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इतिहास के पन्नों में गुम देश की “पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख”
जिन्होंने क्रांतिसूर्य ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर लड़कियों में 172 सौ वर्ष पहले शिक्षा की मशाल जलाई।
फ़ातिमा शेख़: लड़कियों की शिक्षा में अहम योगदान देने वाली भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक
भारत की प्रथम महिला शिक्षिका और समाज सुधारक सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले के बारे में हम सब जानते हैं, लेकिन हम में से कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें फ़ातिमा शेख़ के बारे में पता है? फ़ातिमा शेख़ ही वो महिला हैं, जिन्होंने भारत का पहला कन्या स्कूल खोलने में सावित्रीबाई का पूर्ण सहयोग किया था. विडंबना देखिए?
आज इस महान महिला का नाम कहीं गुमनाम है. इसके अलावा किताबों और इंटरनेट पर भी इनके बारे में कम जानकारी दी गई है. यहां पर अगर ये कहा जाए कि बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत कुछ सालों पहले नहीं, बल्कि 19वीं शताब्दी में ही हो गई थी, तो ग़लत नहीं होगा.
आज से लगभग 172 वर्ष पहले सावित्रीबाई फुले और उनके पति जोतीराव फुले ने निचली जाति वाले समुदायों की लड़कियों और महिलाओं को शिक्षित करने का ज़िम्मा उठाया. इस दौरान उन्हें समाज की आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ा था. यही नहीं, उस दौरान नौबत यहां तक आ गई थी कि उन्हें मजबूरी वश अपना घर तक छोड़ना पड़ गया था. जब ज्योतिराव और सावित्री फुले ने लड़कियों के लिए स्कूल खोलने का निर्णय लिया था, तब उनकी इस मुहिम में फ़ातिमा शेख़ ने इनका का साथ देते हुए, मदद के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया था.
इस दौर में स्कूल में पढ़ाने के लिए अध्यापक मुश्किल से ही मिलते थे. ऐसे में फ़ातिमा शेख़ ने सावित्रीबाई के स्कूल में पढ़ाने की ज़िम्मेदारी उठाई. हांलाकि, इसके लिए उन्हें समाज के विरोध का भी सामना पड़ा. इस दौरान सावित्रीबाई और फ़ातिमा पर लोगों ने कभी पत्थर से वार किया, तो कभी गोबर से. लेकिन दोनों ही महिलाओं ने अपने बढ़ते कदम को नहीं रोका.
यही नहीं, जिस वक़्त फुले के पिता ने उन्हें महिलाओं के लिए करने वाले कार्यों की वजह से घर से बाहर कर दिया था, तब फ़ातिमा शेख़ और उनके भाई उस्मान शेख़ ने फुले को अपने घर में रहने की जगह दी. काफ़ी चुनौतियों के बावजूद फ़ातिमा ने अपने पड़ोसियों के घर जाकर उन्हें उनकी बेटियों को शिक्षित करने के लिए प्रोत्हासित करने का काम किया. 1848 में फ़ातिमा और उनके भाई उस्मान शेख़ ने सावित्री के साथ मिलकर अपने घर पर पहले कन्या विद्यालय की शुरूआत की, जिसे Indigenous Library नाम दिया गया. उस समय हिंदू और मुस्लिम दोनों की समुदाय के लोग महिलाओं की शिक्षा के ख़िलाफ़ थे, वो नहीं चाहते थे कि महिलाएं पुरुषों के बराबर पढ़ें-लिखें.
हांलाकि, फ़ातिमा के जन्म और परिवार से जुड़ी तमाम जानकारियां अभी भी सभी के लिए प्रश्न बना हुआ है. वैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर 9 जनवरी को उनकी जंयती मनाई जाती है. कहा जाता है कि फ़ातिमा को शिक्षित करने में उनके भाई उस्मान का ख़ास योगदान रहा, उन्होंने न सिर्फ़ अपनी बहन को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि उसे आगे बढ़ कर लड़कियों को शिक्षित करने की सलाह भी दी. 1856 तक सावित्रीबाई ने पांच स्कूलों की स्थापना कर ली थी, जिसमें फ़ातिमा बतौर शिक्षिक छात्राओं को पढ़ाती थी. इसके बाद सावित्रीबाई की तबियत ख़राब रहने लगी और वो अपनी मां के घर वापस चली गई.
फ़ातिमा शेख़ के भाई के अलावा उनकी ज़िंदगी में किसी दूसरे पुरुष शख़्स का ज़िक्र नहीं है. शायद उन्होंने परिवार की रूढ़िवादी विचारधाराओं को तोड़ते हुए शादी ही नहीं की. फ़ातिमा और सावित्री के बीच दोस्ती सम्मान, करुणा और तालमेल में से एक थी. सावित्री अकसर अपनी लेखनी के ज़रिए फ़ातिमा की चिंता और स्नेह का उल्लेख़ करती रहती थी. वहीं 2014 में Maharashtra State Bureau of Textbook Production And Curriculum Research ने उनके महान कार्य और सराहनीय योगदान का ज़िक्र किया है.
