• जागो हुक्मरान न्यूज़
समाज का बहुत बड़ा वर्ग खेतिहर,कमठा,खनिज मजदूर के रूप में कार्य करता आ रहा है। इनके पास जीविकोपार्जन के लिए अन्य कोई संसाधन नहीं होने के कारण ये लोग मजदूरी करके अपने परिवार का बड़ी मुश्किल से गुजरा करते हैं।
यहाँ तक कि मजदूरी के लिए इन लोगों को पलायन भी करना पड़ता है। ऐसे में इनके बच्चों की शिक्षा नहीं हो पाती है। ऐसे परिवार रोजगार के लिए दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं और पोष्टिक आहार नहीं मिलने तथा समय पर बीमारी का इलाज नहीं होने के कारण कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। खनिज व पत्थर (कमठा मजदूर) मजदूरों की स्तिथि बहुत ही गम्भीर है। अधिकांश परिवारों के मुखिया सिलिकोसिस बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं, उनके फेंफड़े पूर्ण रूप से कमजोर हो जाते हैं और वे खांसी, दमा आदि के शिकार हो जाते हैं।
समय पर इलाज नहीं करवाने या उचित इलाज के अभाव में ऐसे परिवारों की स्तिथि बहुत ही गम्भीर हो जाती है। हालांकि ऐसे लोगों को सरकार द्वारा आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है लेकिन सिलिकोसिस बीमारी को प्रमाणित करने के लिए भी बहुत ही जटिल प्रक्रिया है जिस कारण बहुत से लोग इसका लाभ लेने से वंचित हो जाते हैं। जैसे तैसे करके अगर उन्हें इस बीमारी से ग्रस्त होने का प्रमाण पत्र मिल भी जाता है तो भी सरकार से आर्थिक सहायता के लिए प्रक्रिया इतनी जटिल है कि वह वर्षों तक सम्बंधित विभागों के इर्द गिर्द चक्कर काटने को मजबूर हो जाता है।
कमठा मजदूर यूनियन के अध्यक्ष व समाज सेवी लक्ष्मण वडेरा जो कि ऐसे पीड़ित परिवारों की समस्या को समय समय पर प्रशासन के सामने उठाते आ रहे हैं। राजस्थान पत्रिका के ब्यूरो चीफ रतन दवे बाड़मेर ने जब पीड़ित परिवारों की व्यथा को सुना तो उन्होंने प्रदेश स्तर पर उजागर किया।
सैंकड़ों लोगों ने आर्थिक सहायता के लिए वर्षों से आवेदन कर रखा है लेकिन उन्हें यह सहायता नहीं मिली है,कई लोगों की तो आर्थिक सहायता के इंतजार में घुट घुट कर मौत हो चुकी है लेकिन मृतक के आश्रितों को सहायता नहीं मिली है।
खनिज क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों के लिए विकट समस्या है। जोधपुर जिले की स्थिति बहुत ही नाजुक बनी हुई है। बहुत से परिवार उजड़ गए हैं और कई महिलाएं कम उम्र में विधवा हो चुकी है। अतः इन लोगों व ऐसे परिवारों को समय पर सरकार द्वारा इलाज व आर्थिक सहायता मिल जाए तो कई महिलाओं का सुहाग उजड़ने से रह सकता है और कई मजदूर असमय मौत से बच सकते हैं।
मानवतावादी संगठनों एवं सेवाभावी प्रबुद्धजनों को भी इस ओर कार्य करना चाहिए।
लेखक – मास्टर भोमाराम बोस, प्रदेश संगठन मंत्री राजस्थान मेघवाल परिषद