• जागो हुक्मरान न्यूज़
देश की जनसंख्या में युवाओं की संख्या काफी हैं, वर्तमान में युवाओं की मूलभूत सुविधाओं एवं भावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। युवा शारीरिक और मानसिक रूप से ऊर्जावान के साथ संवेदनशील होते है। इसलिए कहा जाता है कि समाज और देश के विकास का भार युवाओं के कंधों पर होता है।
सामाजिक चेतना और राष्ट्र निर्माण में उनकी अहम भूमिका होती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में युवाओं के समक्ष अनेकों चुनौतियाँ उनकी भावनाओं को निगल जाने के लिए तैयार हैं, उनका सजग व जागरूक होना लाजमी होगा।
आज युवा वर्ग ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहाँ से उसे अपने भविष्य निर्माण का उचित रास्ता नजर नहीं आ रहा है। इसी उधेड़ बुन में वह चिंतनशील और विचलित है। शायद अपने आपको निराश और हताश महसूस कर रहा होगा तथा मानसिक दबाव झेलने को मजबूर हैं।
कितनी ही विपरीत परिस्थियां हो लक्ष्य प्राप्ति में सकारात्मक सोच और धैर्य से काम लें तो प्रतिकूल को अनुकूल बनाता हुआ अपने लक्ष्य तक पहुचनें में उसे कोई नहीं रोक सकता है।
आज समाज के बुद्धिजीवीे वर्ग व प्रबुद्धजनों का दायित्व बनता हैं कि युवाओं की बातों को धैर्य के साथ सुनें, भावनाओं को समझते हुए उनकी उपेक्षा नही करें बल्कि उनकी भावनाओं की कद्र करें, उनको उचित मार्गदर्शन दें, उनका मनोबल बढाते रहे, मनोबल गिरने नही दें। जिससे वे नकारात्मक भावना से ग्रसित नही हो तथा उनका मानसिक संतुलन बना रहे। आज युवाओं को अंतर्मुखी नहीं बहिर्मुखी बनने की जरूरत हैं।
युवा सकारात्मक सोच और आत्म विश्वास रखते हुए समय को पहचानें क्योकि समय अमूल्य होता है। जिसने समय खो दिया उसने सब कुछ खो दिया। समय कब पलटी मार जाएं कोई भरोसा नही है। शिक्षा अर्जित करने में समय का भरपूर उपयोग करना चाहिए।
गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाएं, सोशल मीडिया का उपयोग ज्ञानार्जन में करें तो बेहतर ही नही बेहतरीन होगा, मनोरंजन में समय बर्बाद करना नादानी ही कहलायेगी, नेट डेटा का उपयोग ज्ञानार्जन में करें।
नशा प्रवृति बहुत बुरी लत हैं जो व्यक्ति को शारीरिक रूप से कमजोर मानसिक रूप से दिवालिया बना देता हैं। नशा प्रवृति से व्यक्ति की कार्यशैली पंगु हो जाती हैं।ऐसी प्रवृत्ति से दूर रहना ही आपके हित में होगा क्योंकि नशा जेब साफ, शरीर हाफ और जीवन को खाक करता है। बुरी संगत में भागीदार न बने क्योकि हमेशा सुसंग करें कुसंग नही करें। “जैसी संगति कीजिये वैसी मति होय।”
क्योकि “सँगतसार अनेक फल” वे स्वतः ही मिल जाते है। कुछ बुराइयां दबे पांव घुस जाती है,जिसका हमें पता भी नही चलता। जो हमारे मौलिक विचारों का सर्वनाश कर जाती है और हमारे हाथ लगती है सिर्फ निराशा, हताशा।
युवागण अपनी प्रतिभा के माध्यम से अपना परचम लहराएं, अपनी पहचान खुद कायम करें विरासत में सम्पति मिलती है, स्वाभिमान नही मिलता, संस्कार और व्यावहारिकता को जीवन का आधार बनाएं तो जीवन आदर्शमय बनेगा तथा आपके व्यक्तित्व में इंसानियत और मानवतावादी विचारधारा प्रफुलित होगी। जो एक बहुत बड़ा सद्गुण हैं।
युवागण श्रमशील बनें, आगे बढ़ने केे लिए लग्न से कार्य करें, जोश जरूर रखे, जोश में होश न खोये। विपरीत परिस्थितियों में संतुलन बनाएं रखना ही सबसे बड़ी समझदारी होती है।
