• जागो हुक्मरान न्यूज़
“देखा भी तो क्या देखा”
देखा भी तो क्या देखा
अगर देखा नहीं गोरखाना।
देखता हुं दृश्य अब जब मैं
मेङ पर खेत की बैठा संगिनी साथ।
यह हरा ठिगना मौठ
बांधे मुरैठा रंगिन शीश पर,
फूलों से सजकर खङा हैं।
देखा भी तो क्या देखा,
अगर देखा नहीं गोरखाना।
बीच में बाजरी हठिली
देह पतली,कमर लचीली
बांध शीश पर चांदी मुकुट
लहर लहर लहराव है
देखा भी तो क्या देखा
अगर देखा नहीं गोरखाना ।
और ग्वार की न पूछो ,
सबसे अलग अकङ दिखावै।
हरे पत्तों से लदा फंदा हैं
हरे पन्ने सी फली चमकावै है।
प्रकृति अनुराग रस बरसावै है।
देखा भी तो क्या देखा
अगर देखा नहीं गोरखाना।।
मौलिक रचना-
इंद्रजीत सिहाग, गोरखाना, नोहर (हनुमानगढ़) राज.