• जागो हुक्मरान न्यूज़

बौद्ध समाज निर्माण व बौद्ध आचार संहिता का व्यावहारिक व कानून पहलू – एक विवेचन

व्यक्ति, समाज, धर्म, संस्कृति, संस्कार, आपसी व्यवहार, आचरण, इन सबका आपस में गहरा संबंध है। धर्म को व्यक्तिगत कहा जाता है लेकिन धर्म को व्यक्तिगत नहीं रखा जा सकता है, उसे सामाजिक व सार्वजनिक रूप देना आवश्यक है। समाज में व्यक्ति अकेला नहीं है,वह संपूर्ण समाज का एक अंग है, इसलिए उसे धर्म की आवश्यकता है क्योंकि समाज में एक दूसरे के प्रति व्यवहार, आचरण, बातचीत अभिवादन, पहनावा, खानपान, भाषा, संस्कार, संस्कृति, रीति रिवाज, नियम- कायदे, अनुशासन, करुणा, मैत्री भाव आदि की आवश्यकता होती है। इसलिए बिना समाज व धर्म के काम नहीं चल सकता है। एक सभ्य समाज व्यक्तियों का समूह है तथा जिसमें एक जैसी विचारधारा, संस्कार व एकरुपता, आचार संहिता होनी चाहिए।

तथागत बुद्ध ने अपने धम्म को एक शासन कहा है जिसमें उन्होंने ना कोई स्वयं का स्थान रखा तथा ना ही किसी को उत्तराधिकारी बनाया, ना ही किसी को गुरु बनाया, उन्होंने धम्म को ही अपना उत्तराधिकारी चुना जो उनका एक आविष्कार था। बुद्ध का धम्म जो अनात्मवाद, अनित्य वाद तथा दुःख अस्तित्व को स्वीकार कर उनको दूर करने व निब्बाण के लिए है तथा समता मैत्री भाईचारे पर आधारित है जिसके आधार पर बौद्ध समाज का निर्माण संभव है। बौद्ध समाज के लिए बौद्ध होना आवश्यक है।

व्यावहारिक रूप में बौद्ध वो है जो तथागत बुद्ध का अनुयायी है, जो बौद्ध विचारधारा को मानता है तथा धम्म को धारण करता है।

बौद्धों को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:-

  1. जो बौद्ध माता – पिता से जन्म लेता है व धम्मिक है।
  2. जो धार्मिक बौद्ध है जिसका लालन पोषण बौद्ध विचारधारा/संस्कारों से हुआ है, जो बौद्धों का आचरण करता है जो ऐसी घोषणा करता है कि वह बौद्ध है (इसमें परंपरागत बौद्ध को शामिल किया जा सकता है)
  3. आज के परिपेक्ष में भारत में महत्वपूर्ण भाग है जो व्यवस्था परिवर्तन करते हैं तथा अन्य धर्म/संप्रदाय व्यवस्था से बौद्ध धर्म में परिवर्तित होते हैं।

उपरोक्त वर्णित बौद्ध कानूनी रुप में तीन भागों में विभाजित है:-

  1. अल्पसंख्यक बौद्ध – राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिनियम 1992 खंड 2 ग में प्रदत्त शक्ति से अधिसूचना द्वारा बौद्ध को अल्पसंख्यक वर्ग मान्यता दी तथा कानूनी रुप से कानूनी रुप से धार्मिक पहचान दी।
  2. अनुसूचित जाति वर्ग बौद्ध – भारतीय संविधान 1950(अनु जाति ) संशोधन एक्ट 1990 व आदेश सामाजिक न्याय व कल्याण मंत्रालय के अनुसार अनुसूचित जाति के लोग जिनके माता-पिता/पूर्वज अगर अनुसूचित जाति के होते हुए किसी भी क्षेत्र में सुविधा /लाभ/आरक्षण लेते रहे हो तो इस संशोधन के बाद वो ही सुविधाएं / आरक्षण बौद्ध बनने के बाद भी मिलता रहेगा लेकिन मूल जाति के अनुसार मिलेगा।
  3. जो अल्पसंख्यक समुदाय वर्ग या अनुसूचित जाति से बौद्ध का प्रमाण पत्र नहीं बनाते हैं वो सामान्य वर्ग माना जावेगा।
    हर बौद्ध व्यक्ति स्वयं तय करें कि उसे क्या करना है लेकिन बौद्ध समाज में जातियां नहीं होती है,बाबा साहब के बौद्धमय भारत की संकल्पना जाति विहीन समाज का निर्माण करना है। अतः बौद्धों को अपनी अलग पहचान बनानी होगी ,एक धम्म व्यवस्था कायम करनी है जिसमें जातिगत व्यवस्था का अस्तित्व नहीं होना चाहिए, विशेष रूप से व्यवस्था परिवर्तन वाले व्यक्ति को बौद्ध समाज में बिना जाति के व्यापक बनकर अपने कल्याण के लिए श्रेष्ठ बनना है।

