• जागो हुक्मरान न्यूज़

-: आँखों देखी :-

दिसम्बर 2008 को जब मैं पहली बार भारतीय दलित साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय सम्मेलन पंचशील आश्रम, झरोड़ा गाँव (बुराड़ी बाई पास) दिल्ली में डॉ आंबेडकर फैलोशिप लेने गया तो मुझे अपार खुशी हुई। देश के विभिन्न प्रान्तों से साहित्यकार अपने अपने प्रान्त के परिवेश में आये हुए थे। नेपाल, अमेरिका आदि देशों से कुछ विदेशी मेहमान भी आए हुए थे। दलित समाज के कई राजनीतिज्ञ व समाज सेवी भी शोभायमान थे। सम्मान समारोह का आगाज हो चुका था और राष्ट्रीय अध्यक्ष जी,मुख्य अतिथि व अन्य प्रबुद्धजन अवॉर्ड दे रहे थे। यह सब देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। आज पूरा दलित समाज एक मंच पर विराजमान था। दोपहर करीब 2.00 बजे लंच का टाईम हुआ और हम लोग कूपन लेकर भोजन के लिए लग गए। आस पास में वीरान जगह थी। सैंकड़ों की तादाद में लोग तंबुओं में रह रहे थे और उनके पास बहुत सारे हाथी भी थे। शायद वे लोग हाथियों को पालकर अपने भरण पोषण के लिए निकलते होंगे। ज्यों ही हमने भोजन करने के बाद पत्तलों को बाहर फैंका तो वहाँ का दृश्य देखकर दंग रह गया। मुझे अपने पर विश्वास भी नहीं हो रहा था कि क्या हमारे देश की राजधानी दिल्ली में ऐसा भी होता है। आस पास से नन्हें-मुन्ने बच्चों का हुजूम उमड़ पड़ा था और वे पत्तलों में से झूठन खा रहे थे। मुझे बहुत ग्लानि हुई कि हमारे महापुरुषों व आजादी के दीवाने वीर शहीदों के इस देश में जिसे आजाद कराने के लिए  हजारों लोगों ने कुर्बानियों दी। उस देश के बच्चे आज झूठन खाने को मजबूर हैं। मुझे मुंशी प्रेमचंद, ओमप्रकाश वाल्मीकि की वे कविताएं बार बार विवश कर रही थी। मुझे लगा शायद इसीलिए ही बाबू जगजीवन राम जी, डॉ सोहनपाल सुमनाक्षर जी, आचार्य गुरुप्रसाद के.पी. जी आदि ने भारतीय दलित साहित्य अकादमी की स्थापना की होगी कि समाज का बहुत बड़ा तबका जो सदियों से शोषित, प्रताड़ित, वंचित रहा है। वह आज भी इसका दंश झेल रहा है और अशिक्षा, भुखमरी का शिकार है। शायद इसीलिए उन्होंने देश व दुनिया के दलितों को संगठित, शिक्षित करने के लिए ही इस अकादमी की स्थापना की होगी ताकि समाज के शिक्षित व्यक्ति अपनी लेखनी के माध्यम से अपनी मानसिक कुंठाओं को साहित्य का रूप दे सकें। दलित समाज का अपना साहित्य लिखा जाए तथा उसे लोगों तक सुलभ करवाया जाए। जब मैं सम्मान लेकर दिल्ली से पुनः अपने घर पहुंचा तो मन में प्रण लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन मैं दलितों के लिए लिखूंगा। मैं उनके हक,अधिकारों की बात करूँगा तथा उन्हें स्वाभिमान के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित करूँगा। शिक्षा व साहित्य को बढ़ावा देने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहूँगा। हमे खुशी है कि आज समाज के पास दलित साहित्य की भरमार है। रोज सैंकड़ों पुस्तकें प्रकाशित हो रही है। जिसमें कवि, लेखक, साहित्यकार, पत्रकार, व्यंग्यकार, फ़िल्म मेकर एवं समाज का हर व्यक्ति अपना योगदान दे रहा है।

लेकिन फिर भी मेरे मन में वही दृश्य बार-बार आ रहा था कि दिल्ली जैसे शहर में अगर यह स्थिति है तो फिर गाँवों व कस्बों की क्या स्थिति होगी? जहाँ अशिक्षा, कुपोषण, महिला हिंसा, छुआछूत,भेदभाव, सामाजिक कुरीतियों आदि में समाज जकड़ा हुआ है। मुझे एक बार पुनः दिल्ली जाने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई और संयोग की बात है कि दिसम्बर 2023 में भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने मुझे डॉ आंबेडकर सेवा श्री अवॉर्ड के लिए आमंत्रित किया। इस बार मैं भी राजस्थानी परिधान में अवॉर्ड लेने के लिए पंचशील आश्रम दिल्ली पहुंचा। मुझे धोती, कुर्ते,पगड़ी,पगरखी पहने देखकर हर कोई मुझसे मिलना चाहता था। मेरे साथ सैंकड़ों लोगों ने सेल्फी,ऑटोग्राफ ली। बहुतों ने मुझे अपने वहाँ आने के लिए अपने कार्ड व मोबाईल नम्बर भी दिए। यहाँ तक कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जी व मुख्य अतिथि महोदय भी मुझसे रूबरू हुए। दोपहर को भोजन का समय हुआ। मुझे लगा आज भी झूठन खाने के लिए बच्चों का हुजूम उमड़ेगा। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि 21-22 सालों में बहुत बदलाव आ चुका था। वहाँ पर बड़े बड़े ब्रिज व सड़कें बन चुकी थी और जो कभी वीरान जगह थी वहाँ पर बड़ी बड़ी कोठियों बन चुकी थी। मैंने उस बस्ती को दूर दूर तक निगाहें डालकर खूब ढूँढा लेकिन अब वह वहाँ कहीं नजर नहीं आ रही थी। शायद शहरीकरण व सौन्दर्यकरण के कारण उन बस्तियों को उजाड़ दिया गया था या वे लोग भोजन की तलाश में कहीं अन्यत्र चले गए होंगे। अक्सर बड़े बड़े शहरों में ऐसा होता आया है जहाँ पूंजीपतियों व बिल्डर्स द्वारा उन बस्तियों पर बुलडोजर चला दिया जाता हैं।

पुनः भारतीय दलित साहित्य अकादमी का ह्रदय से आभार प्रकट करता हूँ कि उन्होंने हमें जीवन जीने के लिए एक अवसर दिया तथा अपनी लेखनी को धार देने के लिए सुअवसर प्रदान किया। आज हम लोग तथागत बुद्ध, संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर, ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, सन्त कबीर, सन्त रविदास आदि के जीवन से प्रेरणा लेकर समाज के लिए लिख रहे हैं।

आलेख- मास्टर भोमाराम बोस
प्रदेश महामंत्री (संगठन): भारतीय दलित साहित्य अकादमी, राजस्थान प्रदेश
सम्पर्क- 9829236009

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