• जागो हुक्मरान न्यूज़
“संविधान” ने भारत के लोगों को क्या दिया जरा मालूम कर लेते है?
भारत का संविधान ने हमको क्या दिया है?
♦संविधान ने क्या दिया ! शिक्षा का अधिकार दिया !!
♦ संविधान ने क्या दिया ! काम का अधिकार दिया !!
♦ संविधान ने क्या दिया ! लोक सहायता का अधिकार दिया !!
♦ संविधान ने क्या दिया ! बोलने का अधिकार दिया !!
♦ संविधान ने क्या दिया ! समता का अधिकार दिया !!
♦ संविधान ने क्या दिया ! मताधिकार देने का अधिकार दिया !!
♦ संविधान ने क्या दिया ! चुनाव लडने का अधिकार दिया !!
♦ संविधान ने क्या दिया ! अपने परिवार के जीविका चलाने के लिए!!
♦ संविधान ने क्या दिया ! संपति रखने का अधिकार!!
♦ संविधान ने क्या दिया ! महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए!!
♦ संविधान ने क्या दिया ! अभिव्यक्ति की आजादी!!
♦ संविधान ने क्या दिया ! भारत में कही पर भी रहने का अधिकार!!
भारत का संविधान,भाग 3
अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता का अधिकार |
भारतीय संविधान > भाग 3 : मूल अधिकार > स्वातंत्र्य अधिकार > अनुच्छेद 19
वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार का स्थान मूल अधिकारों में सर्वोच्च माना जाता है। किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है कि “ स्वतन्त्रता ही जीवन है”, क्योंकि इस अधिकार के अभाव में मनुष्य के लिए अपने व्यक्तित्व का विकास करना संभव नहीं है।
भारत का संविधान के अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक में भारत के नागरिकों को स्वतंत्रता सम्बन्धी विभिन्न अधिकार प्रदान किये गये हैं। ये चारों अनुच्छेद दैहिक स्वतन्त्रता के अधिकार पत्र-स्वरूप हैं।
उपर्युक्त स्वतंत्रता मूल अधिकारों की आधार-स्तम्भ हैं। इनमें छह मूलभूत स्वतन्त्रताओं का स्थान सर्वप्रमुख है। अनुच्छेद 19 भारत के सभी नागरिकों को निम्नलिखित छह स्वतन्त्रताएँ प्रदान करता है
अनुच्छेद 19: वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण
19(1)- सभी नागरिकों को-
(क) वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
(ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
(ग) संगम या संघ 1या सहकारी सोसाइटी बनाने का,
(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
(ड) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का,
और
(च)3- नाबूद (संपति का अधिकार)
(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का अधिकार होगा।
19(2)- 4 खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 5भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
19(3): उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता और अखंडता या लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
19(4): उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 5भारत की प्रभुता और अखंडता या लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
19(5): उक्त खंड के 6उपखंड (घ) और उपखंड (ङ) की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके परिवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
19(6): उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निर्धारित नहीं करेगी और विशिष्टतया 7उक्त उपखंड की कोई बात
(i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने के लिए आवश्यक वृतिक या तकनीकी अर्हताओं से, या
(ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारोबार, उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णतः या भागतः अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से,
जहां तक कोई विद्यमान विधि संबंध रखती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
संशोधन
97 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 की धारा 2 द्वारा (8-2-2012 से) अंतःस्थापित ।
44वां संविधान संशोधन संशोधन अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित।
44वां संविधान संशोधन 1978 संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (च) का लोप किया गया।
पहला संशोधन संविधान अधिनियम, 1951 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
16वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1963 की धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्थापित ।
46वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और उपखंड (च)” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
पहला संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 की धारा 3 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर (18-6-1951 से) प्रतिस्थापित ।
अनुच्छेद 19 का स्पष्टीकरण
‘स्वतंत्रता ही जीवन है’, मनुष्य के लिए अपने व्यक्तित्व का विकास करने स्वतंत्रता का अधिकार होना अति आवश्यक है।
♦इसीलिए वैयक्तिक स्वतन्त्रता के अधिकार का स्थान मूल अधिकारों में सर्वोच्च माना जाता है।
अनुच्छेद 19(1) भारत के नागरिकों को छह स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है, और अनुच्छेद 19(2) से 19(6) तक इन अधिकारों पर योग्य पाबंधी या सीमा का प्रावधान है
अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकार केवल ‘नागरिकों को ही प्राप्त हैं
अनुच्छेद 19 सिर्फ भारत के नागरिकों ही स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है
इस अनुच्छेद में ‘नागरिक’ शब्द का प्रयोग करके यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इसमें प्रदानकी हुई स्वतन्त्रताएँ केवल भारत के नागरिकों को ही उपलब्ध हैं, किसी विदेशी को नहीं।
ध्यान दे: अनुच्छेद 19 में ‘नागरिक’ शब्द से केवल मनुष्य मात्र का बोध होता है, कृत्रिम व्यक्ति का नहीं, इस वजह से कोई संस्था, या कंपनी नागरिक नहीं है अतएव वह इन अधिकारों का दावा नहीं कर सकती।
छह स्वतंत्रताएँ (Six Freedoms Rights)
♦️वाक् स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता;
♦️शान्तिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता;
♦️संगम या संघ बनाने की स्वतन्त्रता;
♦️भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतन्त्रता;
♦️भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने की स्वतन्त्रता; और
♦️कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने की स्वतन्त्रता
उचित प्रतिबन्ध (Reasonable Restrictions)
♦️इस अनुच्छेद में स्वतंत्रता के साथ उचित प्रतिबन्ध का प्रावधान करके संविधान निर्माताने बहुत ही अच्छा संतुलन बनाया है
जैसा विदित है कि, उपर्युक्त सभी स्वतन्त्रताएँ आत्यन्तिक (absolute) नहीं हैं।
किसी भी देश में नागरिकों के अधिकार असीमित नहीं हो सकते हैं। एक व्यवस्थित समाज में ही अधिकारों का अस्तित्व हो सकता है।
नागरिकों को ऐसे अधिकार नहीं प्रदान किये जा सकते जो समस्त समुदाय के लिये अहितकर हों।
यदि व्यक्तियों के अधिकारों पर समाज अंकुश न लगाये तो उसका परिणाम विनाशकारी होगा। स्वतन्त्रता का अस्तित्व तभी सम्भव है जब वह विधि द्वारा कुछ सीमा तय की हो। अपने अधिकारों के प्रयोग में हम दूसरों के अधिकारों पर आघात नहीं पहुँचा सकते हैं।
ए० के० गोपालन के मामले में न्यायाधिपति श्री पतंजलि शास्त्री ने यह अवलोकन किया है कि
“मनुष्य एक विचारशील प्राणी होने के नाते बहुत-सी चीजों के करने की इच्छा करता है, लेकिन एक नागरिक समाज में उसे अपनी इच्छाओं को नियन्त्रित करना पड़ता है और दूसरों का आदर करना पड़ता है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए संविधान के अनुच्छेद 19 के खण्ड (2) से (6) के अधीन राज्य को भारत की प्रभुता और अखण्डता की सुरक्षा, लोक-व्यवस्था, शिष्टाचार आदि के हितों की रक्षा के लिए निर्बन्धन लगाने की शक्ति प्रदान की गयी है, किन्तु शर्त यह है कि निर्बन्धन युक्तियुक्त हो ।
युक्तियुक्त निर्बन्धन के लिए दो शर्तें आवश्यक हैं–
(1) निर्बन्धन केवल अनुच्छेद 19 के खण्ड (2) से (6) के अधीन दिये गये आधारों पर ही लगाये जा सकते हैं।
(2) प्रतिबन्ध युक्तियुक्त होना चाहिये।”
यहा पर सबसे बड़ा सवाल उठा की युक्तियुक्त(उचित) प्रतिबंध किसको माना आये?
युक्तियुक्त प्रतिबंधो की कसौटी (What Is Reasonable Restriction)
‘युक्तियुक्त’ निर्बंन्धन क्या है, एक कठिन प्रश्न है।
प्रतिबंधो की उचितता को जाँचने के लिए कोई निश्चित कसौटी संविधान में या, न्यायलय द्वारा बनायी नहीं गई है।
इस बात का निर्णय प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर ही किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट कुछ सामान्य नियम स्थापित किये हैं, जिनके आधार पर निर्बन्धनों की युक्तियुक्तता की जाँच की जाती है। वे इस प्रकार हैं
(1) कोई निर्बन्धन युक्तियुक्त है या नहीं, इस प्रश्न का अन्तिम निर्णय देने की शक्ति न्यायालयों को है, विधानमण्डल को नहीं
इस प्रकार ‘युक्तियुक्त’ शब्दावली न्यायालयों के पुनर्विलोकन की शक्ति को अत्यन्त विस्तृत कर देती है। इस प्रश्न पर विधानमण्डल के निर्णय पर न्यायिक निरीक्षण(Judicial Oversight) हो सकता है।
(2) नागरिकों के अधिकारों पर लगाये गये निर्बन्धन अन्यायपूर्ण या सामान्य जनता के हितों में अपेक्षित हैं, उससे अधिक नहीं होना चाहिये।
(3) उचितता का कोई सामान्य मापदंड नही होगा, वह प्रत्येक केस को सुनने के बाद तय किया जाएगा
(4) राज्य की नीति के निदेशक-तत्वों(DPSP) में निहित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लगाये गये प्रतिबन्ध युक्तियुक्त माने जा सकते हैं
मैनें 4 निर्देश लिखे है, ऐसे और भी निर्देश है जिसको दुसरे लेख में देखेंगे-
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता- अनुच्छेद 19(1)(क) & 19(2)
ᴛʜᴇ ʀɪɢʜᴛ ᴛᴏ ғʀᴇᴇᴅᴏᴍ ᴏғ sᴘᴇᴇᴄʜ ᴀɴᴅ ᴇxᴘʀᴇssɪᴏɴ
अनुच्छेद 19(1)(क) में वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रावधान है और अनुच्छेद 19(2) में उसके उपर लगे प्रतिबंधो की यादी है
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रजातान्त्रिक शासन-व्यवस्था की आधारशिला है।
प्रत्येक प्रजातान्त्रिक सरकार इस स्वतंत्रता को बड़ा महत्व देती है।
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ क्या है?
शब्दों, लेखों, मुद्रणों (printing), चिन्ह्रों या किसी अन्य प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त करना।
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हें संप्रेषित कर सके।
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता क्यों जरुरी है?
इण्डियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि ‘अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता’ चार विशेष उद्देश्यों की पूर्ति करती है
यह व्यक्ति की आत्मोन्नति में सहायक होती है,
यह सत्य की खोज में सहायक होती है,
यह व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता को मजबूत करती है, और
यह स्थिरता (Stability) और सामाजिक परिवर्तन में युक्तियुक्त सामंजस्य स्थापित करने में सहायक होती है।
व्युत्पन्न अधिकार (Derivative Rights)
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मे सम्मिलित अधिकार
बोलने की स्वतंत्रता–
अपने विचार को प्रस्तुत एवं प्रसारित करने का अधिकार
प्रेस की स्वतन्त्रता (विचारों, भाषणों को छापने की स्वतंत्रता) (साकल पेपर्स लिमिटेड बनाम भारत संघ)
जानने का अधिकार (Right To Know)
सूचना का अधिकार (RTI Act 2005)
फोन टेप करने के विरुद्ध अधिकार
राष्ट्र ध्वज फहराने का अधिकार* (भारत संध बनाम नवीन जिंदल)
अभिव्यक्ति पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता हो, तो विदेश भ्रमण मूल अधिकार है, लेकिन परोक्ष प्रभाव में नही (मेनका गाँधी बनाम भारत संघ)
खुद के प्रचार के लिए व्यापारिक विज्ञापन देने का अधिकार
शिक्षण का माध्यम चयन करने का अधिकार
मौन रहने की स्वतंत्रता (इमैनुअल बनाम केरल राज्य)
बन्द, प्रदर्शन या धरना, और हड़ताल के अधिकार
बन्द का आह्वान एवं आयोजन असंवैधानि बन्द का आयोजन करना असंवैधानिक(Unconstitutional) और अवैध(Illegal) है। (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) बनाम भरत कुमार और अन्य’)
इस केस में केरल उच्च न्यायालय ने ‘बन्द’ और ‘हड़ताल’ में भेद नागरिकों के मूल अधिकारों पर इनके द्वारा पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर किया था।
उच्च न्यायालय के अनुसार ‘बन्द’ से नागरिकों के मूल अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और वे उनके प्रयोग करने से वंचित हो जाते हैं जबकि हड़ताल का ऐसा प्रभाव नहीं पड़ता है।
केरल उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि बन्द के आह्वान में नागरिकों को अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से यह धमकी दी जाती है कि वे अपनी सभी कार्यकलापों, और पेशों को रोक दें और घर से बाहर न जाएं अन्यथा उसका परिणाम भयानक होगा।
यदि शारीरिक हिंसा न भी हो तो भी नागरिकों में मनोवैज्ञानिक भय व्याप्त हो जाता है जिसके कारण वे अपने मूल अधिकारों का प्रयोग करने से वंचित हो जाते हैं।
जब किसी नागरिक को बलपूर्वक काम पर जाने या अपने कारोबार या पेशे को करने से रोका जाता है तो उसके मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है।
संक्षेप्त में: बन्द का आह्वाहन करना, उसमे भाग लेना, सभी गैर क़ानूनी है और देश के विकास में अवरोध पैदा करती है
हड़ताल का अधिकार-
हड़ताल करने का अधिकार अनुच्छेद 19(1) (क) के अन्तर्गत कोई मूल अधिकार नहीं है, अतएव किसी भी व्यक्ति को हड़ताल करने से रोका जा सकता है।
प्रदर्शन जब हड़ताल का रूप धारण कर लेता है तो वह विचारों की अभिव्यक्ति नहीं रहता है क्योकि हड़ताल में भी सामान्य नागरिक और देश को नुकशान जेलना पड़ता है
जैसे:- बस ड्राईवर की हड़ताल, डॉक्टर की हड़ताल, बैंक कर्मचारी की हड़ताल
प्रदर्शन या धरना
प्रदर्शन करना या धरना देना (Demonstration or picketing) भी मनुष्य की अभिव्यक्ति में समाविष्ट हैं।
लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उसी प्रदर्शन और धरने को मिलेगी जो अहिंसक है और बिन उपद्रवी होंगे, जैसे ही प्रदर्शन हिंसक होते है उसकी स्वतंत्रता का अधिकार चला जाता है, और हिंसक प्रदर्शनकारी पर पुलिस दमन नीति अपना सकती है
जैसे:- जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध प्रदर्शन, बलत्कार के अपराधी को सजा देनी की मांग के लिए प्रदर्शन, सरकार की नीति के खिलाफ धरना
आसान शब्दों में समझे तो, मांग मंगवाने के लिए गंभीरता के आधार पर बन्ध का आह्वाहन > हड़ताल > प्रदर्शन या धरना क्रमानुसार है
प्रतिबंध के आधार अनुच्छेद 19(2)
अनुच्छेद 19(2) में निम्नलिखित आधारों का उल्लेख है जिनके आधार पर नागरिकों की वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं
राज्य की सुरक्षा-
विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के हित में;
लोक व्यवस्था (Public Order);
शिष्टाचार या सदाचार के हित में (Decency or morality);
न्यायालय-अवमान (Contempt of Court);
मानहानि;(Defamation)
अपराध उद्दीपन के मामले में (Incitement to an offence);
भारत की सम्प्रभुता एवं अखण्डता।
अनुच्छेद स्वतंत्रता (Freedom)- प्रतिबन्ध(Restrictions)
अनुच्छेद 19(1) क वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(2)
1. राज्य की सुरक्षा
2. विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के हित में
3. लोक व्यवस्था
4. शिष्टाचार या सदाचार के हित में
5. न्यायालय-अवमान
6. मानहानि
7. अपराध उद्दीपन के मामले मे
8. भारत की सम्प्रभुता एवं अखण्डता।
अनुच्छेद 19(1) ख सभा एवं सम्मलेन की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(3)
1. सभा शांतिपूर्ण होनी चाहिए
2. सभा बिना हथियार के होनी चाहिए
3. भारत की प्रभुता और अखंडता या लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन
अनुच्छेद 19(1) ग संघ की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(4)
1. लोक व्यवस्था
2. सदाचार (नैतिकता)
3. देश की प्रभुता और अखंडता के हित में
अनुच्छेद 19(1) घ संचरण की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(5)
1. साधारण जनता के हित में
2. किसी अनुसूचित जनजाति के हित के संरक्षण के लिए
अनुच्छेद 19(1) ड निवास की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(5)
1. साधारण जनता के हित में
2. किसी अनुसूचित जनजाति के हित के संरक्षण के लिए
अनुच्छेद 19(1) छवृति, उपजीविका, व्यापार एवं कारबार की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(6)
1. साधारण जनता के हित में
2. किसी वृति या व्यापार के लिए आवश्यक व्यवसायिक या तकनीकी लायकात राज्य निर्धारित करके
3. नागरिकों को पूर्णत: या भागत: किसी व्यापार या कारबार से बहिष्कृत करने की शक्ति प्रदान करक भारत का संविधान अनुच्छेद 19 वाक-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण, वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्यों जरुरी है?
जनता में तार्किक एवं आलोचनात्मक शक्ति का विकास करने, जो प्रजातान्त्रिक सरकार के समुचित संचालन के लिए आवश्यक है।
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ क्या है?
शब्दों, लेखों, मुद्रणों (printing), चिन्ह्रों या किसी अन्य प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त करना।
शिक्षण का माध्यम चयन करने का अधिकार किस अनुच्छेद से मिलता है?
जिस भाषा में पढ़ेंगे उस भाषा में बोलेंगे इसीलिए, शिक्षण का माध्यम चयन करने का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(क) में अधीन आता है, नही के अनुच्छेद 21 या 21-क
स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान कोनसे अनुच्छेद में है?
स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान पांच(5) अनुच्छेद में है, अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 20, अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 21A, और अनुच्छेद 22
लेखक – हरीराम जाट, नसीराबाद, अजमेर (राज.) सम्पर्क – 946137-6979