इसलिए सबसे पहले अपने आपको जाने, महापुरुषों की विचारधारा से प्रेरणा लें, अपना लक्ष्य निर्धारण करके उसके अनुरूप सदैव सक्रिय व क्रियाशील रहते हुए यह तय करें कि किन-किन खूबियों के माध्यम से लक्ष्य प्राप्त कर ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है।
आपका उज्ज्वल भविष्य ही देश की तरक्की ओर आन, बान, और शान है। वर्तमान में युवाओं के समक्ष अनेका अनेक चुनौतियाँ हैं फिर भी हमें निराश या हताश नही होना चाहिए। संयम नही खोना हैं संघर्ष जारी रखना हैं। एक दिन मंजिल जरूर मिलेगी।
आज का युवा वर्ग सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और वैचारिक गतिविधियों से अनभिज्ञ है। अपने हक ओर अधिकारों के लिए सदैव जागरूक रहना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य हैं।
अध्ययनरत विद्यार्थियों को गुणात्मक शिक्षा की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए तथा अपनी क्षमता का दुरुपयोग करते हुए काबिल इंसान बनना हैं।
आमतौर पर देखा जाता हैं कि युवा भटक रहे हैं, समय मैनेज नहीं कर रहे हैं और स्मार्ट फोन की गिरफ्त में जकड़े हुए प्रतीत हो रहे हैं, आज फोन उनके जीवन का अहम हिस्सा बन गया हैं इसके दूरगामी परिणाम क्या हो सकते हैं वह कुछ तो झलक रहा हैं बाकी भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ हैं। जो अल्प समय में दृष्टिगोचर हो जायेगा।
जीवन के मूल आधार स्तम्भ:- सुसंस्कार, अनुशासन, मितव्ययिता, शिक्षा, साहस, आत्मविश्वास और कर्त्तव्य निष्ट का होना अतिआवश्यक हैं।
माता पिता द्वारा बच्चों को केवल जन्म देने से रोटी कपड़ा,मकान देने से उनका जीवन नही सँवरता जीवन को उज्ज्वल बनाने के लिए मूल रूप से शिक्षा की जरूरत हैं । शिक्षा के अभाव में व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर व अपरिपक्व होता हैं, उसके जीवन का विकास नही हो पाता हैं।
बच्चों की संख्या नही बढ़ानी हैं। बल्कि उनकी गुणवत्ता बढ़ानी हैं।
एक रोटी कम खाओ लेकिन औलाद को पढ़ाना हैं, केवल नौकरी के लिए नहीं बल्कि एक सशक्त काबिल व्यक्तित्व के धनी के लिए।
भावीपीढ़ी को सशक्त संवेदनशील बनाना हैं तो नशाप्रवृति पर खर्च होने वाले खर्च को शिक्षा में खर्च करना सबसे बड़ी समझदारी होगी।
युवा नौकरी की आश में बैठे बैठे उम्रदराज हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में आपा नही खोना हैं संयम रखना होगा परिस्थियों से संघर्ष करते हुए कोई विकल्प ढूंढ लेना हैं।अरे नौकरी नही सही कोई बात नही खूब धंधे हैं उनको समझदारी से करो तुम्हारी जेब में आवक आनी प्रारम्भ होते ही आत्मबल बढ़ेगा।
25 वर्ष से अधिक उम्र के युवा प्रण करें,प्रतिज्ञा करें कि मैं बेकार बैठा नही रहूंगा, अपने पेरेंट्स पर बहुत आश्रित रह लिया अब नही रहूंगा ।
हमारे देश के पूर्व प्रधान सेवक ने कहा था आराम हराम हैं!
युवाओं से मेरा अनुरोध हैं तुम्हारे में असीम ऊर्जा विद्यमान हैं उसका सकारात्मक उपयोग करलें समय खिसका जा रहा हैं।
अपने कैरियर की परवाह करें। खून पसीने की मिलेगी तो खायेंगे नहीं तो यारों भूखे ही सो जाएंगे। आज समाज और राष्ट्र को गाफिल (नकारा) की नही काबिल व्यक्तियों की जरूरत हैं। वर्तमान में युवा ही देश के कर्णधार हैं। युवाओं का स्वाभिमान जब जग जाएगी देश की तरक्की रुक नही पाएगी। युवाओं से अनेकों आशा और अपेक्षा रहेगी अंत में इतना ही कहूंगा “रुकना तेरा काम नही,बढ़ना तेरी शान, बढ़ता चल रे नौजवान।”
लेखक: मास्टर वीराराम परिहार (भुरटिया)
अध्ययन गोद योजना निर्माता, सामाजिक चिंतक एवं पे बैक टू सोसायटी प्रेरक
सम्पर्क- 9828404866