• जागो हुक्मरान न्यूज़
पश्चिमी राजस्थान से मृत्युभोज बंद करने का अभियान गति पकड़ रहा है!
सदियों पुरानी कुरीति का अंत तय,समाज का युवा व जागरूक वर्ग परिवर्तन की ओर अग्रसर।
सन्त कबीर, रैदास, मेघरिख धारू जी महाराज, बाबा रामदेव जी ने सदियों पूर्व कुरीतियों, कुप्रथाओं व अंधविश्वास के विरुद्ध किया था संघर्ष। आजादी से पूर्व कई सन्त-महात्माओं ने भी घर-घर अलख जगाई थी।
सिंबल ऑफ नॉलेज, संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने तमाम बुराइयों की जड़ अशिक्षा व गुलामी बताया था। उन्होंने, “शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।” का नारा देकर किया था आह्वान।
पश्चिमी राजस्थान में गत कुछ समय से इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। मृत्युभोज इस क्षेत्र की सबसे बड़ी व समाज को तोड़ने वाली कुरीति है। इसका ताना बाना इतना महीन है कि इसे जड़मूल से समाप्त करना बड़ा मुश्किल है। फिर भी लोग विरोध करते रहे,कुछ ने मृत्युभोज नहीं खाने या मृत्युभोज में नहीं जाने का मन ही मन संकल्प लिया। लेकिन समाज का बहुत बड़ा वर्ग हमेशा इस कुप्रथा/कुरीति के पक्षधर रहा है। कारण स्पष्ट है-“मरने वाले की आत्मा को शांति मिलेगी। लेकिन अफीम खिलाने,डोडा पोस्त पिलाने, घी-लापसी-हलवा-पकवान आदि खिलाने से मरने वाले को शांति कैसे मिलेगी? कई बुद्धिजीवी व सामाजिक प्रवर्तक इसे चाह कर भी पूर्ण रूप से बंद नहीं कर पाए। राजस्थान सरकार ने भी सन 1960 में “मृत्युभोज निवारण अधिनियम1960” लागू किया। फिर भी मृत्युभोज रोकने में कोई ठोस परिणाम नहीं मिले। कुछ वर्ष पहले विश्नोई समाज ने “चौराही प्रथा” बंद की,फिर जाट समाज ने “खेड़ा प्रथा” खत्म की। उसके बाद राजपुरोहित समाज ने “न्यात प्रथा” बंद की। लेकिन मेघवाल, भील, देवासी समाज अभी भी मृत्युभोज करके अपने आप को गौरवांवित महसूस करता है। फिर भी मेघवाल समाज ने यह महसूस किया कि सभी बुराइयों की जड़ मृत्युभोज ही है। इसके लिए विभिन्न स्वजातीय संगठनों ने समाज सुधार के लिए अभियान चलाया, करीब 25 साल से पश्चिमी राजस्थान के नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, पाली,जालोर,सिरोही आदि जिलों में यह अभियान निरन्तर जारी है।
दिनांक 21-23 फरवरी 2000 को रामदेवरा, जैसलमेर में दलित अधिकार अभियान के बैनर तले दलित वर्ग का समाज सुधार हेतु एक साझा घोषणा पत्र तैयार किया,जिसमें सभी खांप पंचायतों के पंच-पटेलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, जनप्रतिनिधियों व समाज के हजारों गणमान्य लोगों की गरिमामय उपस्थिति रही। उस घोषणा पत्र का नाम “रामदेवरा घोषणा पत्र” रखा गया। इसका असर पूरे पश्चिमी भाग पर पड़ा तथा लोग समाज सुधार हेतु आपसी चर्चा करने लगे। उसी का प्रतिफल है कि आज दलित समाज में सुधार की बातें हो रही है। लोग बिना किसी दवाब के मृत्युभोज को बंद कर रहे हैं। जोधपुर सम्भाग के सभी जिलों में यह मुहिम एक अभियान के रूप में चल पड़ी है। न्यात, औसर-मौसर, अफीम-डोडा रोकथाम अभियान के अध्यक्ष माधाराम मकवाना, महासचिव घेवरराम व पूरी कार्यकारिणी समाज सुधार के लिए प्रयासरत है। इनके द्वारा जन जागृति, पेम्पलेट, सेमिनार, संगोष्ठियों, सभाओं आदि आयोजित कर समाज को सामाजिक कुरीतियों व कुप्रथाओं को बंद करने का आह्वान किया जा रहा है। निःसन्देह यह सुनहरी पहल सकारात्मक परिणाम लाने में मददगार साबित होगी।
बाड़मेर, पाली, जैसलमेर, जालोर, सिरोही के बाद जोधपुर जिले में भी ऐसी कुप्रथाओं/कुरीतियों से निजात पाने में लोग स्व प्रेरणा से आगे आ रहे हैं।
हाल ही में भाम्भूओं की ढाणी बेठवासिया उपखंड ओसियां जिला जोधपुर में श्रीमती गंगा देवी धर्मपत्नी स्व. बींजाराम मेघवाल का 92 वर्ष की उम्र में 18 जनवरी को निधन हो गया था। अपनी माताजी के निधन पर उनके सुपुत्र मांगीलाल, भैराराम व सन्त खींवनाथ जी महाराज ने हरिद्वार नहीं जाने, डांगड़ी जागरण नहीं करने व मृत्युभोज नहीं करने का स्वेच्छिक निर्णय लिया तथा दिनांक 27 जनवरी को अपने परिवार व चिर परिचित रिश्तेदारों को सादा भोजन दाल-रोटी खिलाकर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। जिसमें न्यात, औसर-मौसर, अफीम-डोडा रोकथाम अभियान के अध्यक्ष माधाराम मकवाना, स्वामी पूर्ण प्रकाश, सामाजिक चिंतक जगदीश बारूपाल, भीम आर्मी प्रदेश सह संयोजक आनंदपाल आजाद व कार्यकर्ताओं आदि ने भाग लेकर दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर सन्त खींवनाथ जी व उनके परिवार द्वारा मेघवाल समाज महिला छात्रावास झालामण्ड,जोधपुर के निर्माण कार्य हेतु ₹ 51,000/- (इक्यावन हजार) की घोषणा की। अगर सभी लोग इस प्रकार की सोच विकसित करें तो समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है।
मास्टर भोमाराम बोस, ( प्रदेश संगठन मंत्री राजस्थान मेघवाल परिषद, बीकानेर)