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(महात्मा ज्योतिबा फुले की 197 वीं जयंती 11 अप्रैल 2024)

दया बिना मति गयी, मति बिना नीति गयी, नीति बिना गति गयी, गति बिना वित्त गया, वित्त बिना शुद्र गए, इतना अनर्थ एक अविद्या ने किया:महात्मा ज्योतिबा फुले

सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महान समाज सुधारक, लेखक, साहित्यकार, दार्शनिक, महिला सशक्तिकरण के जनक, अछूतोद्धार, क्रांतिवीर महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म सतारा, महाराष्ट्र में एक माली जाति के परिवार में 11 अप्रैल 1827 को हुआ था। इनके पिताजी का नाम गोविंद राव व माताजी का नाम चिमन बाई था। जब वे मात्र एक वर्ष के थे तब इनकी माताजी का देहांत हो गया था। इस कारण उनका बचपन बहुत विकट परिस्थितियों में गुजरा, उनका लालन-पालन दाई द्वारा किया गया। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा अपने पैतृक गाँव में मराठी स्कूल से की। लेकिन उस समय शूद्रों के साथ छुआछूत व भेदभाव चरमसीमा पर था। इसलिए उन्होंने पढ़ाई छोड़कर घर के काम में लग गए। लेकिन पिताजी के कहने पर फिर से पढ़ना शुरू किया तथा 21 वर्ष की आयु में सातवीं कक्षा पास की। इनके परिवार के लोग फूलों का कार्य करते थे तथा फूलों को चुनना, मालाएं बनाना प्रमुख कार्य होने के कारण उन्हें फुले कहा जाना लगा। कहीं कहीं फूल माली भी कहते हैं। महात्मा ज्योतिबा फुले हमेशा ही स्वाभिमान के साथ जीवन जीने वाले व्यक्ति थी। उनका हमेशा ही ब्राह्मणों से जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष होता था। क्योंकि वे समानता व न्याय के पक्षधर थे। सन 1840 में उनका विवाह सावित्री बाई फुले से हुआ। जो कि उच्च कोटि की महिला थी। ज्योतिबा फुले का मानना था कि सभी समस्याओं की जड़ अशिक्षा है।

जब तक शूद्रों को पढ़ने के अवसर नहीं मिलेंगे तब तक उनका उद्धार नहीं हो सकता है। वे हमेशा महिलाओं के पक्षधर थे। क्योंकि उनका मानना था कि बच्चे की प्रथम शिक्षिका उसकी माँ होती है। अगर महिलाएं पढ़ेगी तो वे अपने बच्चों को उचित संस्कार देगी तथा उन्हें सुयोग्य नागरिक बनाएगी। ऐसा सोचकर उन्होंने सन 1848 में पुणे के भिंडेवाड़ी में बालिकाओं के लिए पहला स्कूल खोला। लेकिन उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा तथा लोगों के ताने सुनने पड़े। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इधर ब्राह्मणों द्वारा उनके परिजनों पर नाना प्रकार के जुल्म ढाने शुरू कर दिए। जिस कारण उनके पिताजी ने उनको व सावित्री बाई फुले को घर से बाहर निकाल दिया। उन्होंने सावित्री बाई फुले को पढ़ाना शुरू किया तथा बाद में पति-पत्नी दोनों बालिकाओं को पढ़ाते थे। महिलाओं द्वारा शिक्षा की देवी माता सावित्री बाई फुले पर कीचड़ उछाला जाता था, लोग उन्हें घृणा की दृष्टि से देखते थे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और स्कूल को चालू रखा। महात्मा ज्योतिबा फुले व सावित्री बाई फुले देश में सबके लिए शिक्षा के द्वार खोलने वाले पहले भारतीय थे। सावित्री बाई फुले को प्रथम भारतीय शिक्षिका बनने का गौरव मिला।अछूतोद्धार के लिए उन्होंने 24 सितम्बर 1883 में सत्य शोधक समाज की स्थापना की तथा लोगों को सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन के लिए जाग्रत ही नहीं बल्कि संगठित भी किया। उनके समाज सेवा के कार्यों को देखते हुए मुंबई में 11 मई 1888 को एक विशाल सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें महान समाज सुधारक राव बहादुर विट्ठल राव कृष्णा जी वन्डेकर ने उन्हें महात्मा की उपाधि प्रदान कर सम्मान किया। महात्मा ज्योतिबा फुले बाल विवाह के कट्टर विरोधी व विधवा विवाह के कट्टर समर्थक थे। इसके साथ ही उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले के साथ मिलकर अछूतोद्धार, नारी शिक्षा, किसानों के हितों के लिए व ब्राह्मणों के शासन के विरुद्ध जीवन प्रत्यन्त कार्य किया। उन्होंने बिना पण्डित के विवाह करने का कार्य किया,जिसे कोर्ट ने भी अनुमति दी। उनके कोई संतान नहीं होने के कारण उन्होंने एक ब्राह्मण विधवा पुत्र को गोद लिया और अच्छी शिक्षा दिलाई, बाद में वह बालक डॉक्टर बनकर समाज सेवा के कार्यों में जुड़ गया। महात्मा ज्योतिबा फुले ने गुलामगिरी, किसान का कोड़ा, छत्रपति शिवाजी, अछूतों की कैफियत, तृतीय रत्न आदि पुस्तकें लिखी। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों में से गुलामगिरी व किसान का कोड़ा उस समय की शूद्रों व किसानों की दशा व दिशा को दर्शाती है। यह पुस्तकें आज भी उतनी ही प्रांसगिक है। संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी ने उनकी इन पुस्तकों को पढा तथा समाज के लिए उनके द्वारा किए कार्यों को आत्मसात करते हुए अपना गुरु माना। बाबा साहेब ने भी उनकी प्रेरणा से ही उनके कारवां को आगे बढ़ाया तथा अछूतोद्धार, छुआछूत, भेदभाव, असमानता, अन्याय, वर्ग भेद आदि के लिए संघर्ष किया। सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले को जीवन के अंतिम समय में लकवा मार दिया था, जिस कारण वह अस्वस्थ हो गए और 28 नवम्बर 1890 को उनका परिनिर्वाण हो गया।

विशेष: महान समाज सुधारक,महिला शिक्षा के जनक महात्मा ज्योतिबा फुले व सावित्री बाई फुले को भारत रत्न देने के लिए सभी मानवतावादी संगठनों को भारत सरकार को लिखना चाहिए।

उपसंहार: महात्मा ज्योतिबा फुले की 197 वीं जन्म जयंती पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

आलेख- मास्टर भोमाराम बोस
प्रदेश महामंत्री(संगठन): भारतीय दलित साहित्य अकादमी, प्रदेश शाखा (राजस्थान)
सम्पर्क- 9829236009

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