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सांचोर जिले में स्थित गणेश-शिव मठ की स्थापना संवत् 1957 में महान तपस्वीं, योगीराज, ब्रह्मलीन, विद्वान संन्त श्री 1008 शिवनाथजी महाराज ने की थी |
शिवनाथ जी के बचपन का नाम भूराराम था। इनके पिता का नाम देवाराम जी व माता का नाम चुन्नी देवी था। शिवनाथ महाराज का जन्म सांचोर के टिटोप गाँव के मेघवाल संत परिवार में हुआ।
पैतृक गांव टिटोप में महाराज का धुणा बना हुआ हैं।
संन्त शिवनाथ महाराज के नाम से सांचौर नगर की कॉलोनी “शिवनाथपुरा”के नाम से जानी जाती हैं।
महाराज ने कई सालो तक आबु के पहाड़ो में कठोर योग साधना संग तपस्या की उसके बाद महाराज को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होने के बाद गुरुदेव दीन-दुखियों की अपने ज्ञान से सेवा करने में तल्लीन हो गए। कुछ समय बीतने के बाद उन्हें यह महसूस हुआ कि कोई मठ की स्थापना की जाए ताकि आम जनमानस सामूहिक रूप से आध्यात्मिक ज्ञान से लाभान्वित हो सके। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए गुरुदेव ने अपने समाज की उपस्थिति में सांचोर (सत्यपुर) में शिवनाथ मठ की स्थापना की।
किवदंती है कि जब शिवनाथजी 10 वर्ष के थे। तब से उनमें भक्ति भाव हिलोरे लेने लगा था। फलस्वरूप वे साधना में लीन हो गये थे। उन्हें गायों से बहुत प्रेम था‌। वे बचपन में जंगलों में दूर दूर तक गायें चराने के लिए जाते थे।

बड़े बुजुर्गों से हम सुनते हैं कि शिवनाथ जी ऐसे तपस्वी संत के साथ साथ आयुर्वेद के बड़े ज्ञाता थे। जिससे आम जन अपने कष्टों के निवारण और अमन शांति वास्ते दूर दूर से उनके चरणों में आते थे।
जो लोग उनके चरणों में चले जाते थे‌। उनका दुःख दर्द हमेशा के लिए दूर हो जाता था।
शिवनाथजी महाराज की आज भी पुराने पुलिस थाना सांचौर में तस्वींर लगी हुईं हैं जहां पुजा आराधना होती हैं।
महान तपस्वी और साधक शिवनाथ जी महाराज ने समाज विकास का बीड़ा उठाया था। उसका परिणाम आज सांचोर जिले का मेघवाल समाज एक उभरता हुआ समाज है।
महाराज ने मेघवाल समाज के साथ साथ अन्य जाति वर्गो और धर्म समुदायों के लोगो का जीवन निर्वाह व समाज में फैली सामाजिक कुरीतियां, अन्धविश्वास,चमड़े के कार्य से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया।

प्रतिवर्ष फाल्गुन माह की अमावस्या व फाल्गुन शुक्ल पक्ष छठ महाराज की बरसी पर शिवनाथ धाम के प्रांगण में विशाल भजन संन्ध्या व मेला आयोजित होता है जिसमें मेघवाल समाज के साथ-साथ अन्य धर्म समुदाय व जातियों के लोगों सहित राजस्थान प्रदेश व गुजरात राज्य के विभिन्न इलाकों से साधु संन्त, कलाकार, राजनेता व समाज बन्धु हजारों की संख्या में आते हैं।

संत शिरोमणि महंत श्री गणेशनाथ जी महाराज:- वर्तमान में इस मठ के मठाधीश श्री गणेशनाथजी महाराज हैं। इनका जन्म गुजरात राज्य के आकोली गाँव में मेघवाल परिवार में हुआ। इनके बचपन का नाम सुरताराम था ! गणेशनाथ ने दसवीं तक शिक्षा प्राप्त की है।
पिता मेघाजी गणेशनाथ को डॉक्टर बनाना चाहते थे। वे जब 11वीं में साइंस विषय लेकर अध्ययनरत थे। तब भक्ति साधना के भाव जागृत हो गए। फिर वे अपने गांव से 4 किलोमीटर दूर गंगवाड़ा गांव में खेतों के बीच ऊंची पहाड़ी पर धूणा लगाकर तपस्या और साधना में रत हो गये। फिर वहां भेड़ बकरियां चराने वाला गड़रिया उन्हें ध्यान साधना में लीन देखता है तो वह यह सोच कर दूध पिलाता है कि योगी भूखे प्यासे होंगे तब यह बात गड़रिया ने उसके गांव समेत आस -पास सभी इलाकों में फैलाई। जिस स्थल पर वे तपस्या साधना में लीन थे उस स्थल पर अब बड़ा आश्रम बना हुआ है।
फिर वहां से गणेशनाथ महाराज माउंट आबू के पहाड़ों की गुफाओं में तपस्या करने चले गए। उसके बाद महाराज को यह जानकारी मिलती है कि सांचौर (सत्यपुर) की धरती पर एक महान तपस्वी,महापुरुष रहते हैं तब वे 1986 में 22 साल की उम्र में शिवनाथ जी महाराज की शरण में आए।
6 महीनों की कठोर तपस्या के बाद शिवनाथ जी महाराज ने शिष्य बनाने की दीक्षा दी।
शिवनाथजी के शिष्य बनने से पहले गणेशनाथ महाराज को कई कठिन तपस्या से गुजरना पड़ा था। लेकिन अन्त में सफल हुए।
फिर शिवनाथ महाराज 18 मार्च 1994 को ब्रह्मलीन हो जाते हैं। सन् 1994 में शिवनाथ मठ में 84 गांवों का भंडारा हुआ और हजारों साधु-संतों,समाज बंधुओं,पंचों की उपस्थिति में गणेशनाथ जी का गादी तिलक हुआ।

