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सन्त दासोत सम्प्रदाय पीठ

सन्त परम्परा: स्वामी गंगाराम जी महाराज ↔️ स्वामी हरिराम जी महाराज भाटी राजपूत (विक्रम संवत 1812- विक्रम संवत 1933) समाधि स्थल- कागा मार्ग,नागौरी गेट जोधपुर ↔️ स्वामी जीयाराम जी महाराज वैरागी, सुथार ( विक्रम संवत 1814 – विक्रम संवत 1954) समाधि स्थल- कागा मार्ग, नागौरी गेट, जोधपुर ↔️ योगी श्री बन्नानाथ जी महाराज, नाथ (विक्रम संवत 1858 -विक्रम संवत 1950) समाधि स्थल- नाथों की बगेची, सिवांची गेट, जोधपुर ↔️ स्वामी अवधूत शिरोमणि उमाराम जी महाराज, मेघवंशी मेहरड़ा गौत्र, तनावड़ा जोधपुर (जन्म 1862- विक्रम संवत 1952 समाधि स्थल- नाथों की बगेची,सिवांची गेट जोधपुर ↔️ स्वामी किशनाराम जी महाराज, मेघवंशी सोलंकी गौत्र, पूंगल बीकानेर (जन्म विक्रम संवत 1904 समाधि 24 फरवरी 1931) समाधि स्थल- कागा मार्ग, नागौरी गेट, जोधपुर ↔️ स्वामी जोगाराम जी महाराज, मेघवंशी चाहिलिया गौत्र, दांवा बीकानेर (सन 1902-17 सितम्बर 1988) समाधि स्थल- कागा मार्ग नागौरी गेट जोधपुर ↔️ प्रो.स्वामी आत्माराम जी उपाधयाय (वर्तमान पीठाधीश्वर) मेघवंशी, गौत्र-रोयल, खांगटा, जोधपुर जन्म- 26 फरवरी 1956

श्री किशनाराम जी का रामद्वारा हनुमान भाखरी जोधपुर की स्थापना: इस गुरुद्वारे की स्थापना स्वामी किशनाराम जी महाराज ने अपने गुरुदेव स्वामी उमाराम जी महाराज की आज्ञा से विक्रम संवत 1938 आषाढ़ शुक्ल मास को स्वामी उमाराम जी महाराज व योगी बन्नानाथ जी महाराज के कर कमलों द्वारा शिलान्यास किया गया। बाद में भव्य निर्माण करवाकर उद्घाटन करवाया गया। आम जन के दर्शनार्थ योगी बन्नानाथ जी का ढोलिया (पलंग) व स्वामी उमाराम जी महाराज की खड़ाऊ इसी आश्रम में रखी गई है, जिसकी नियमित रूप से पूजा होती है।

