नारी शक्ति के मुक्ति दाता: बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर

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नारी शक्ति के मुक्ति दाता: बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर

प्राचीन काल में महिलाओं को केवल भोग विलास व बच्चे पैदा करने की वस्तु माना जाता था। उन्हें पढ़ने-लिखने व शासन-प्रशासन का अधिकार नहीं था। भारत में सदियों से महिलाओं को दोयम दर्जे की मानी जाती रही है। हिन्दू संस्कृति में मनु के विधान को प्राथमिकता दी जाती रही है। जिस कारण समाज का बहुसंख्यक समुदाय (अनुसूचित जाति/जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/आदिवासी/महिला) को अधिकार विहीन था। उन्हें पढ़ने, लिखने, बोलने, सम्पत्ति रखने, अभिव्यक्ति करने का भी अधिकार नहीं था। कवि तुलसीदास कृत राम चरित मानस में तो शूद्रों व महिलाओं को हीन भावना से देखा गया है। उनकी एक चौपाई- “ढोल, शुद्र, पशु अर नारी, यह सब है ताड़न के अधिकारी।” इस देश के कुलीन वर्ग (वर्णव्यवस्था अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) को ही श्रेष्ठता प्रदान करती है। मनु स्मृति में तो शूद्रों व महिलाओं के लिए इतने कठोर कानून बनाए गए थे कि व्यक्ति उनके खिलाफ आवाज भी नहीं उठा पाता था। इसी प्रकार पशुबलि, नरबलि, यज्ञ, सती प्रथा, विधवा प्रथा, अशिक्षा आदि सामाजिक बुराईयों से भी समाज जकड़ा हुआ था। हालांकि यह भी कहा गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते,रमन्ते तत्र देवता: लेकिन महिलाओं के ऊपर बहुत से पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक बन्धन थे। वह स्वाभिमान के साथ जीवन जीने के लिए बाध्य थी।

समाज सुधार राजाराम मोहन राय आदि ने महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार हेतु काफी प्रयास किए। आजादी की लड़ाई में महिलाओं का योगदान- रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना झलकारीबाई कोरी, सरोजिनी नायडू, बेगम हजरत महल, नीरा आर्या, कस्तूरबा गांधी, कमला नेहरू, अरुणा आसफ अली, कमला देवी चट्टोपाध्याय, विजय लक्ष्मी पण्डित, भीकाजी कामा (मैडम कामा), उदा देवी पासी, कुयीलि आदि का देश की आजादी के लिए विशेष योगदान रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान: देश की प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने सन 1848 में पुणे में बालिकाओं के लिए प्रथम विद्यालय की स्थापना की। इसके अलावा दुर्गाबाई देशमुख, महादेवी वर्मा, कादम्बनी गांगुली, फातिमा शेख, रमाबाई आदि ने भी महिला शिक्षा के लिए जीवन पर्यंत कार्य किया। राजाराम मोहन राय, ज्योतिबा फुले, स्वामी विवेकानंद, मोहनदास करमचंद गांधी, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राष्ट्र सन्त गाडगे बाबा के अलावा मदर टेरेसा, डॉ एनिबिसेन्ट, भगिना निवेदिता, अरुणा रॉय, मेधा पाटकर आदि का योगदान रहा।

आजादी के बाद महिलाएं: श्रीमती इंदिरा देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री, श्रीमती प्रतिभा पाटिल प्रथम राष्ट्रपति, सरोजिनी नायडू व सुचेता कृपलानी प्रथम राज्यपाल, श्रीमती मीरा कुमारी प्रथम महिला लोकसभा अध्यक्ष, जय ललिता, मायावती, वसुंधरा राजे सिंधिया, ममता बनर्जी आदि मुख्यमंत्री, किरण बेदी प्रथम महिला आईपीएस अधिकारी, हरिता कोर देओल प्रथम महिला वायुसेना पायलट, पद्मा चट्टोपाध्याय प्रथम महिला वैज्ञानिक, शिवांगी प्रथम महिला नौसेना पायलट, जयंती पटनायक प्रथम राष्ट्रीय महिला आयोग अध्यक्ष, कल्पना चांवला प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री आदि को संविधान की बनिस्पत अवसर व अधिकार मिले और शीर्ष पदों पर आसीन हुई। वर्तमान में श्रीमती द्रोपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च संवैधानिक राष्ट्रपति पद को शुशोभित कर रही है। इसके अलावा बहुत सी महिलाओं ने राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक क्षेत्रों के साथ साथ कला, विज्ञान, संगीत, साहित्य, खेल, बिजनेस आदि क्षेत्रों में भी अपना परचम लहरा रही है।

