• जागो हुक्मरान न्यूज़
मैं सदैव लिखता हूं कि अपने समाज के प्रमुख दिग्दर्शक, साधु-संत, प्रशासक, राजनेताओं आदि को अपने कार्यों और ज्ञान पर साहित्य सृजन करना चाहिए। जो भी कुछ अनुभव, ज्ञान प्राप्त किया है उस लिपिबद्ध करें। और यही सबसे बड़ी कमी दिख रही है कि हमारे साधु-संत एवं विद्वान लोग साहित्य सृजन में बहुत पीछे हैं। लिखने के प्रति एकदम नकारात्मक दृष्टिकोण दिखाई देता है। हमारे अधिकांश साधु-संत, महात्मा पीठाधीशों के पास लेखन के नाम पर कुछ भी नहीं हैं। केवल आसान, प्रवचन, भाषण, दान, दक्षिणा, भेंट, शोभायात्रा और हारमोनियम बजाने तक सीमित हैं। स्वाध्याय और शिक्षा के प्रति कोई अधिक उपलब्धि मुझे तो नज़र नहीं आती।
गत दिनों प्रो स्वामी आत्माराम उपाध्याय जी का अजमेर प्रवास था। मेरी छोटी सी मुलाकात में भी उन्होंने शिक्षा संबंधी बातें की और मुझे एक पुस्तक शीर्षक “मेरी यात्रा… संन्यास से पीठाधीश्वर (महामंडलेश्वर) तक की धार्मिक उपलब्धियां” भेंट की।
वैसे मैं जब भी मिला उन्होंने मुझे पुस्तकें, स्मारिका भेंट की। आपने बहुत लिखा है और लिख रहे हैं। इस पुस्तक में स्वामी जी ने संन्यास से पूर्व, पश्चात और संन्यास उपरांत किए गए समाजोपयोगी कार्यों का फोटो सहित संक्षिप्त ब्योरा है। इनके माता-पिता, शिक्षा, चादर समारोह आदि सभी कुछ गागर में सागर की तरह संजोया है। कुछ फोटो संग्रहणीय हैं, जब जीवन की यात्रा, उपलब्धियों की जानकारी और फोटो पुस्तक में संकलित हो जाती है तो वर्तमान और भविष्य के लिए जानकारी का प्रमाणिक स्रोत बन जाती है। वर्ना सब कुछ एक समय बाद भूली बिसरी अप्रमाणिक यादों में चला जाता है।
स्वामी आत्माराम उपाध्याय जी भारतीय दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली के राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं।
अपने समाज के साधु-संतों महंतों, पीठाधीशों को स्वामी जी द्वारा किए जा रहे शिक्षा, समाजोपयोगी कार्यों से प्रेरणा मिलेगी और वो भी अपने अनुभव ज्ञान को लेखनीबध्द करेंगे।
स्वामी आत्माराम उपाध्याय जी ने अपने माता-पिता पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा आदि की जानकारी दी है। हमारे अधिकांश साधु-संत अपने परिवार की पृष्ठभूमि, शिक्षा-दीक्षा, की जानकारी को छुपाकर रखते हैं। वो साधु बनने के बाद के कार्यों की आत्म प्रशंसा में ही नजर आते हैं। कुछ अच्छे संतों को विशेष लोग गौसेवा के नाम पर गोशाला सेवा में लगा देते हैं। इससे ऐसे साधु-संत दिन-रात सारे काम छोड़कर गायों के लिए चारा दाना पानी व्यवस्था, सरकारी अनुदान, वाहन, साधन, दान आदि में ही रहते हैं। गोशाला संचालन, सेवा करने के पीछे के मकसद को समझना हर किसी के बस की बात नहीं है। आस्था, धर्म, सेवा के नाम बहुत कुछ उपयोगी बातें , कर्तव्य पीछे छूट जाता है।
मैंने एक बार एक संत की पारिवारिक पृष्ठभूमि, शैक्षणिक स्तर, आध्यात्मिक शिक्षा, माता-पिता की जिम्मेदारी प्राप्त करने के लिए सोशल मीडिया पर आग्रह किया था। लेकिन स्वयं संत सहित किसी शिष्य ने भी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई। एक भक्त ने एक महीने में जानकारी बताने की बात एक वाट्सएप ग्रुप में कहीं थी लेकिन कई महीने बीत गए। खैर।
साधु-संतों के पास गोपनीय रखने का कुछ नहीं होता।
हमारे सभी धार्मिक, ऐतिहासिक स्थलों की ऐतिहासिक जानकारी प्रमाणिक तथ्यों के साथ एकत्र कर जल्दी लिपिबद्ध करनी होगी वर्ना इन स्थानों पर भव्य मंदिर, सामूदायिक भवन बनते नहीं लगेगी और हम ठगे से देखते रहेंगे।
स्वामी आत्माराम उपाध्याय जी की पुस्तक “मेरी यात्रा… संन्यास से पीठाधीश्वर (महामंडलेश्वर) तक की धार्मिक उपलब्धियां” में रंगीन चित्रात्मक झलकियां बहुत सुन्दर है। उन्होंने जहां भी कार्य कराये हैं और इनके सुझावों से जहां कार्य हुए हैं, निर्माण कार्य सहित उनकी जानकारी है।
मुझे सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के परिणाम की फोटो की कमी लगी। इनके आश्रम में खूब पुस्तकें हैं। आज हमारे शिक्षाविदों द्वारा संचालित छात्रावासों में शिक्षारत एवं शिक्षा ग्रहण करने पर उपलब्धियों के रिकार्ड उपलब्ध नहीं हैं लेकिन स्वामी जी के पास सब अभिलेख सुरक्षित और पारदर्शी रूप में संरक्षित है।
अपने समाज में साधु-संत के रूप में प्रो स्वामी आत्माराम उपाध्याय जी अच्छा कार्य कर रहे हैं।
सामाजिक कुरीतियों के लिए भी योजना बनाकर काम करना होगा।
पुस्तक संग्रहणीय है। पुस्तक मंगवाने के लिए पुस्तक के मुख पृष्ठ पर पता लिखा हुआ है।
स्वामी जी का अभिवादन।🙏🏻💐
लेखक: डॉ गुलाब चन्द जिन्दल ‘मेघ’ (अजमेर)
सम्पर्क- 9460180510