• जागो हुक्मरान न्यूज़
~ शिक्षा के प्रति जागरुकता होना बहुत जरूरी है:
~ प्रतिभाशाली अंबेडकर:
हमारे भारत देश में ऐसे कई नेता रहे हैं जिन्होंने शिक्षा के प्रति अपना अमूल्य योगदान दिया है। अपने विचारों से वह समाज के लोगों को शिक्षा के प्रति जागरुक करते थें। ऐसे ही एक प्रतिभाशाली और प्रभावशाली व्यक्ति थे जिनका नाम था “बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर”
~ गतिशील समाज के लिए शिक्षा ज़रुरी: मानवता के मसीहा बाबा साहेब अंबेडकर ने शिक्षा पर कहा था कि “शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो पियेगा वही दहाड़ेगा” बाबा साहेब अंबेडकर का मानना था कि गरीब और वंचित समाज को अगर प्रगति करनी है तो इसका एक मात्र ज़रिया केवल “शिक्षा” है। इस बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे गतिशील समाज के लिए शिक्षा को कितना ज़रुरी मानते थे।
शिक्षा पर बाबा साहेब अंबेडकर के त्रि सूत्र थे शिक्षा, संगठन और संघर्ष। उनका कहना था कि शिक्षित बनों, संगठित हों और संघर्ष करों। इस सूत्र का मतलब स्पष्ट है कि संगठित होने और संघर्ष करने के लिए पहली शर्त शिक्षा है।
शिक्षा पर बाबा साहेब अंबेडकर के विचार:-
- यह जानते हुए की शिक्षा ही जीवन में प्रगति का मार्ग है, छात्रों को कठिन अध्ययन करना चाहिए और समाज के वफादार नेता बनना चाहिए।
- हमें शिक्षा के प्रसार को उतना ही महत्व देना चाहिए जितना कि हम राजनीतिक आंदोलन को महत्व देते हैं।
- तकनीकी और वैज्ञानिक प्रशिक्षण के बिना देश की कोई भी विकास योजना पूरी नहीं होगी।
- शिक्षित बनो, आंदोलन करों, संगठित रहो, आत्मविश्वासी बनो, कभी भी हार मत मानो, यही हमारे जीवन के पांच सिद्धांत हैं।
- किसी भी समाज का उत्थान उस समाज में शिक्षा की प्रगति पर निर्भर करता है।
- ज्ञान मानव जीवन का आधार है। छात्रों की बौद्धिक क्षमता को बढ़ाना और बनाए रखना; साथ ही उनकी बुद्धि को उत्तेजित करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
- आप शिक्षित हो गए इसका मतलब यह नहीं है कि सब कुछ हुआ। शिक्षा के महत्व में कोई संदेह नहीं है, लेकिन शिक्षा के साथ-साथ शील (नैतिकता) भी सुधारी जानी चाहिए… नैतिकता के बिना शिक्षा का मूल्य शून्य है।
- लड़कों और लड़कियों को शिक्षित करें, उन्हें पारंपरिक व्यावसायिक कामों में शामिल न करें।
- मेरा जीवन तीन गुरुओं और तीन उपास्य दैवतों से बना है। मेरे पहले और श्रेष्ठ गुरु बुद्ध हैं। मेरे दूसरे गुरु कबीर हैं और तीसरे गुरु ज्योतिबा फुले हैं… मेरे तीन उपास्य दैवत भी हैं। मेरा पहला दैवत ‘विद्या’, दूसरा दैवत ‘स्वाभिमान’ और तीसरा दैवत ‘शील’ (नैतिकता) है।
- प्राथमिक शिक्षा का सार्वत्रिक प्रचार सर्वांगीण राष्ट्रीय प्रगति के भवन का आधार है।…. इसलिए प्राथमिक शिक्षा के मामले में अनिवार्य कानून बनाया जाना चाहिए।
- इस दुनिया में स्वाभिमान से जीना सीखो। इस दुनिया में कुछ करके ही दिखाना है यह महत्वाकांक्षा हमेशा आपके अंदर होनी चाहिए। (याद रखना) जो लड़ने हैं वही आगे आते हैं।
- स्वच्छ रहना सीखें और सभी दुर्गुणों से मुक्त रहें। अपने बच्चों को शिक्षित करें। उनके मन में धीरे-धीरे महत्वाकांक्षा जगाएं। उन्हें विश्वास दिलाएं कि वे महान व्यक्ति बनने जा रहे हैं। उनके अंदर की हीनता को नष्ट करें। उनकी शादी करने में जल्दबाजी न करें।
- छात्रों को बस्ती बस्ती में जाकर लोगों की अज्ञानता और मूर्खतापूर्ण विश्वासों दूर करना चाहिए, तभी उनकी शिक्षा से लोगों को कुछ लाभ होगा। अपने ज्ञान का उपयोग केवल परीक्षा उत्तीर्ण होने के लिए करना पर्याप्त नहीं होगा। हमें अपने ज्ञान का उपयोग अपने भाइयों और बहनों के सुधार एवं प्रगति करने के लिए करना चाहिए; तभी भारत समृद्ध होगा।
- छात्र स्तर पर ही अपनी योग्यता बढ़ाएँ।
- अपने स्वयं के ज्ञान को धीरे-धीरे बढ़ाते रहना, इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है?• ग्रंथ ही गुरू हैं।
- पढ़ोगे तो बचोगे।
- मुझे लोगों के सहवास से ज्यादा किताबों का सहवास पसंद है।
- यदि कोई व्यक्ति जीवन भर सीखना चाहे तो भी वह ज्ञान सागर के पानी में घुटने जितना ही जा सकता है।
• शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो’। - जाति भेद का सामना:-
बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने समय में शिक्षा प्राप्त के लिये अनेक कष्ट सहे हैं। लेकिन इसके बावजूद भी वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अपने उद्देश्य को पूरा किया था। स्कूल के दिनों में भी जाति भेद को लेकर उन्हें समस्याओँ का सामना करना पड़ा था। एक वक्त था जब बाबा साहेब अंबेडकर कों आर्थिक समस्या भी झेलना पड़ी थी। लेकिन उनकी पढ़ने की लालसा ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और जीवन की तमाम समस्याओं का सामना करता हुए वह आगे बढ़ते गए। उनका कहना था कि गरीब और वंचित समाज को अगर प्रगति करनी है तो इसका एक मात्र ज़रिया केवल “शिक्षा” है।
लेखक: हरीराम जाट नसीराबाद,अजमेर(राज.)
सम्पर्क- 9461376979