• जागो हुक्मरान न्यूज़

दलितों, पिछड़ों एवं महिलाओं के मसीहा के रूप में पुकारे जाने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827

को महाराष्ट्र के पूना (आधुनिक पुणे) के पास एक गांव में पिता श्री गोविन्द जी माली के घर हुआ था। श्री गोविन्द जी का व्यवसाय फूलों का होने के कारण उन्हें फूल माली कहा जाता था।

ज्योतिबाफुले की माता चिमनाबाई का देहान्त उस समय हो गया, जब ज्योतिबा मात्र एक वर्ष के ही थे। ऐसे में पिता गोविन्द जी ने दूसरी शादी न कर ज्योतिबा माता और पिता दोनों का प्यार दिया।

उस समय जातिवाद और ऊंच-नीच का बोलबाला था। | पढ़ने-लिखने का अधिकार केवल ब्राह्मण एवं उच्च वर्ग के ही पास था। दलित व पिछड़ी जातियां शिक्षा से वंचित थीं।

बम्बई की अंग्रेजी सरकार ने 1825 में प्राथमिक विद्यालय खोले एवं बिना भेदभाव के दलितों और पिछड़ों को प्रवेश देने का आदेश दिया। बालक ज्योतिबा की प्रारम्भिक शिक्षा ऐसे स्कूल में हुई। ज्योतिबा ने पढ़ाई में अच्छी लगन के साथ कुशाग्र व मेधावी छात्र का परिचय दिया। ज्योतिबा ने शीघ्र ही मराठी के अलावा गणित व अंग्रेजी में भी अपनी पकड़ बना ली। फिर भी उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। ज्योतिबा अपने पुश्तैनी धंधे-फल, फूल व साग सब्जियों की खेतीबाड़ी में लग गये।

ज्योतिबा का 14 वर्ष की उम्र में ही बाल विवाह कर दिया गया। यद्यपि ज्योतिबा अपने धंधे में मन से लगे हुए थे, पर पढ़ाई के प्रति अपनी रुचि के कारण स्वाध्याय भी करते रहते थे। उनकी इस गहरी लगन से प्रभावित होकर एक ईसाई पादरी लेजिट ने उनके पिता को समझा-बुझाकर ज्योतिबाफुले को पुनः एक मिशन स्कूल में प्रवेश दिलवा दिया।

तीन वर्ष के व्यवधान के बावजूद ज्योतिबा ने पहले ही वर्ष में विद्यालय में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर अपनी योग्यता व लग्न का झंडा फहरा दिया।

मिशन स्कूल में ज्योतिबा ने शिक्षा के अलावा ‘मानवता’ का अर्थ, इंसानों के अधिकारों व कर्तव्यों के बारे में भी गहराई से जाना।

शिक्षा पूर्ण करने के बाद माली का बेटा पुनः अपने धंधे में आ गया। परन्तु ज्योतिबा का मन व दिमाग भारत की अस्पृश्यता, जातिवाद व पाखण्ड से संघर्ष कर रहा था। ज्योतिया का मन व दिमाग एक मानवतावादी क्रांति की ओर अग्रसर हो चुका था, क्योंकि उन्होंने स्वयं के साथ-साथ दलितों, पिछड़ों और स्त्रियों को नारकीय जीवन व्यतीत करते हुए देखा।

समाज में एक आमूलचूल परिवर्तन की ओर अग्रसर ज्योतिबा ने सन् 1848 में मात्र 21 वर्ष की उम्र में दलित व पिछड़ी जाति की महिलाओं के लिए एक विद्यालय प्रारम्भ कर दिया। तब तक ज्योतिबा अपनी पत्नी श्रीमती सावित्री बाई फुले को शिक्षित कर चुके थे। इसलिए जब स्कूल के लिए महिला शिक्षिका नहीं मिली तो उन्होंने सावित्री फुले को ही इस कार्य में लगा दिया। सावित्री बाई सहर्ष यह कार्य करने लगीं और आधुनिक भारत के इतिहास में पहली भारतीय महिला शिक्षिका बनीं।

इस कार्य से बौखलाये कट्टर पंथियों ने सावित्री फुले पर मिट्टी व पत्थर फेंके कई प्रकार से अपमानित किया। महाराष्ट्र की दीवारों पर पोस्टर चिपका दिये कि यदि कोई दलित-पिछड़ा पढ़ेगा तो नरक में जायेगा और कोई औरत पढ़ेगी तो विधवा हो जायेगी तथा कोई लड़की पढ़ेगी तो उसकी शादी नहीं होगी।

3 जुलाई 1851 में ज्योतिबा फुले ने दलित-पिछड़ी जाति की लड़कियों के लिए एक और स्कूल प्रारम्भ कर दिया। इस अच्छे कार्य के लिए उन्हें अंग्रेजी सरकार व जनता से भी सहयोग मिला। सन् 1852 में अंग्रेजी सरकार ने इन महिला विद्यालयों के लिए 75 रू. की मासिक आर्थिक सहायता भी स्वीकृत कर दी।

