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( कबीरदास की सोपाईया )

कबीरदास
ऊंची जाति पपीहरा, पिये न नीचा नीर
कै सुरपति को जांचई, कै दुःख सहै सरीर
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि पपीहरा तो एक तरह से ऊंची जाति का दिखता है जो कभी भी नीचे धरती पर स्थित जल का सेवन न कर स्वाति नक्षत्र क जल के लिये याचना देवराज इंद्र से याचना करता है या अपना जीवन त्याग देता है।

पड़ा पपीरा सुरसर, लागा बधिक का बान
मुख मूंदै सुरति गगन में, निकसि गये यूं प्रान

संत शिरामणि कबीरदास जी कहते है शिकारी का बाण लगने से पपीहा नदी में जा गिरा पर इसके बावजूद उसने वहां का जल ग्रहण नहीं किया और उसने अपना मूंह बंद कर ऊपर आकाश में ध्यान लगाया और अपने प्राण त्याग दिये।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-देश में ऊंच और नीच को लेकर सदैव विवाद होते रहे हैं। लोग जन्म के आधार पर अपने को ऊंचा और दूसरे को नीचा समझते हैं। यह एक भ्रम होता है। सच बात तो यह है कि आदमी की पहचान गुणों से है। ऊंची जाति में जन्म लेने के अहंकार में लोग यह मान लेते हैं कि हम जो कर रहे हैं वह ठीक है और वह व्यसनों और अपराधों की तरफ बढ़ जाते हैं। जबकि आदमी के गुण ही उसके ऊंची और नीच होने के प्रमाण हैं। गुणवान, धैर्यवान और शीलवान लोग बड़ी से बड़ी विपत्ति आने पर भी अपने नैतिक आचरण और सिद्धांतों का त्याग नहीं करते जबकि निम्न कोटि के लोग थोड़ी लालच और लोभ में अपना धर्म तक बेचने को तैयार हो जाते हैं। अतः जन्म के आधार पर अपनी जाति का गर्व करने की बजाय आत्म मंथन करते हुए गुणों के आधार पर ही अपने जीवन पथ पर अग्रसर होना चाहिए।

लेखक: मास्टर वीराराम भुरटिया

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