गणेशनाथ जी महाराज के शिष्य बलदेव नाथ हैं।
गणेशनाथ महाराज एक बहुत बड़े समाज सुधारक और समाज में क्रांति लाने वाले एक बहुत ही जुझारू संत है,इन्ही के आशीर्वाद और मार्गदर्शन, नेतृत्व में समाज में शिक्षा के लिए सांचोर में 3 छात्रावास गणेश-शिव हॉस्टल,मेघवाल धर्मशाला में हॉस्टल, गणेश शिव स्कूल परिसर में बहुमंजिला हॉस्टल बनाई हैं।
महाराज के सानिध्य में गणेश-शिव उच्च माध्यमिक विद्यालय शिवनाथ पुरा, सांचौर संचालित हैं।
महाराज के निर्देशन में बी.ढाणी मे विशाल अम्बेडकर उद्यान का निर्माण कार्य भी करवाया गया।
महाराज के प्रयासों से गहलोत सरकार ने सांचौर व चितलवाना में सावित्रीबाई फुले बालिका अनुसूचित जाति छात्रावास की सौगात दी हैं।
इन्हीं के निर्देशन में सांचौर में दो कॉलेज लॉर्ड बुद्धा कॉलेज व सिद्धार्थ कॉलेज संचालित हैं।
गणेशनाथ जी महाराज कहते हैं कि शिक्षा बिना जीवन पशु समान है और शिक्षा ही एकमात्र ऐसी चाबी है जो विकास के द्वार खोलती हैं।
समाज को अपने बेटे और बेटियों को हमेशा अच्छी शिक्षा देने और संस्कारवान बनाने की बात करते हैं।अपने हर उद्बोधन में कहते हैं कि जब मैंने अंबेडकर की जीवनी पढ़ी तब से सारा परिवर्तन होने लगा और उन्हें ज्ञात हुआ कि समाज का उद्धार केवल शिक्षा से ही हो सकता है।
इसलिए हमेशा शिक्षा की ही बात करते हैं।
महाराज द्वारा समाज में फैली सामाजिक कुरीतियां, बाल-विवाह, अंधविश्वास, नशा प्रवृत्ति रोकने के लिए पुरजोर प्रयासरत है। महाराज ने समाज में पुर्वजों के समय से फैली सामाजिक कुरीति मृत्यु भोज को पूर्णतः बंद करवाया।

गणेश शिवनाथ मठ के प्रांगण में परिसर में महान तपस्वी शिवनाथ जी महाराज का समाधि स्थल, गुरु रविदास जी का मंदिर, लोक संत बाबा रामदेव का मंदिर सहित कई भव्य स्थल बने हुए हैं।
महंत गणेशनाथ जी के मठ में वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया, पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट सहित राजस्थान व गुजरात के साधु-संत व राजनेता, समाज बंधु आशीर्वाद लेने आते हैं।

महंत गणेशनाथजी के सामाजिक विचार:- महंत गणेशनाथ जी वर्तमान में सांचौर के संत रविदास के कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी,वे अपने हर भाषण या वक्तव्य में सामाजिक उत्थान की वो बातें अपने समाज को कहते है जो संत शिरोमणि रविदास जी अपने समय में कहते थे,उनकी वाणी में जो ओज था,वो महंत जी की वाणी में झलकता है। वे समाज में फैली सामाजिक कुरीतियां पर व्यंग्यात्मक रूप से कड़ा प्रहार करते हैं। विकास की मुख्य कुंजी शिक्षा पर विशेष ध्यान देने को कहते है जो कि बालक और बालिकाओं में समान रूप से देने को कहते हैं। गुरुदेव के अथक प्रयासों से आज सांचौर चितलवाना पट्टी में मेघवाल समाज में मृत्यु भोज और बाल विवाह पर प्रतिबंध लगा हुआ है। समाज की एकता पर जोर देते हैं। वे सदैव समाज के उत्थान को कृत संकल्पित रहते हैं।

किसी कवि ने चंद अल्फाज़ यूं उकेरे हैं जो गुरुदेव पर सटीक बैठते हैं :-
यूं तो था नहीं मैं कुछ भी
पढ़ कर मसीहा ए मानवता को
जाना समझा समाज को
और ठान लिया बदलाव को
और कारवां बनता गया
और मैं करता गया यूं बदलाव
जिससे बढ़ने लगा मेरा यह समाज।

~ अरविंद डाभी (युवा पत्रकार व लेखक)


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