ज्योतिबा फुले, जिन्हें लोग आदर से महात्मा कहते थे, का मानना था कि लड़कियों का पढ़ना बहुत जरूरी है। वे मानते थे कि एक लड़की की पढ़ाई दो घरों (पीहर और ससुराल) को रोशन करती है। माँ पढ़ी-लिखी होगी तो उसकी सन्तान भी अवश्य ही पढ़ेगी।

महात्मा ज्योतिबा फुले के इस नारी शिक्षा कार्य से प्रभावित होकर 12 जून 1852 को अंग्रेजी सरकार ने उन्हें सम्मानित एवं पुरस्कृत करने की घोषणा की। 16 नवम्बर 1852 को उन्हें सम्मानित किया गया, जिसमें कई विदेशी भी सम्मिलित हुए।

इस अवसर पर मेजर कैंडी ने सम्मान भाषण में इसे भारतीय | शिक्षा के इतिहास में एक अविस्मरणीय घटना बतलाया। सर हेनरी शॉर्प ने उनकी तुलना डेविड हेर, राजा राममोहन राय और विलियम केरी आदि से की।

महात्मा ज्योतिबा फुले ने शिक्षा के क्षेत्र में दलितों, पिछड़ों

और स्त्रियों को जागृत किया, वहीं कई अन्य क्षेत्रों में उन्होंने | रचनात्मक कार्य भी किये और सुझाव भी दिये, जिनमें निम्न प्रमुख है-

1.उन्होंने हिन्दू धर्म के शूद्रों तथा अतिशूद्रों के कष्टों तथा दुःखों व यातनाओं को अभिव्यक्ति दी।

2. अपना कुआं अछूतों के लिए खोल दिया।

3. विधवा-विवाह का समर्थन कर सन् 1864 में विधवा विवाह सम्पन्न करवाया।

4.विधवाओं के अवैध बच्चों के लालन-पालन के लिए सन् 1863 में बाल हत्या प्रतिबंधक गृह खोला।

5.विधवाओं की गुप्त तथा सुरक्षित प्रसूति के लिए प्रसूति गृह खोला और प्रसूतिगृह में जन्में काशीबाई नामक विधवा के बच्चे को गोद लिया।

6.बाल विवाह का विरोध किया।

7.धर्म मूलक विषमता का उन्मूलन करने के उद्देश्य से 1873 में ‘सत्य शोधक समाज’ नामक संस्था की स्थापना की।

8. शादी ब्याह में समझ न आने वाले संस्कृत मंत्रों के बदले मराठी में सबको समझ आने वाले मंत्र बनाये व उनका प्रचार किया।

9.जमींदारों के जुल्मों से पीड़ित किसानों की मदद की। 10. अनेक पुस्तकें लिखकर शूद्रों व अतिशूद्रों में जागृति पैदा की और उन्हें वरिष्ठ वर्गों की मानसिक दासता से मुक्त करने का प्रयास किया।

इनके अलावा अनेक कार्य महात्मा फुले ने उस समय किये, जब इनको करने की बात तो दूर, इनके बारे में सोचना भी गुनाह समझा जाता था।

महात्मा फुले के संघर्ष ने अज्ञान का कारावास तोड़ डाला, जन्मजात विषमता का जाल तोड़ दिया, विश्व का ज्ञान भण्डार सबके लिए खोल दिया और निरर्थक अंधविश्वास व पाखण्ड को चुनौती देकर समाज में नई क्रांति का संचार किया।

ज्योतिबा फुले व्यक्ति नहीं, शक्ति थे। इसका मतलब है

कि उनके न व्यक्तिगत मित्र थे और न ही व्यक्तिगत शत्रु जो

मनुष्य मनुष्य के बीच ऊंच-नीच के पक्षधर थे, वे ज्योतिबा के शत्रु थे और समानता के समर्थक लोग उनके मित्र थे। भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. अम्बेडकर ने भी लिखा ।

है कि मुझे तीन महापुरूषों के व्यक्तित्व ने सर्वाधिक प्रभावित किया, ये हैं महात्मा गौतम बुद्ध, संत कबीर और महात्मा ज्योतिबा फुले ।

19वीं सदी के महात्मा ने, जो सदैव दूसरों के लिए जिये, 28 नवम्बर 1890 को इस दुनिया से सदा-सदा के लिए विदाई ले लो।

मृत्यु ने महात्मा ज्योतिबा फुले के पार्थिव शरीर को अवश्य नष्ट कर दिया परन्तु मृत्यु उनके कृत्यों और व्यक्तित्व को नष्ट न कर सकी। यही कारण है कि महात्मा फुले ‘मानवता की मशाल’ बनकर आज भी प्रकाशमान है।

लेखक: एल.आर. बीबान
बीकानेर (राजस्थान)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *