• जागो हुक्मरान न्यूज

काल धारा और हम~

समय का चक्र अविराम,अनवरत अपनी गति से गतिमान है।समय के पास इतना भी अवकाश नहीं है कि पलभर के लिए रूके।समय का यह चक्र अनादि काल से चला आ रहा है। अनंत काल तक चलता रहेगा। जाहिर है प्रकृति अपने विधान से संचालित है। प्रकृति का अटल नियम है जो उदय हुआ है,वो अस्त होगा।जो बना है ,वो मिटेगा।जो जन्मा है ,वो मरेगा।काल की अनवरत धारा में अगणित जीव बह गये।बहते जा रहे हैं।बहते रहेंगे। विचारणीय बात यह है कि हम धरती पर मेहमान है।मालिक नहीं।यह धरती हमारे लिए कर्म-क्षेत्र है।हम अपने श्रेष्ठ कर्मो से अपनी ज़िंदगी को रंगीन बना सकते हैं।जीवन को यशस्वी बना सकते हैं।कर्म से ही व्यक्ति महान व स्मरणीय बन सकता हैं।
प्रकृति द्वारा रचा यह संसार अद्वितीय है, अद्भुत है,अनूठा है। प्रकृति की लीलाओं को देखकर मन बाग बाग हो जाता है,कभी रोमांचित हो जाता है,कभी तो प्रकृति के रहस्यों में खो जाता है। लेकिन हमारे पास प्रकृति को निहारने का वक्त नहीं है।हम तो भौतिकता की दौड़ में भागे जा रहे हैं।सब भागे जा रहे हैं।हम धरती पर मेहमान है।इस बात को भूलते जा रहे हैं।इसी भूल के साथ ईर्ष्या, द्वेष,नफ़रत, अहंकार जैसे नकारात्मक भावों को धारण करने लगते हैं।फिर इस रंगीन दुनिया में अपराध,कलह,झगड़े खून खराबे जैसी घटनाएं घटित होने लगती है।
हम सहयोग, भाईचारा,प्रेम,दया जैसे मानवीय मूल्यों को धारण करके अपने जीवन को रंगीन व स्मरणीय बनाये। आखिर काल की इस अनवरत धारा में एक न एक दिन सभी को बह जाना है।
~ घेवर चंद भाटिया, प्रधानाचार्य
राउमावि बोड़वा, बायतु (बाड़मेर)

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