• जागो हुक्मरान न्यूज
~ मृत्यु का यथार्थ नज़ारा ~
1 दिन मेंने की कल्पना,, अब जीवन में क्या कल्पना (दुखी होना),, कई देखे हैं सपने जीवन में,, एक सपना मृत्यु का भी देखा जाए,, एक रात में देख रहा था,, मैं जीते जी मर रहा था,, परिजन करते विलाप थे, पड़ोसियों के संवाद थे, यूं ही आया, यूं ही चला गया, सभी का मन बहला गया,, समाज जन आए, इतना जल्दी कैसे चला गया,, कोई कहता, जाना तो संसार का नियम है, कोई कहता, आना जाना तो लगा रहता है,, कोई बच्चों को देख उदास होता, कोई पत्नी को देख हताश होता, कई बार सलाहों का दौर चलता,, कई बार विचारों का दोर चलता, चिंतन और मनन के सागर में गोते लगाते,, फिर एक क्षण को, चिता उठाने का ध्यान लगाते,, कोई कहता जल्दी करो देर हो रही है,, कोई कहता रोना बंद करो, अब उसको रो करके, क्यों दुखी करो,, कोई किसी को देता सांत्वना , सब ठीक होगा,, कोई कहता जल्दबाजी था, जाने में भी जल्दबाजी कर गया,, कोई कहता बड़ा सेवक था, सेवा का अवसर आया उससे पहले ही चला गया,, कोई कहता कंजूस था, जीवन जीने के समय में भी कंजूसी कर गया,,, बिलखते बच्चों को छोड़कर कैसे चला गया,, कोई कहता दिन वार तक नहीं देखा, कोई कहता मौसम की मार तक नहीं देखा, कोई कहता इतवार तक नहीं देखा, कोई कहता सोमवार तक रुकता, सभी अपने नफे नुकसान का हिसाब लगाते, कोई हंसते, तो कोई रोते हुए विदा करता,, कोई भारी मन से, तो कोई हल्के से विदा करता,, उठाकर चिता जब चलते तो कोई कहता,, जीवन में कुछ खाया ही नहीं यूं ही चला गया,, कुछ जी भर के खा लेता तो कम से कम कुछ वजन तो होता,, लेकिन वह भी नहीं कर पाया,, चिता को दे
चिता अग्नि, सब अपने काम में व्यस्त हो गए,, कोई अपनी बातों में व्यस्त हो गए, कोई मोबाइल में व्यस्त हो गए, कोई जीवन के रहस्यवाद में मस्त हो गए, कोई जीवन की चिंताओं में डूब गए, मुझे आग के हवाले कर दिया था,, मेरे जलने से, किसी का दिल जल रहा था,, किसी की चिंताएं जल रही थी, किसी की आशाएं जल रही थी, किसी के विश्वास जल रहे थे, किसी का साथ जल रहा था, किसी का साथी जल रहा था,, मैं जा रहा था उसे और,, वे भी जा रहे थे उस और,, मैं अकेला सबको देख रहा था,, वो सब भी मुझे देख रहे थे,, दोनों ओर से शांति थी, क्योंकि अब मैं शांत हो गया था…
~ अध्यापक प्रकाश चंद्र मेघवाल
निवासी- गरदाना, तहसील- भदेसर, जिला- चित्तौड़गढ़ (राज.), 312603
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