आज से लगभग 172 सालों तक भी शिक्षा बहुसंख्य लोगों तक नहीं पहुंच पाई थी जब विश्व आधुनिक शिक्षा में काफी आगे निकल चुका था लेकिन भारत में बहुसंख्य लोग शिक्षा से वंचित थे लडकियों की शिक्षा का तो पूछो मत क्या हाल था ज्योतिराव फुले पूना 【अब पुणे】 में 1827 में पैदा हुए उन्होंने बहुजनों की दुर्गति को बहुत ही निकट से देखा था उन्हें पता था कि बहुजनों के इस पतन का कारण शिक्षा की कमी ही है इसी लिए वे चाहते थे कि बहुसंख्य लोगों के घरों तक शिक्षा का प्रचार प्रसार होना ही चाहिए.
विशेषतः वे लड़कियों के शिक्षा के जबरदस्त पक्षधर थे इसका आरंभ उन्होंने अपने घर से ही किया उन्होंने सबसे पहले अपनी संगिनी सावित्रीबाई को शिक्षित किया ज्योतिराव अपनी संगिनी को शिक्षित बनाकर अपने कार्य को और भी आगे ले जाने की तैयारियों में जुट गए यह बात उस समय के सनातनियों को बिलकुल भी पसंद नहीं आई उनका चारों ओर से विरोध होने लगा ज्योतिराव फिर भी अपने कार्य को मजबूती से करते रहे ज्योतिराव नहीं माने तो उनके पिता गोविंदराव पर दबाव बनाया गया अंततः पिता को भी प्रस्थापित व्यवस्था के सामने विवश होना पड़ा मज़बूरी में ज्योतिराव फुले को अपना घर छोड़ना पडा उनके एक दोस्त उस्मान शेख पूना के गंज पेठ में रहते थे उन्होंने ज्योतिराव फुले को रहने के लिए अपना घर दिया यहीं ज्योतिराव फुले ने-1848 में अपना पहला स्कूल शुरू किया उस्मान शेख भी लड़कियों की शिक्षा के महत्व को समझते थे उनकी एक बहन फातिमा शेख थी जिसे वे बहुत चाहते थे उस्मान शेख ने अपनी बहन के दिल में शिक्षा के प्रति रुचि निर्माण की सावित्रीबाई के साथ वह भी लिखना-पढ़ना सीखने लगीं बाद में उन्होंने शैक्षिक सनद प्राप्त की क्रांतिसूर्य ज्योतिराव फुले ने लड़कियों के लिए कई स्कूल कायम किए सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने वहां पढ़ाना शुरू किया।
जब भी रास्ते से गुजरतीं तो लोग उनकी हंसी उड़ाते और उन्हें पत्थर मारते दोनों इस ज्यादती को सहन करती रहीं लेकिन उन्होंने अपना काम बंद नहीं किया।
फातिमा शेख के जमाने में लड़कियों की शिक्षा में असंख्य रुकावटें थीं ऐसे जमाने में उन्होंने स्वयं शिक्षा प्राप्त की दूसरों को लिखना-पढ़ना सिखाया वे शिक्षा देने वाली पहली मुस्लिम महिला थीं जिनके पास शिक्षा की सनद थी फातिमा शेख ने लड़कियों की शिक्षा के लिए जो सेवाएं दीं उसे भुलाया नहीं जा सकता घर-घर जाना लोगों को शिक्षा की आवश्यकता समझाना लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए उनके अभिभावकों की खुशामद करना फातिमा शेख की आदत बन गई थी आखिर उनकी मेहनत रंग लाने लगी लोगों के विचारों में परिवर्तन आया वे अपनी घरों की लड़कियों को स्कूल भेजने लगे।
लड़कियों में भी शिक्षा के प्रति रूचि निर्माण होने लगी स्कूल में उनकी संख्या बढती गयी मुस्लिम लड़कियां भी खुशी-खुशी स्कूल जाने लगीं विपरीत परिस्थितियों में प्रस्थापित व्यवस्था के विरोध में जाकर शिक्षा के महान कार्य में ज्योतिराव एवं सावित्रीबाई फुले को मौलिकता के साथ सहयोग देने वाली एक वीर मानवतावादी शिक्षिका फातिमा शेख को दिल से सलाम।
लेखक – हरीराम जाट
नसीराबाद, अजमेर (राज.) Mo.-𝟵𝟰𝟲𝟭𝟯-𝟳𝟲𝟵𝟳𝟵