स्वामी जोगाराम जी महाराज संक्षिप्त जीवनी: स्वामी जोगाराम जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1959,श्रावण शुक्ल पक्ष छठ (सन 1902) ग्राम दांवा, तहसील-नोखा मंडी, जिला बीकानेर में मेघवंश कुल के चाहिलिया गौत्र में हुआ था। आपके पिताजी का नाम श्री लालूराम जी व माताजी का नाम श्रीमती तीजा बाई था। आप जब 11 वर्ष के थे तब आपके पिताजी का देहांत हो गया था। अपनी माताजी के साथ खेतीबाड़ी व मेहनत मजदूरी करते हुए परिवार का गुजारा किया। आपका विक्रम संवत 1979 में वक्तबाई के साथ विवाह हुआ तथा दो संतानें (सीताराम व गंगाबाई) हुई। आपको भजनों, वाणियों व आध्यात्मिकता में गहरी रुचि थी। योगी बन्नानाथ जी द्वारा रचित अनुभव प्रकाश तो आपको पूरा कंठस्थ था। कुछ वर्षों बाद आपकी माताजी के देहांत हो गया। जिससे आपका मन सांसारिकता से टूट गया। एक बार गाँव दांवा में योगी बन्नानाथ जी महाराज पधारे तो उन्होंने स्वामी जोगाराम जी महाराज को गृहस्थ जीवन त्यागने व प्राणी मात्र के कल्याण के लिए सेवा करने की बात कही। बाद में आपने आश्विन मास विक्रम संवत 1987 को गृहस्थ जीवन त्याग कर वहां से ब्यावर, मारवाड़ जंक्शन, पाली होते हुए सोजती गेट नवलेश्वर मठ पहुँचे। महंत रामनाथ जी के दर्शन लाभ लेकर सीधे स्वामी किशनाराम जी महाराज के पास हनुमान भाखरी पधारे। कुछ समय तक स्वामी जी की सेवा श्रुषा में लगे रहे तथा बाद में विक्रम संवत 1987 मार्गशीर्ष कृष्णा पक्ष एकादशी को भेष दीक्षा ग्रहण की। आप प्रारम्भ में निरक्षर थे, परन्तु स्वामी किशनाराम जी महाराज से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद गुरुदेव जी की आज्ञानुसार स्वामी रणछाराम जी महाराज के पास शिक्षा अध्ययन हेतु बालोतरा आए। एक माह पश्चात पाली निवासी लक्ष्मण राम जी महाराज (स्वामी उमाराम जी महाराज के दोहिते) बालोतरा आए तो उनका उनसे परिचय हुआ तथा वे उन्हें करांची (वर्तमान में पाकिस्तान) ले गए। यहाँ उन्हें पत्र मिला कि स्वामी किशनाराम जी महाराज का निर्वाण हो गया है। यह दुःखद समाचार सुनकर स्वामी जोगाराम जी महाराज वहाँ से जोधपुर के लिए पैदल ही चल दिए। बाड़मेर में रैगर समाज के बन्धु के घर रात्रि विश्राम किया तथा बाड़मेर से स्वामी के भक्तों के साथ रेल द्वारा जोधपुर पहुँचे। स्वामी किशनाराम जी महाराज को समाधि देने के बाद स्वामी भोजाराम जी महाराज को दिनांक 10 मार्च 1931 को महंत की चादर भेंट की गई। बाद में आप जोधपुर के भांडेलाव श्मशान भूमि में अकेले रहने लगे लेकिन यहाँ लोगों ने ज्यादा दिन तक रहने नहीं दिया। बाद में भक्तों के निवेदन पर जोधपुर में ही बाई जी का तालाब के पास श्री लालूराम जी बाघेला के मकान पर पर्ण कुटी बनाकर रहे। फिर पुनः शिक्षा अध्ययन हेतु करांची चले गए तथा संस्कृत में लघु सिद्धांत कौमुदी स्तर की शिक्षा ग्रहण की। विक्रम संवत 1998 माघ मास कृष्ण पक्ष दशमी सोमवार दिनांक 12 जनवरी 1942 को स्वामी भोजाराम जी निर्वाण प्राप्त हो गए। महंत के लिए योगी नवलनाथ जी महाराज व अचलराम जी महाराज के सानिध्य में भक्तजनों की आम बैठक हुई। महंत नियुक्त करने के लिए स्वामी जोगाराम जी महाराज को पुनः करांची से बुलाया गया और दिनांक 28 जनवरी 1942 को सत्रहवीं व भंडारे पर स्वामी नवलनाथ जी महाराज द्वारा महंत की चादर भेंट की गई। बाद में रामद्वारे के अधिकार को लेकर अनेक प्रकार की समस्याएं आई, न्यायालय की शरण भी लेनी पड़ी और अंततः जीत हुई।

