मजदूर दिवस विशेष : मजदूर नेता के रूप में डॉ.भीमराव आंबेडकर ने ‘मजदूरों’ के लिए क्या-क्या किया!

• जागो हुक्मरान न्यूज़

1 मई को दुनिया मेहनतकश तबके की मेहनत को सलाम करती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में मजदूरों की भलाई का श्रेय किसको जाता है ? वो कौन है जिसने मजदूरों के काम के घंटे से लेकर इंश्योरेंस तक की लड़ाई लड़ी?

आज दुनिया भर में मजदूर दिवस मनाया जा रहा है… 1 मई को दुनिया मेहनतकश तबके की मेहनत को सलाम करती है। कोरोना काल में मज़दूरों पर सबसे ज़्यादा मार पड़ रही है। लेकिन आज़ादी से भी पहले इसी तरह की मार से मज़दूरों को आज़ादी दिलाने वाला कौन था ? क्या आप जानते हैं कि भारत में मजदूरों की भलाई का श्रेय किसको जाता है ? वो कौन है जिसने मजदूरों के काम के घंटे से लेकर इंश्योरेंस तक की लड़ाई लड़ी? जवाब है डॉ. बी आर आंबेडकर…

आपको बताते हैं बाबा साहब ने मजदूर वर्ग के लिए क्या कुछ किया ?
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काम के घंटे 14 से घटाकर 8 कराए:- आज भारत में काम के 8 घंटे हैं तो इसका श्रेय बाबा साहब को ही जाता है। 27 नवंबर 1942 को हुई सातवीं लेबर कॉन्फ्रेंस में बाबा साहब ने काम के घंटे 14 से घटाकर 8 कर दिए। उससे पहले भारत में मजदूरों को 14-15 घंटे काम करना पड़ता था। ये बिल पेश करते हुए बाबा साहब ने कहा था ‘काम के घंटे घटाने का मतलब है रोजगार का बढ़ना लेकिन काम का समय 12 से 8 घंटे किये जाते समय वेतन कम नहीं किया जाना चाहिए।’ बाबा साहब ने मजदूरों को दुर्घटना बीमा, प्रोविडेंट फंड, टीए-डीए, मेडिकल लीव और छुट्टियों जैसे लाभ भी दिलाए।

मजूदरों की भलाई के लिए 10 बिल ड्राफ्ट किए:– बाबा साहब ने मजदूरों की भलाई के लिए खुद 10 बिल ड्राफ्ट किए।

  • द कोल माइंस सेफ्टी (स्टॉविंग) बिल,
  • द फैक्ट्रीज़ (अमेंडमेंट) बिल,
  • द फैक्ट्रीज़ (सेंकड अमेंडमेंट) बिल,
  • वर्कमेन कम्पेन्सेशन (अमेंडमेंट) बिल,
  • द इंडियन माइंस (अमेंडमेंट) बिल,
  • वर्कर्स वेलफेयर एंड सोशल सिक्योरिटी बिल,
  • मीका माइंस वेलफेयर बिल,
  • इंड्स्ट्रियल वर्कर्स हाउसिंग एंड हेल्थ बिल,
  • टी कंट्रोल (अमेंडमेंट) बिल ड्राफ्ट किए थे।

आज के नेता एसी कमरों में बैठकर नीतियां बनाते हैं लेकिन बाबा साहब खुद ग्राउंड ज़ीरों पर पहुंचते थे। बाबा साहब ने धनबाद कोल माइंस और रानीगंज कोल फिल्ड का दौरा किया और खदानों में काम करने वाले मजदूरों की हालत पर विस्तृत रिपोर्ट भी बनाई। 9 अप्रैल 1946 को बाबा साहब मीका माइंस लेबर वेलफेयर फंड बिल लेकर आए ताकि मजदूरों की भलाई के लिए एक अलग से फंड बनाया जा सके।

महिलाओं के लिए माइंस मैटरनिटी बेनेफिट (अमेंडमेंट) बिल:- 29 जुलाई 1943 को बाबा साहब कई और बिल लेकर आए। माइंस में काम करने वाली महिलाओं के लिए माइंस मैटरनिटी बेनेफिट (अमेंडमेंट) बिल लेकर आए और उसे पास कराया… ताकि बच्चा पैदा होने पर महिला को मातृत्व अवकाश मिल सके और उसका वेतन भी ना कटे। माइंस मैटरनिटी बेनेफिट (अमेंडमेंट) बिल पर बोलते हुए बाबा साहब ने कहा ‘यह काम से अनुपस्थित’ या ‘काम से’ शब्द को हटाने के लिए है, जो मातृत्व लाभ अधिनियम की धारा 5 से अस्पष्टता का कारण बनता है और इस खंड को इस आशय को पढ़ने के लिए सलाह दी जाती है कि ‘चार सप्ताह से पहले हर दिन महिला को प्रसव से पहले मातृत्व लाभ का हक हो।’

समान काम के लिए समान वेतन:- साथ ही मर्दों के समान महिलाओं को भी समान वेतन दिलाने के लिए भी बाबा साहब ने संघर्ष किया था। असेंबली में बाबा साहब ने कहा था… ‘हमें इसका भी ख्याल रखना चाहिए कि महिलाओं को भी पुरुषों के समान वेतन मिले। मुझे लगता है कि ये पहली बार है जब किसी इंडस्ट्री में समान काम के लिए समान वेतन देने का सिद्धांत लागू किया गया है वो भी बिना किसी लैंगिक भेदभाव के। हमें इसका भी ध्यान रखना होगा कि महिलाएं उस गलियारे में काम ना करें जो साढ़े 5 फीट से छोटा हो।’ इससे पहले जोखिम भरी जगहों पर भी महिलाओं से काम कराया जाता था। लिफ्टिंग बैन ऑन एम्पलॉयमेंट… वर्क इन कोल माइंस (पेज नंबर 𝟏𝟒𝟑) 𝑫𝒓 𝑨𝒎𝒃𝒆𝒅𝒌𝒂𝒓 𝒂𝒔 𝑴𝒆𝒎𝒃𝒆𝒓 𝒐𝒇 𝑻𝒉𝒆 𝑮𝒐𝒗𝒆𝒓𝒏𝒐𝒓-𝑮𝒆𝒏𝒆𝒓𝒂𝒍’𝒔 𝑬𝒙𝒆𝒄𝒖𝒕𝒊𝒗𝒆 𝑪𝒐𝒖𝒏𝒄𝒊𝒍 𝟏𝟗𝟒𝟐-𝟒𝟔 (𝑽𝒐𝒍-𝟏𝟎, 𝑷𝒂𝒈𝒆 𝒏𝒐. 𝟏𝟒𝟑)

महिलाओं के लिए बाबा साहब ने खदान मातृत्व लाभ क़ानून, महिला कल्याण कोष, महिला एवं बाल श्रमिक संरक्षण क़ानून, महिला मजदूरों के लिए मातृत्व लाभ क़ानून के साथ उन्होंने भूमिगत कोयला खदानों में महिला मजदूरों से काम न कराने के क़ानून की बहाली करवाई।

लेबर यूनियन बनाने का अधिकार दिलाया:- बाबा साहब लेबर यूनियन को भी बेहद अहम मानते थे ट्रेड यूनियन एक्ट भले 1926 में बन गया था मगर मालिकों द्वारा श्रमिक संगठनों को मान्यता देने को अनिवार्य बनाने का क़ानूनी संशोधन 1943 में हुआ । 13 नवंबर 1943 को बाबा साहब इंडियन ट्रेड यूनियन (अमेंडमेंट) बिल लेकर आए थे ताकि फैक्ट्री मालिक ट्रेड यूनियन्स को मान्यता दें। इसी समय काम करते समय दुर्घटना का बीमा, जिसे बाद में ईएसआई का रूप मिला क़ानून बना। इसी समय बने कोयला और माइका कर्मचारियों के प्रोविडेंट फण्ड और सारे मजदूरों के प्रोविडेंट फंड्स भी अस्तित्व में आये।

