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आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा क्यों कहते हैं – एक तथ्यात्मक विवेचन
भारत सहित अन्य राष्ट्रों में विक्रम संवत की आषाढ़ पूर्णिमा का मानव के आध्यात्म एवं मानवीय जीवन की सफलता के लिए महत्वपूर्ण स्थान है।
भारत वर्ष के इतिहास के स्वर्णिम काल के पन्नों को जब पलटते हैं तो मानवीय जीवन की सफलता के सूत्रों से सुसज्जित बौद्ध कालीन इतिहास से परिचय होता है।
तथागत बुद्ध की कालावधि से जब परिचित होते हैं तो आषाढ़ पूर्णिमा के महत्व की सही जानकारी मिलती है।
समयावधि के बाद कुछ अमानवीय व्यवस्था के समर्थकों ने मानव जीवन की सफलता के पथ की प्रेरक आषाढ़ पूर्णिमा के महत्व के मूल तथ्य पर पर्दा डाल कर गुरु की पूजा करने जैसी बात प्रचारित कर दिग्भ्रमित कर दिया।
विश्व में मानव जीवन की सफलता के सूत्र प्रज्ञा, शील, समाधि बताने वाले सम्यक सम्बुध्द (गौतम बुद्ध) के जीवन से जुड़ी आषाढ़ पूर्णिमा को भारत में गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा क्यों कहते हैं –
- सिद्धार्थ गौतम को जब बोधि ज्ञान प्राप्ति हुई (बुद्ध बने) तो मानव कल्याणार्थ सबसे पहली बार धर्मोंपदेश आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सारनाथ में अपने पांच परिव्राजकों (शिष्यों) को दिया था। पांचों परिव्राजकों ने तथागत बुद्ध को अपना गुरु स्वीकार किया था। (ईसा पूर्व 528)
इसी दिन को बौद्ध कालीन इतिहास से “गुरु पर्व” कहा जाने लगा।
तथागत बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांचों परिव्राजकों को धम्म दीक्षा देकर बौद्ध भिक्षु बनाकर विश्व में कल्याण के लिए बौद्ध धम्म का सूत्रपात किया। इस दिन को “धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस” बौद्ध धम्म की स्थापना के तौर पर जाना जाता है।
तथागत बुद्ध द्वारा आषाढ़ पूर्णिमा को दिए धम्म उपदेश को बौद्ध जगत में “धम्म चक्कप्पवत्तन सुत्त” नाम से जाना जाता है।
पहली बार सारनाथ में तथागत बुद्ध से धर्मोंपदेश ग्रहण कर भिक्षु बनने वाले पांच परिव्राजकों के नाम यह हैं –
1- कोण्डिन्य
2- अस्सजि
3- वप्प
4- महानाम
5- भद्दिय
(सिद्धार्थ गौतम को वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे बोधि ज्ञान प्राप्त हुआ, बुद्ध बने एवं लगभग 250 किलोमीटर दूरी पर स्थित सारनाथ में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन तथागत बुद्ध के रूप में पहला धम्म उपदेश देकर विश्व में धम्मचक्र प्रवर्तन किया)
तथागत बुद्ध के निर्देश पर ही आषाढ़ पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) के दिन से ही बौद्ध धर्म के भिक्षुओं के लिए ‘वर्षावास’ प्रारंभ होता है। यह वर्षावास आषाढ़ पूर्णिमा से आश्विन पूर्णिमा (तीन माह) की अवधि तक रहता है। वर्षावास को श्रमण संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। वर्षावास अवधि में बौद्ध भिक्षु तीन माह तक एक ही स्थान पर रहते हैं स्वाध्याय करते हैं और धम्म प्रचार कर मानव जगत को अपनी देसना से लाभान्वित करते हैं। वर्षावास बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक तप के समान है।
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ गौतम की माता महामाया ने गर्भधारण किया था।
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही शाक्य राजकुमार सिद्धार्थ गौतम ने लोक कल्याण की भावना के अंतर्गत राज्य से महाभिनिष्क्रमण (सन्यास) किया था।
आषाढ़ पूर्णिमा का दिन विश्व में बौद्ध धम्म अनुयायियों के लिए पवित्र दिन और गुरु पर्व है।
तथागत बुद्ध ने पहली बार अपने शिष्यों को धर्मोंपदेश देकर मानव जगत के कल्याण का मार्ग बताया था।
“गुरु – जो अज्ञान को मिटा दे।”
इसीलिए आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु की पूजा करने का नहीं है बल्कि अपने गुरु से मानव जीवन की सफलता के लिए ज्ञान प्राप्त और धम्म दान करने का दिन है। कुछ दिग्भ्रमित लोग यह भौतिक अवधारणा पाल लेते हैं कि गुरु के चरणों (पैरों) में जाने से बेड़ा पार हो जाता है। गुरु के बताए मार्ग पर कर्तव्यनिष्ठ होकर नैतिक आचरण पर चलने पर बेड़ा पार होता है।
गुरु सदैव मार्गदाता होते हैं मोक्षदाता नहीं। विश्व में तथागत बुद्ध ही हैं जो अपने शिष्यों को कभी यह नहीं कहते कि तुम मेरी शरण में आओ उन्होंने सदैव कहा है कि मैं मार्गदाता हूं मोक्षदाता नहीं हूं।
गुरु पूर्णिमा (3 जुलाई,2023 सोमवार) पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं।💐
भवतु सब्ब मंगलं
लेखक: डॉ गुलाब चन्द जिन्दल ‘मेघ’
अजमेर (राज.) सम्पर्क- 9460180510