, उनके दुःख दर्द को बयान करो। इस कविता संग्रह में कवि ने हिन्दू साधुओं व बौद्ध भिक्षुओं दोनों को एक ही श्रेणी में देखा है, वे लिखते हैं– केवल मन्दिर में घण्टे घड़ियाल, शंख बजाने से कुछ नहीं होने वाला है। विहारों में बुद्ध का जयघोष अलापने से भी उत्पीड़न का अंत नहीं होने वाला है।
इससे यह सिद्ध होता है कि कवि (डॉ सोहनपाल सुमनाक्षर) गम्भीर चिंतक हैं,उनकी ओजस्वी वाणी में दलितों के प्रति सम्मान की भावना प्रकट होती है। वे दलित समाज के अधिकारियों को भी आह्वान करते हैं कि– तुम्हारे अफसर बनने से क्या फायदा, अगर दलितों का शोषण,अत्याचार आज भी बरकरार है। यह न भूलो कि तुम्हें यहाँ तक भेजने में उन दलितों का भी हाथ है जो आज भी रूखी-सूखी खाकर, नंगे बदन मेहनत करते हुए भी दलितोत्थान के संघर्ष में रत है। वे समाज के उस वर्ग को भी निरूत्तर करते हुए लिखते हैं जो दलितों व आदिवासियों के आरक्षण का विरोध करते हैं– कह दो कल से, धन-धरती पर सबका अधिकार होगा। कमाऊं जोता ही उसके मालिक होंगे, सबके बच्चों की शिक्षा समान होगी,सब एक से स्कूलों में ही शिक्षा पाएंगे। वे भद्र कवियों से पूछते हैं कि- क्या कभी उन गरीब की झोपड़ियों की ओर भी निहारा है तुमने जो फूस के अभाव में अभी तक नंगी छत के भी पड़ी हुई है। न्याय की पुकार कविता में कवि इसी नए मार्ग की अलख जगाते हुए लिखते हैं- मारो, तुम कितनों को मारोगे, तुमसे ज्यादा संख्या हमारी है। जिस दिन भी हमारा हाथ उठ गया, मुक्ति/न्याय और सम्मान पाने को, उस दिन तुम्हारा बीज भी नहीं होगा, यह अन्याय दोहराने को।
इससे यह सिद्ध होता है कि डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर जी में दया व करुणा के भाव होने के साथ साथ सामाजिक व्यवस्था को जड़मूल से समाप्त करने का अदम्य साहस व हौंसला है। आप द्वारा बी.ए.ऑनर्स (संस्कृत), एम.ए.(हिंदी व संस्कृत), पीएचडी, डी लिट्., एल.एल.बी., विद्यावारिधि आदि डिग्रियों अर्जित करने के बावजूद भी आपने सरकारी सेवा, राजनीति आदि क्षेत्र में नहीं जाकर केवल दलितोत्थान व बुद्ध-फुले-अम्बेडकर विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया जिस पर आज भी आप दृढ़ निश्चय के साथ संकल्पबद्ध हैं। भारतीय दलित साहित्य अकादमी के बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष आपने बाबू जगजीवन राम जी पर डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म का निर्माण भी करवाया है तथा दूर संचार विभाग (दूरदर्शन) भारत सरकार द्वारा आपके समग्र जीवन व कृतित्व पर THE MAN WHO CROWD फ़िल्म प्रकाशित की है।
उपसंहार- भारतीय दलित साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सोहनपाल जी सुमनाक्षर के 85 वे जन्म दिवस को आज दिनांक 06 अक्टूबर 2024 को प्रदेश शाखा उत्तराखंड द्वारा साहित्य दिवस के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। हम सभी उनके जन्मदिन पर उन्हें हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं तथा उनके दीर्घायु व उज्ज्वल भविष्य की मंगलमय कामनाएं करते हैं।
~ मास्टर भोमाराम बोस
प्रदेश संगठन महामंत्री- भारतीय दलित साहित्य अकादमी (राजस्थान प्रदेश)
Mo.- 9829236009