समाज सेवा एवं कार्य: स्वामी जोगाराम जी महाराज ने अपने पैतृक गांव दांवा, तहसील- नोखमण्डी, बीकानेर में लोगों के पीने के पानी की समस्या का निदान करने के लिए जलकुंड का दिनांक 03 दिसम्बर 1949 को शिलान्यास किया तथा जन सहयोग से ₹ 30,000 राशि इकट्ठी करके भव्य व विशाल जलकुंड का निर्माण कर दिनांक 12 जून 1957 को तत्कालीन सांसद पन्नालाल जी बारूपाल के कर कमलों से उद्घाटन करवाया। आपने जीवन पर्यंत सामाजिक बुराईयों, कुरीतियों, कुप्रथाओं जैसे- बाल-विवाह, छुआछूत, भेदभाव, मृत्युभोज, नशा, अंधविश्वास आदि को मिटाने एवं शिक्षा पर जोर दिया। आप जब भी किसी को नामदान देते थे तो उक्त व्यक्ति के हाथों में जल व तुलसी के पत्तों से नशा मुक्त होने का संकल्प करवाते थे। आप सभाओं, सत्संग, जागरण, समारोह, संगोष्ठी आदि अवसरों पर भी लोगों को नशा मुक्त होने व शिक्षा अध्ययन पर विशेष ध्यान देते थे। साथ ही आप महिला शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने बेगार प्रथा, घृणित कार्यों से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए जन जागृति का कार्य किया तथा इस कार्य को छोड़कर बेरोजगार हुए आस पास के क्षेत्र के लोगों को रोजगार देने के लिए विक्रम संवत 1909 में गांव दांवा, बीकानेर में परम् शिष्य गंगाराम जी गोयल, हजारीराम जी, भोजराज जी आदि के सहयोग से प्रार्थना सभा भवन का निर्माण करवाया तथा यहाँ पर हाथ-करघा, कताई, बुनाई सीखने के लिए प्रेरित किया। स्वामी जी यहाँ पर समय समय पर सत्संग भी करते थे। हरिजनों के सुधार हेतु दिनांक 26 फरवरी 1959 को सामाजिक चेतना विशाल सम्मेलन श्री किशनाराम जी का रामद्वारा हनुमान भाखरी, जोधपुर में करवाया। इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि श्री पन्नालाल जी बारूपाल निवर्तमान सांसद भारत सरकार थे। इस सम्मेलन दलितोत्थान हेतु विशेष ज्ञापन तैयार किया गया। जिसे स्वामी जी व पन्नालाल जी बारूपाल दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू जी को दिया। जिस पर भारत सरकार ने त्वरित संज्ञान लेते हुए पश्चिमी राजस्थान में दलितोत्थान के लिए कई कार्य किए।

बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर से भेंट: सिंध मीरपुर खास(वर्त्तमान में पाकिस्तान) में विद्या अध्ययन के दौरान सन 1935 में गाँधी जी की सभा में भाग लिया। सन 1935 में ही सिंध, हैदराबाद (पाकिस्तान) में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी विशाल जन सभा में भाग लिया तथा बाबा साहेब के मूल मंत्र शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो को आत्मसात किया। उसके बाद आप जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, नागौर, बाड़मेर, जालोर आदि जिलों के अलावा मुंबई, दिल्ली में भ्रमण कर जन जागृति का कार्य करते रहे। स्वामी जी ने दलित अत्याचार के विरुद्ध आंदोलन भी चलाया। लोगों को सामन्तवादी व्यवस्था व अत्याचारों से मुक्त होने के लिए सभाएं, सेमिनार आदि आयोजित कर संगठित किया। कक्कू, नोखमण्डी में दिनांक 04 अप्रैल 1955 में तत्कालीन विधायक श्री प्रभुदयाल जी रैगर की अध्यक्षता व तत्कालीन मंत्री राज.सरकार श्री सम्पतराम जी के मुख्य आतिथ्य में विशाल दलित सम्मेलन आयोजित किया जिसमें हजारों स्त्री-पुरुषों ने भाग लिया। दिनांक 05 अप्रैल 1956 में ग्राम पांचू,बीकानेर में सेठ श्री कनीराम जी के नैतृत्व में विशाल सम्मेलन किया गया। इन दोनों सम्मेलनों से दलितों का स्वाभिमान जगा तथा उन्हें अत्याचारों से मुक्ति मिली। यही नहीं उन्हें सरकार द्वारा खेत, खलिहान, कुएँ, बावड़ी आदि अधिकार भी मिले। ऐसे कार्यक्रमों के लिए स्वामी जी को निवर्तमान सांसद श्री पन्नालाल जी बारूपाल, निवर्तमान विधायक श्री प्रभुदयाल जी रैगर, समाज सेवी श्री गोविंद जी गोयल, समाज सुधारक एवं क्रांतिकारी श्री कालूराम जी इण्दलिया आदि का पूर्ण सहयोग करते थे।

राजनैतिक पहुँच: स्वामी जोगाराम जी महाराज बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की सभाओं में अक्सर भाग लेते थे और वे यदाकदा उन्हें मिलने के लिए मुंबई भी जाते थे। जब दिनांक 06 दिसम्बर 1956 को बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर जी का परिनिर्वाण हुआ तो उन्हें बहुत दुःख हुआ और मन ही मन धारण कर दिया कि वे उनके बताए मार्ग पर चलकर उनके सपनों को साकार करने के लिए समाज के शोषित, वंचित,उपेक्षित एवं कमजोर वर्गों के हितों के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेंगे। उनका श्री पन्नालाल जी बारूपाल से सीधा संपर्क होने के कारण केंद्र व राज्य सरकार के राजनेताओं से सीधा संपर्क था। वे समाज के लिए सीधे राजनेताओं से मिलते थे और अपनी समस्याएं बताते थे। जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबू जगजीवन राम, लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गांधी आदि से उनका सीधा संपर्क था। पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम जी तो स्वामी जी की कार्यशैली से इतने प्रभावित थे कि वे उनके शिष्य बन गए। वे जब भी जोधपुर आते तो आश्रम में स्वामी जी से आशीर्वाद लेने जरूर आकर जाते।

अंधविश्वास से दूर: स्वामी जी हमेशा से ही पाखण्डवाद व अंधविश्वास के घोर विरोधी रहे हैं। एक बार वे अपने शिष्य श्री हरदीन राम पुत्र श्री लालूराम जी खेमदा गाँव हरसोलाव के साथ बालाजी रेलवे स्टेशन से दांवा गाँव पैदल जा रहे थे। घने बादलों से घिरी अंधेरी रात में उनको सर्प ने डस लिया। दर्द अधिक होने के कारण वे बीच में ही बजंड़ा ग्राम निवासी श्री लूणाराम जी मकवाना की ढाणी रुके। आस पास के क्षेत्र के लोगों ने सर्प दंश की घटना सुनी तो वे स्वामी जी को मिलने आने लगे। श्री लूणाराम जी मकवाना व उनकी धर्म पत्नी घर पर आने वाले मेहमानों की खूब आवभगत करते और स्वामी जी की सेवा करते। भाविकों ने कहा कि ऊँटगाड़ी से स्वामी जी को बीकानेर ले जाने के लिए प्रयास किया लेकिन उन्होंने मना कर दिया। गाँव के कुछ लोग विष उतारने के लिए भोपा को लेकर आए लेकिन स्वामी जी ने मना कर दिया। गांव के एक वैद्य ने सर्प दंश के स्थान पर पीली मिट्टी को गर्म कर पानी का झारा देने की सलाह दी,जिसे स्वामी जी सहज स्वीकार करते हुए किया। फिर 15-20 दिन वहीं आराम कर पुनः अपने आश्रम जोधपुर आ गए।

अन्य समाजोपयोगी कार्य: स्वामी जोगाराम जी ने राज्य सरकार से विधवा भत्ता, ग्रामीण बच्चों की शिक्षा के लिए आवास सुविधा जैसे उल्लेखनीय कार्य करवाये। बादनू गाँव के क्रांतिकारी शहीद कालूराम जी इण्दलिया की सामन्तवादी व्यवस्था के असामाजिक तत्वों द्वारा हत्या पर केंद्र व राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित किया। श्री कोलायत में धर्मशाला बनाने के लिए सहयोग किया। कागा मार्ग, नागौरी गेट, जोधपुर में स्वामी किशनाराम जी महाराज की समाधि स्थल पर समाज कंटकों द्वारा अवरोध पैदा करने पर उनसे मुकाबला किया तथा समाधि स्थल पर सेवा सदन स्कूल की स्थापना की जो आज भी नियमित रूप से संचालित हो रही है। स्वामी जी ने भीम दल व्यायामशाला की समस्या का भी उचित समाधान किया। स्वामी जी ने दिनांक 26 फरवरी 1977 को अपने आश्रम हनुमान भाखरी, जोधपुर में वार्षिकोत्सव के दौरान प्रो.स्वामी आत्माराम जी उपाध्याय को भेष दीक्षा देकर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। दिनांक 14/9 1978 को रामद्वारा का जीर्णोद्धार करवाया गया तथा ऊपर की मंजिल में विद्यार्थियों के पढ़ने के लिए भामाशाहों के सहयोग से कमरों का निर्माण किया गया। वर्तमान में कुल 15 कमरे बने हुए हैं,जहाँ से सैंकड़ों विद्यार्थियों ने अध्ययन कर सरकारी सेवा, व्यापार आदि में लगे हैं। विशाल सत्संग भवन का निर्माण करवाया गया। इस कार्य को करवाने में करीब दो साल का समय लगा। दिनांक 26 फरवरी 1980 को भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया तथा महामंडलेश्वर स्वामी केवलानन्द जी महाराज के साथ हाथी पर सवार होकर पूरे जोधपुर शहर में विशाल शोभायात्रा निकाली गई। जिसमें हजारों की तादाद में स्त्री-पुरुषों ने भाग लिया। दिनांक 02/11/1987 को भयंकर अकाल के दौरान दांवा गांव में चारा डिपो खुलवाया।

परिनिर्वाण: 86 वर्ष की आयु में स्वामी जी का ब्रह्म बेला में दिनांक 17 सितम्बर 1988 को परिनिर्वाण हो गया, समाधि स्थल कागा मार्ग, नागोरी गेट जोधपुर में सैंकड़ों भक्तों की उपस्थिति में उन्हें समाधि दी गई। बाद में उनके शिष्य एवं महंत प्रो.स्वामी आत्माराम जी उपाध्याय द्वारा संगमरमर की प्रतिमा व छतरी का निर्माण करवाया।

प्रो.स्वामी आत्माराम जी उपाध्याय संक्षिप्त परिचय: आपका जन्म 26 फरवरी 1956 (स्कूल रेकर्ड अनुसार 01/05/1960) विक्रम संवत 2012 कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि को ग्राम खांगटा, तहसील-भोपालगढ़, जिला जोधपुर में मेघवंश कुल के रोयल गौत्र में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री कालूराम जी रोयल व माताजी का नाम श्रीमती जम्मू देवी जी है। आपको स्वामी जी जोगाराम जी महाराज ने दिनांक 26 फरवरी 1977 को भेष दीक्षा देकर रामद्वारे का उत्तराधिकारी घोषित किया। वर्तमान में आप श्री किशनाराम जी का रामद्वारा, हनुमान भाखरी, जोधपुर के महंत हैं। आप अपने गुरूदेव जी की आज्ञानुसार अध्यात्मिकता के साथ साथ समाज सेवा में विशेष रुचि लेते हैं तथा बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर जी के सिद्धांतों, विचारों एवं उनके आदर्शों को अपनाते हुए जन जागृति का कार्य करते हैं। आप लंबे समय से भारतीय दलित साहित्य अकादमी से जुड़े हुए हैं तथा सन 2003 से अकादमी के राजस्थान प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष भी है। आपके सानिध्य में स्वामी जोगाराम जी महाराज की प्रथम पुण्यतिथि पर उनकी समाधि स्थल पर एक विशाल देवल का निर्माण एवं स्वामी जी मूर्ति लगवाई गई। निर्माण हेतु मार्बल का कार्य ठेकेदार श्री जोराराम जी मेहरड़ा झालामण्ड, जोधपुर, दरवाजा ठेकेदार श्री चुन्नीलाल जी जोरम तथा मूर्ति श्री नरपतराम जी बरवड़ पूर्व राजस्व मंत्री राज.सरकार द्वारा भेंट की गई। ग्राम पाँचू, बीकानेर में योगी हीरानाथ जी महाराज की जीवित समाधि स्थल पर निर्माण कार्य, गुरु भाई स्वामी लालूराम जी महाराज निवासी कक्कू, बीकानेर में छतरी का निर्माण कार्य, अवधूत स्वामी उमाराम जी महाराज के 100 वें निर्वाण दिवस पर भक्तजनों के सहयोग से सन्तों की मूर्तियां स्थापित की गई। इस समारोह के मुख्य अतिथि श्री अशोक गहलोत मुख्यमंत्री राज.सरकार द्वारा) मूर्तियों का अनावरण किया गया। समारोह अध्यक्ष श्री भीखा भाई भील पूर्व मंत्री राज.सरकार द्वारा अनुभव प्रकाश पुस्तक का विमोचन व श्री नरपतराम जी बरवड़ पूर्व मंत्री राज.सरकार द्वारा शताब्दी की स्मारिका का विमोचन किया गया। दिनांक 9 मार्च 2003 को स्वामी जोगाराम जी महाराज की जन्म शताब्दी पर स्मारिका का प्रकाशन व समाज सेवा, शिक्षा, साहित्य आदि क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले प्रबुद्धजनों को समाज रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. सोहनपाल जी सुमनाक्षर राष्ट्रीय अध्यक्ष भारतीय दलित साहित्य अकादमी दिल्ली रहे। सन 2005 से 2008 तक रामद्वारे का जीर्णोद्धार करवाया गया। सन्त दासोत धाम के पीठाधीश्वर स्वामी निर्मलदास जी महाराज द्वारा मुख्यद्वार आदि का उद्घाटन किया गया। 21 फरवरी 2010 को सन्त दासोत धाम से शिखा, चँवर, छड़ी, छतरी प्रदान की गई। दिनांक 19 सितंबर 2015 को खेड़ापति बालाजी मंदिर में पधारे जगद्गुरु स्वामी राम नरेशाचार्य जी ने 1008 श्री स्वामी हरिरामाचार्य पीठ जोधपुर पीठाधीश्वर एवं श्री महंत (महामंडलेश्वर) की चादर दी गई।