बौद्ध संवैधानिक प्रावधान होने के बाद भी बौद्धों का अपना व्यक्तिगत कानून (पर्सनल ला ) नहीं बना है ,जो हिन्दू पर्सनल ला द्वारा संचालित है तथा संविधान के अनुच्छेद 25(2) स्पष्टीकरण में बौद्धों को सामाजिक व कल्याण के लिए हिंदू धर्म का अंग माना है। बौद्ध समाज के लिए यह भी एक कानूनी लड़ाई जारी है, इसमें पूर्व में इंडियन धम्म मिशन महाराष्ट्र बनाम यूनियन आफ इंडिया, अन्य रिट 2018/2016, बौद्धों का पर्सनल ला मसौदा 2018 (विधि विभाग में लंबित) के माध्यम से विभिन्न संगठन /व्यक्तियों द्वारा कानूनी लड़ाई जारी है।

ईमानदारी से शुद्ध बौद्ध समाज का निर्माण वर्तमान परिपेक्ष में एक बड़ी चुनौती है, लेकिन बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के बौद्धमय भारत की संकल्पना के लिए उनके अनुयायियों की यह एक प्राथमिकता होनी चाहिए कि वह जाति विहिन बौद्ध समाज का निर्माण करें, ऐसा बौद्ध समाज जिसमें व्यावहारिक रूप से कुछ नियम -कायदे, रीति रिवाज, व्यवहार आचार संहिता हो ताकि समाज उनको अपनाए जिससे बौद्ध समाज की एक अलग पहचान बने तथा जिसमें एक रुपता बने । बौद्ध समाज के लिए बौद्धों को आपस में अभिवादन कैसे करें, बौद्धों का खाना-पीना कैसा हो, बौद्धों का पहनावा कैसे हो, बौद्धों का रहने सहन कैसा हो, बौद्धोंं की भाषा कैसी हो, बौद्धों की शिक्षा पद्धति कैसी हो, बौद्धों की निर्माण कला (चैत्य , स्तूप , विहार के समतुल्य)‌‌ कैसी हो, बौद्धों के जन्म से मरण तक के संस्कार कैसे हो जिसमें मुख्य रूप से नामकरण संस्कार, केसकंपन, विज्जांरभ, धम्म दीक्षा/प्रवज्या संस्कार, गृह प्रवेश, मंगल परिणय (विवाह) संस्कार, मृत्यु संस्कार आदि प्रमुख है। बौद्धों का व्यवहार, आचरण, संस्कार संस्कृति विचार रहन-सहन, रीति रिवाज आदि बहुत सारे विषय बौद्ध समाज के अभिन्न अंग है। ऐसे में बौद्धों संगठित एक पहचान बनाकर कार्य करना होगा ,जागरुक करना होगा, धम्म का प्रचार प्रसार करना होगा जिसके लिए समाज में प्रचारकों की आवश्यकता है जिसमें बौद्ध समाज के दोनो अंग भिक्खु -भिख्खुणी और उपासक -उपासिकाऐ को प्रचारक की भूमिका निभानी होगी।
धम्म भूमि द्वारा 15 -16 जून 2024 को जयपुर में भंते डा करूणा शील राहुल के कुशल नेतृत्व में इन विषयों पर चर्चा हुई और एक आचार संहिता का प्रारुप तैयार हुआ जो एक अच्छी व अनुकरणीय पहल है और जो वर्तमान में बौद्ध समाज के लिए प्रांसागिक है लेकिन बौद्ध समाज मान्यता के साथ साथ कानूनी मान्यता भी मिले । बुद्ध के धम्म में देश, काल, परिस्थितियों में उपयुक्त परिवर्तन संभव है क्योंकि बुद्ध का धम्म मध्यम मार्ग का है, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की बात करता है तथा व्यक्ति को अपने लिए कल्याणकारी तथा श्रेष्ठ बनाता है। अतः परिवर्तन/संशोधन संभव है।
अब वर्तमान परिपेक्ष में व्यवस्था परिवर्तन के दौर में बौद्ध समाज के लिए व्यावहारिक आचार संहिता बनना बड़े हर्ष की बात है, जयपुर में यह पहल बौद्ध समाज के लिए साहसिक कदम, सराहनीय व अनुकरणीय पहल है तथा बौद्ध निमार्ण में सहायक सिद्ध होगी। बौद्धों को बौद्ध समाज का निर्माण करके अपनी अलग पहचान, अस्तित्व व एकरुपता कायम करते हुए बाबा साहब के बौद्धमय भारत की संकल्पना में सहयोगी व सहभागी बनना चाहिए ताकि पुरखों की बौद्ध विरासत को आने वाली पीढ़ी को भी श्रेष्ठ जीवन के लिए सौंपा जा सके ।
नमो बुद्धाय!!

लेखक: एडवोकेट रघुनाथ बौद्ध जयपुर
प्रदेशाध्यक्ष: मिशन जय भीम, राजस्थान
सम्पर्क- 9549455623

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *