• जागो हुक्मरान न्यूज़

सामाजिक सेवा कार्य एवं सामाजिक चिंतक लोगों के विचारों को समझने से मुझे कुछ लिखने की प्रेरणा मिली है। तभी तो हम प्रारम्भ से संकेत देते आ रहे हैं, की लिया सो नाम, किया सो काम, दिया दो दान।

मानव जीवन अनमोल हैं आवश्यक्ता व भौतिक सुविधाओं में बहुत अंतर होता हैं। धन से जीवन की सब सुख सुविधाएं जुटा दीजिये, आराम से रहिये, लेकिन जीवन में सन्तोष धन व्यक्ति को कही भी नही मिलने वाला क्योंकि की उसका प्रारम्भ हमारे नेक इरादों, समाजिक सेवाओं और संवेदनाओं से होता हैं। “लिया सो नाम” वाक्य से मेरा सन्देश काल्पनिक भगवान से कदापि नही हैं बल्कि प्रकृति प्रेम से हैं।

मानवीय संवेदनाओं व सामाजिक सेवा कार्यों से में लंबे समय से जुड़ा हूँ, जब किसी समर्थ व्यक्ति को गरिब, जरूरतमंद, पीड़ित के लिए निवेदन करते है तो वे नजर अंदाज करते हैं। कहते है आगे देखेगे। ऐसे सेवा कार्यों की अनदेखी करना लोगों की फितरत में सुमार होता हैं।

सच्चाई यही है की सदियों से दलित,पीड़ित, शोषित, गरीब पिछड़ों ने लेना ही सीखा हैं देने की कभी पहल ही नही की तो अधिकांश समर्थ व्यक्ति पहले ही पीछे हट जाता है। यह समाज का दुर्भाग्य समझों।

वर्तमान परिपेक्ष में बाड़मेर जिले में बहुजन समाज के नेक दिल भामाशाह अनेकों योजनाओं में तन,मन,धन और समय से सहयोग दे रहे है , ये त्याग मूर्ति लोग आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवार से ऊपर उठे हैं। उन्होंने मूलभूत सुविधाओं की अभाव जिंदगी देखी हैं। शिक्षा व संघर्षमय जीवन के बाद कुछ मुकाम हासिल किया तभी तो वे पे बैक टू सोसायटी के तहत अपनी सेवाएं दे रहे हैं। जो अति गर्व का विषय हैं।

आज भी उन्हें अहसास है कि मजबूरी और जरूरत क्या होती हैं।अभाव क्या होता हैं। इसलिए दूसरे की पीड़ा को वे दिल से समझते हैं।यही सच्ची इंसानियत व मानवता की मिशाल हैं।

लेखक- मास्टर विराराम भूरटिया, सामाजिक चिंतक बाड़मेर (राज.)

हमारे साथ जो धरातल से जुड़े लोग टीम के रूप में तन,मन,धन एवं समय से कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग में खड़े हैं। वे सभी आर्थिक दृष्टि से कमजोर एवं संघर्षशील परिवारों के लाल हैं। संस्कारित परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। साथियों अपना पेट तो हर कोई जीव जंतु,कीड़े मकोड़े,छोटे,बड़े जीव जंतु कही से आहार प्राप्त कर भर लेते हैं । लेकिन दूसरे की पीड़ा को हरना या दूर करना इंसानियत का बेहतरीन उदाहरण हैं।

लेकिन बात सभ्यता की आती है मानवता की आती है,इंसानियत की आती हैं। विद्वता की आती है। तब मनुष्य इस जगत में सबसे श्रेष्ठ प्राणी माना गया हैं। जो सदियों से प्रकृति पर निर्भर था आज भौतिक सुविधाओं का गुलाम बनकर रह गया हैं। अपने तक सीमित होकर रह गया हैं। उसका जीवन सिमटा सा लगता हैं।

भौतिक सुविधाए और मूलभूत सुविधाएं अलग अलग है एक से हम जिन्दे रहते है ,दूसरी से सुख की आशा रखते हैं जबकि ऐसा नही हैं।

भौतिक सुविधाएं मृग तृष्णा के समान है , इससे ज्यादा कुछ नही। अपने लिए सब जीते है औरों के लिए जिये ऐसी जिंदगी हर किसी को नशीब नही होती। संसार में विरले महापुरुष ही हैं जिन्होंने भौतिक सुखों को कभी तवज्जो नही दी बल्कि मानव सेवा को अहमियत दी ओर वे युग पुरुष होकर महान हो गए।उन्ही में एक शख्शियत हैं डॉ. भीमराव अंबेडकर जिन्हें ऐसी जिंदगी नसीब हुई वे संसार में महान व्यक्तियों की पंक्ति में प्रथम स्थान पर सुमार हो गए । आज ज्ञान के प्रतीक है।

इसलिए समाज हित में अपने उतरदायित्व के निर्वहन में सकारात्मक सोच से जितना बन पड़े अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हुए कभी भी सेवाओं में मनुष्य को भागीदार बनना चाहिए।

काश बाबा साहब अपने परिवार तक ही सीमित रहते तो हम आज कोनसे मुकाम पर होते समय मिले तो विचार कर लेना चाहिए। बहुजनों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन जो दृष्टिगोचर हो रहा हैं वह बाबा साहब की बदौलत ही हैं। इसलिए हमें उनके मिशन को आगे बढ़ाने में तन,मन,धन और समय देने में जरा भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। सकारात्मक सोच हमारे जीवन का अहम हिस्सा होना चाहिए।

बहुजन समाज के गणमान्य बन्धुओं विचार कीजिये, चिंतन कीजिये ,मंथन कीजिए भावी कल्पना कीजिए कि हम सामाजिक,आर्थिक,शैक्षिक,राजनैतिक और वैचारिक क्षेत्रों में बेहतर सेवा कार्य कैसे कर सकते है। जब हमारी सोच बदलेंगी, विचार बदलेंगे,महापुरुषों के आदर्श हमारे जीवन का हिस्सा बनेंगे तभी कुछ सभी क्षेत्रों में परिवर्तन की गुंजाइश बन सकती हैं।

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