आजादी के बाद संविधान में महिलाओं के अधिकार: 26 जनवरी 1950 को देश में नया संविधान लागू हुआ। जिसमें भारत के आम नागरिक के साथ जाति, धर्म, लिंग, नश्ल आदि के आधार पर भेद नहीं किया जाएगा। साथ ही आम नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए। सभी को न्याय, समानता, स्वतंत्रता, बन्धुता के साथ अपना जीवन जीने का अदिकार दिए गए। संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने महिलाओं एवं समाज के शोषित, उपेक्षित व कमजोर तबके के लोगों को संविधान में विशेष प्रावधान रखे तथा उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए संघ सरकारों को अधिक अवसर प्रदान करने के लिए विशेष योजनाएं बनाने के लिए बाध्य किया। सन 2009 में भारत सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू कर 6-14 आयुवर्ग के सभी बालक-बालिकाओं को निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया। इसके अलावा मातृत्व लाभ अधिनियम 1961, सुरक्षित गर्भपात का अधिकार, समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976, प्रताड़ना के विरुद्ध अधिकार 2005, मुफ़्त कानूनी सहायता, पिता की सम्पत्ति पर अधिकार, भरण-पोषण का अधिकार, सरकारी व निजी दफ़्सरों में यौन शोषण के विरुद्ध कानून, घरेलू हिंसा कानून, दहेज प्रताड़ना कानून आदि के अलावा बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन हिंसा व अपराध को रोकने के लिए व उन्हें संरक्षण प्रदान करने हेतु सरकार ने पोक्सो एक्ट बनाया। सन 1834 में अंग्रेजी शासन में समतावादी शिक्षा नीति लागू की गई जिसे लॉर्ड मैकाले ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की ओर से भारत में कई स्कूल खोले गए। इन स्कूलों में महिलाओं, बालिकाओं व शूद्रों को भी पढ़ने का अवसर मिला।

महिला सशक्तिकरण: सशक्तिकरण का तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें यह योग्यता आ जाती है। जिससे वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे हैं, जहाँ महिलाएं परिवार और समाज के साथ सभी बन्धनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो।
महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों एवं मूल्यों को दबाने वाली सोच को मारना जरूरी है। जैसे-भ्रूण हत्या, अशिक्षा, यौन शोषण, हिंसा, दहेज प्रथा, असमानता, बलात्कार, वेश्यावृत्ति, मानव तस्करी आदि। लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से पूरे देश में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलता है। ये जरूरी है कि महिलाएं शारीरिक, मानसिक व सामाजिक रूप से मजबूत बनें। महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक अलगाववाद तथा हिंसा आदि को रोकना होगा। इसके लिए सरकार द्वारा भी समय समय पर कई सारे कदम उठाए जा रहे हैं, साथ ही साथ पुरुषों को भी अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।

महिला आरक्षण बिल: संसद में 108 वां संविधान संशोधन बिल का पास होना और महिलाओं को राजनीति में 33 प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करना जरूरी है। सभी क्षेत्रों में महिलाओं का उत्थान राष्ट्र की प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए।

महिला की भूमिका: महिलाएं सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ना चाहती है। वे अपने स्वास्थ्य, शिक्षा, नौकरी, रोजगार, परिवार, देश, समाज के प्रति जिम्मेदारी को लेकर ज्यादा सचेत रहती हैं। एक महिला माँ, पत्नी, बहन, पुत्री आदि के रूप में होती है। माँ ही अपने बच्चों की प्रथम गुरु व शिक्षक होती हैं। हम महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदलें और संवैधानिक व कानूनी प्रावधानों में बदलाव लाएं।

महिलाओं के लिए बाधाएं: भारत पुरुष प्रधान देश है, जिस कारण महिलाओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है–(१) सामाजिक मापदण्ड, (२) कार्य क्षेत्र में शारीरिक व मानसिक शोषण, (३) लैंगिक भेदभाव, (४) भुगतान में असमानता, (५) अशिक्षा व अंधविश्वास,(६) बाल विवाह, (७) महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध, (८) कन्या भ्रूण हत्या, (९) लोगों की महिलाओं के प्रति नकारात्मक सोच आदि।

महापुरुषों के कथन: लोगों को जगाने के लिए महिलाओं का जाग्रत होना जरूरी है: पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू,
महिला प्रकृति का सबसे सुंदर रूप है। वह कोमल, सरल, सुशील व प्रज्ञाशील है: अज्ञात,
नारी ही परिवार और समाज की केंद्र बिंदु है: स्वामी विवेकानंद,
मैं किसी समाज की प्रगति उस समाज में महिलाओं द्वारा की गई प्रगति से आंकता हूँ: डॉ. बी.आर. अम्बेडकर,
समाज को बदलने का सबसे तेज तरीका है दुनिया की महिलाओं को संगठित करना: चार्ल्स मलिक,
नारी को अबला कहना उसका अपमान करना है: मोहनदास करमचंद गांधी!

उपसंहार: बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने हमेशा महिलाओं के हितों व उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने संविधान में उनके जीवन स्तर में सुधार के लिए बहुत सारे प्रावधान डाले। इसीलिए उन्हें नारी के मुक्तिदाता के रूप में पहचाना जाता है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के पावन अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं!!

आलेख: मास्टर भोमाराम बोस
प्रदेश महामंत्री (संगठन): भारतीय दलित साहित्य अकादमी, राजस्थान प्रदेश
सम्पर्क- 9829236009


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