बाबा साहब ने लेबर पार्टी बनाई:- बाबा साहब ने 15 अगस्त 1936 को इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की थी, उसके टिकट पर वे निर्वाचित हुए थे और 7 नवंबर 1938 को एक लाख से ज्यादा मजदूरों की हड़ताल का नेतृत्व भी डॉ. आंबेडकर ने किया था। इस हड़ताल के बाद सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने मजदूरों का आह्वान किया कि मजदूर मौजूदा लेजिस्लेटिव काउंसिल में अपने प्रतिनिधियों को चुनकर सत्ता अपने हाथों में ले लें। 7 नवंबर की हड़ताल से पहले 6 नवंबर 1938 को लेबर पार्टी द्वारा बुलाई गई मीटिंग में बड़ी संख्या में मजदूरों ने हिस्सा लिया। आंबेडकर स्वयं खुली कार से श्रमिक क्षेत्रों का भ्रमण कर हड़ताल सफल बनाने की अपील कर रहे थे।

ये हड़ताल डॉ. आंबेडकर ने मजदूरों के हड़ताल करने के मौलिक अधिकार की सुरक्षा के लिए बुलाई थी। सितंबर 1938 में बम्बई विधानमंडल में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने औद्योगिक विवाद विधेयक प्रस्तुत किया था। इस विधेयक के तहत कांग्रेसी सरकार ने हड़ताल को आपराधिक कार्रवाई की श्रेणी में डालने का प्रस्ताव किया था। डॉ. आंबेडकर ने विधानमंडल में इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा, ‘हड़ताल करना सिविल अपराध है, फौजदारी गुनाह नहीं। किसी भी आदमी से उसकी इच्छा के विरूद्ध काम लेना किसी भी दृष्टि से उसे दास बनाने से कम नहीं माना जा सकता है, श्रमिक को हड़ताल के लिए दंड देना उसे गुलाम बनाने जैसा है। हड़ताल एक मौलिक स्वतंत्रता है जिस पर मैं किसी भी सूरत में अंकुश नहीं लगने दूंगा। यदि स्वतंत्रता कांग्रेसी नेताओं का अधिकार है, तो हड़ताल भी श्रमिकों का पवित्र अधिकार है।’

डॉ. आंबेडकर के विरोध के बावजूद कांग्रेस ने बहुमत का फायदा उठाकर इस बिल को पास करा लिया। इसे ‘काले विधेयक’ के नाम से पुकारा गया। इसी विधेयक के विरोध में डॉ. आंबेडकर के नेतृत्व में लेबर पार्टी ने 7 नवंबर 1938 की हड़ताल बुलाई थी।

वतन प्रथा का अंत कराया17:- सितम्बर, 1937 को उन्होंने महारों को गुलाम बनाए रखने के लिए चली आ रही ‘वतन प्रथा’ खत्म करने के लिए एक विधेयक पेश किया था। वतन प्रथा के तहत थोड़ी सी जमीन के बदले महारों को पूरे गांव के लिए श्रम करना पड़ता था और अन्य सेवा देनी पड़ती थी. एक तरह से वे पूरे गांव के बंधुआ मजदूर होते थे। इस विधेयक में यह भी प्रावधान था कि महारों को उस जमीन से बेदखल न किया जाए, जो गांव की सेवा के बदले में भुगतान के तौर पर उन्हें मिली हुई थी। शाहू जी महराज ने अपने कोल्हापुर राज्य में 1918 में ही कानून बनाकर ‘वतनदारी’ प्रथा का अंत कर दिया था तथा भूमि सुधार लागू कर महारों को भू-स्वामी बनने का हक़ दिलाया। इस आदेश से महारों की आर्थिक गुलामी काफी हद तक दूर हो गई।

पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद का कड़ा विरोध:- मजदूरों और किसानों के इस संघर्ष का नेतृत्व करते हुए डॉ. आंबेडकर ने सोशलिस्टों और कम्युनिस्टों का भी सहयोग लिया, लेकिन यह सहयोग ज्यादा दिन नहीं चल पाया, क्योंकि कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट पूंजीवाद को तो दुश्मन मानते थे लेकिन वे ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष करने को बिल्कुल ही तैयार नहीं थे। जबकि डॉ. आंबेडकर ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद दोनों को भारत के मेहनतकशों का दुश्मन मानते थे।

12-23 फरवरी 1938 को मनमाड में अस्पृश्य रेलवे कामगार परिषद की सभा की अध्यक्षता करते हुए डॉ. आंबेडकर ने कहा था, ‘भारतीय मजदूर वर्ग ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद दोनों का शिकार है और इन दोनों व्यवस्थाओं पर एक ही सामाजिक समूह का वर्चस्व है। लेकिन कांग्रेस, सोशलिस्ट और वामपंथी तीनों अस्पृश्य कामगारों के विशेष दुश्मन ब्राह्मणवाद से संघर्ष करने को तैयार नहीं हैं।’