इसके अतिरिक्त भी कई धार्मिक व सामाजिक कार्य करवाए जिसका वर्णन उनके द्वारा लिखित पुस्तक मेरी यात्रा सन्यास से पीठाधीश्वर(महामंडलेश्वर) तक की धार्मिक उप्लब्धयों में किया गया है। गुरुद्वारा में ऊपर की दो मंजिलों में 15 कमरे बने हुए हैं। जिसमें करीब 30-35 विद्यार्थी विद्या अध्ययन कर रहे हैं। यहाँ बाहर से आने वाले भक्तजनों व अतिथियों के लिए रात्रि विश्राम, भोजन आदि की भी सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा अकादमी में प्रदेशाध्यक्ष के पद पर रहते हुए राजस्थान राज्य में प्रदेश, जिला व तहसील स्तर पर बहुत से सम्मान समारोह, सेमिनार आदि आयोजित करवाए गए। शिक्षा, नशा खोरी, अंधविश्वास, कुरीतियों, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, जन जागृति, दलितोत्थान आदि पर समय समय पर सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। जिसमें जयपुर में प्रदेश स्तरीय महिला सरपंच सम्मान समारोह में सावित्रीबाई फुले सम्मान, जोधपुर संभाग स्तरीय महिला सरपंच व साहित्यकार सम्मान समारोह, जयपुर में प्रदेश व जिला कार्यकारिणी सेमिनार आदि आयोजित किए गए। विभिन्न क्षेत्रों में समय समय पर सम्मानित की किया गया है। दिनांक 25 फरवरी 2024 को विश्व बुक ऑफ स्टार रिकॉर्ड्स द्वारा skicc ऑडिटोरियम श्री नगर, जम्मू-कश्मीर में सरदार वल्लभ भाई पटेल नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

सन्दर्भ: स्मारिका 2014,मेरी यात्रा पुस्तक व प्रो.स्वामी आत्माराम जी उपाध्याय (श्री श्री 1008 हरिरामाचार्य पीठ जोधपुर) श्री महंत (महामंडलेश्वर) श्री किशनाराम जी का रामद्वारा, हनुमान भाखरी, नई सड़क जोधपुर (राजस्थान)

आलेख: मास्टर भोमाराम बोस
प्रदेश महामंत्री (संगठन) भारतीय दलित साहित्य अकादमी, राजस्थान प्रदेश
सम्पर्क- 9829236009

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