बाबा साहब ने इस देश के मजदूरों के लिए इतना कुछ किया लेकिन फिर भी उन्हें मजदूर नेता के रूप में मान्यता नहीं मिल पाई… साज़िश करके उन्हें सिर्फ एससी,एसटी के नेता तक सीमित कर दिया गया। ना ही मजदूरों पर उनके काम को पढ़ने दिया गया और ना ही कभी उनके इस अमूल्य योगदान को दुनिया के सामने सही ढंग से प्रस्तुत किया… लेकिन सच ज्यादा समय तक छुप नहीं पाता…. बाबा साहब जैसे महानायक को आज पूरी दुनिया सलाम कर रही है।


मुल अधिकार एवं श्रम सम्बन्धी प्रावधान :- मूल अधिकार
स्वातंत्रय-अधिकार

अनुच्छेद 19: वाक-स्वातंत्रय आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण-

(1) सभी नागरिकों को –
(ग) संगम या संघ बनाने का, अधिकार होगा।

शोषण के विरूद्ध अधिकार-

अनुच्छेद 23: मानव के दुव्र्यापार और बलात् श्रम का प्रतिषेध:-

(1) मानव का दुव्र्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात् श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।

अनुच्छेद 24: कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध:-

चैदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नही लगाया जाएगा।

राज्य की नीति के निदेशक तत्व:-

अनुच्छेद 39: राज्य द्वारा अनुशरणीय कुछ नीति तत्व:
राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से:-

  1. पुरूष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो,
  2. पुरूषों और स्त्रियों दोनों का समान कार्य के लिये समान वेतन हो,
  3. पुरूष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों,
  4. बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाएं और बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए। √अनुच्छेद 41: कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकारः
    राज्य अपनी आर्थिक सामथ्र्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा। √अनुच्छेद 42: काम की न्याससंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंधः
    राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता के लिए उपबंध करेगा। √अनुच्छेद 43: कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि:

राज्य, उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि के, उद्योगों के या अन्य प्रकार के सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवन-स्तर और अवकाश का संपूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा………….

अनुच्छेद 43-कः उद्योगों के प्रबंधन में कर्मकारों का भाग लेना:
राज्य किसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों, स्थापनों या अन्य संगठनों के प्रबंधन में कर्मकारों का भाग लेना सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त विधान द्वारा या किसी अन्य रीति से कदम उठाएगा।
“श्रम” संबंधी अधिकांश महत्वपूर्ण विषय संविधान की समवर्ती सूची में हैं, जिसकी सुसंगत प्रविष्टियों का उद्धरण निम्नानुसार है:-

  1. व्यापार संघ, औद्योगिक और श्रम विवाद
  2. सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक बीमा, नियोजन और बेकारी
  3. श्रमिकों का कल्याण जिसके अंतर्गत कार्य की दशायें, भविष्य निधि, नियोजक का दायित्व, कर्मकार प्रतिकर, अशक्तता और वार्धक्य पेंशन तथा प्रसूति सुविधाएं हैं।
    समवर्ती सूची के उक्त विषयों पर कानून बनाने के लिए संसद और राज्य के विधान-मण्डल दोनों सक्षम हैं।

कामगारों(मजदूरों) के वैधानिक अधिकार:(𝙇𝘼𝘽𝙊𝙐𝙍 𝙇𝘼𝙒)

  • कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम: 1923
  • वेतन भुगतान अधिनियम: 1936
  • औद्योगिक विवाद अधिनियम: 1947
  • कारखाना अधिनियम: 1948
  • न्यूनतम वेतन अधिनियम: 1948
  • कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम: 1952
  • ठेका श्रमिक (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम: 1947
  • बालक और कुमार श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम: 1986
  • भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार (नियोजन विनियमन एवं सेवा शर्ते) अधिनियम: 1996

लेखक- हरीराम जाट नसीराबाद, अजमेर (राज.)
सम्पर्क: 94613-76979

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