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स्वच्छता अभियान के प्रतीक: राष्ट्र सन्त गाडगे बाबा
( जन्म: 23 फरवरी 1876, परिनिर्वाण: 20 दिसम्बर 1956)

  • जन्म परिचय: राष्ट्र सन्त गाडगे बाबा का जन्म 23 फरवरी 1876 को महाराष्ट्र राज्य के अमरावती जिले के सेंड गाँव में एक साधारण अनुसूचित जाति के धोबी परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम देवीदास डेबूजी झिंगराजी जानोरकर था। इनके पिताजी का नाम झिंगराजी जानोरकर व माताजी का नाम श्रीमती सखुबाई था। धोबी जाति से होने के कारण पैतृक कार्य लोगों के कपड़े धोने का रहा। बचपन में ही सन 1884 में उनके पिताजी का निधन हो गया था। जिस कारण उनकी माताजी उन्हें अपने मायके लेकर चली गई तथा वे वहीं पशु चराने,कृषि कार्य करने आदि में लग गए।
  • विवाह: गाडगे बाबा का विवाह सन 1892 में कलालपुर गाँव के घनाजी खल्लारकर की सुपुत्री कुंताबाई के साथ हुआ। जिनसे उन्हें चार संतानें पैदा हुई। बेटी अलोखबाई व कलावती तथा बेटे मुगडल व गोविंद राव। उनका मन सांसारिक सुख सुविधाओं में नहीं लगने के कारण उन्होंने 13 वर्ष तक गृहस्थ जीवन का पालन करते हुए 01 फरवरी 1905 को गृह त्याग दिया।
  • अज्ञातवास: सन्त गाडगे बाबा सन 1905 से 1917 तक अज्ञातवास में रहें। वहीं पर उन्होंने भजन-कीर्तन,सामाजिक व्यवस्था,जीवन चर्या,ईश्वर-अनीश्वर आदि पर गहन मनन, चिंतन किया तथा समाज सेवा व स्वछता के क्षेत्र को चुना।
  • सादा जीवन उच्च विचार: वे सादगी पसन्द सन्त थे तथा धार्मिक बाह्य आडम्बरों व अंधविश्वासों से कोसों दूर रहते थे। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य मानव सेवा था। दीनदुखियों, शोषितों व उपेक्षितों की सेवा को ही वे ईश्वर भक्ति मानते थे। उनका विश्वास था कि ईश्वर न तो तीर्थ स्थलों में है व न ही मन्दिर-मस्जिदों में और न ही मूर्तियों आदि में है। उनका मत था कि दरिद्र नारायण के रूप में ईश्वर मानव समाज में विद्यमान है। वे कहते थे कि तीर्थ स्थलों पर पण्डे-पुजारी आदि सभी भ्रष्टाचारी है। वे धर्म के नाम पर भोले-भाले लोगों को ठगते हैं और समाज में पाखण्ड व अंधविश्वास फैलाते हैं। धर्म के नाम पर होने वाली पशुबलि के साथ साथ समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों, कुप्रथाओं, बुराईयों जैसे-नशाखोरी, जीव हत्या, छुआछूत, भेदभाव, बाल-विवाह, महिला हिंसा, अशिक्षा, किसानों-मजदूरों के शोषण आदि के भी प्रबल विरोधी थे। वे साधु-संतों के चरण छूने के घोर विरोधी थे।
  • पहनावा: एक सन्त के रूप में उनका पहनावा भी बहुत साधारण था। एक लकड़ी, फ़टी-पुरानी चादर और एक मिट्टी का बर्तन जो खाने-पीने व कीर्तन के समय ढपली का काम करता था। सिर पर झींझा, खपरा के टुकड़े से बनी टोपी, एक कान में खोपड़ी, दूसरे कान में टूटी हुई चूड़ी, एक हाथ में झाड़ू, दूसरे हाथ में मिट्टी का घड़ा यही उनकी पहचान थी।
  • गाडगे बाबा के जनोपयोगी कार्य: उन्होंने महाराष्ट्र के कोने-कोने में अनेक धर्मशालाएं, गौशालाएं, विद्यालय, चिकित्सालय, छात्रावासों आदि का निर्माण करवाया। यह सब उन्होंने लोगों से भीख मांगकर बनवाए। लेकिन अपने स्वयं के लिए कुटिया तक नहीं बनवाई। उन्होंने धर्मशालाओं के बरामदे या किसी वृक्ष के नीचे अपनी सारी जिंदगी निकाली। उन्होंने सन 1908 में पूर्णा नदी के तट पर घाट बनवाया। सन 1914 में ऋणमोचन में पहली धर्मशाला का निर्माण करवाया। सन 1917 में पन्ठरपुर की चोखामेला धर्मशाला का निर्माण करवाया, जिसमें करीब एक लाख रुपये खर्च हुए। जिसे बाद में उन्हें बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर द्वारा स्थापित पीपुल्स एज्युकेशन सोसायटी को छात्रावास के लिए सौंप दिया।
  • गाडगे बाबा का जीवन के लिए बहुद्देश्यीय सन्देश: (1) भूखे को अन्न(रोटी) दो, (2) प्यासे को पानी पिलाओ, (3) वस्त्रहीन लोगों को वस्त्र दो, (4) गरीब बच्चों की शिक्षा में मदद करो तथा हर गरीब को शिक्षा देने में योगदान दो, (5) बेघर लोगों को आसरा दो, (6) अंधे, अपंग, दिव्यांग, बीमार व्यक्ति की सहायता करो, (7) बेरोजगारों को रोजगार दो, (8) दुःखी व निराश लोगों को हिम्मत दो, (9) गरीब, कमजोर लोगों के बच्चों की शादी में मदद करो, (10) पशु-पक्षी व मूक प्राणियों को अभयदान दो।
  • संगठन की स्थापना: सन्त गाडगे बाबा ने 60 से अधिक लोकोपयोगी संस्थाओं की स्थापना की। 8 फरवरी 1952 को उनके द्वारा स्थापित गाडगे बाबा मिशन मुंबई जो कि संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर से प्रेरणा लेकर 50 से अधिक छात्रावास, आश्रम, स्कूल, महिलाश्रम, वृद्धाश्रम, परिश्रमालय, गौशाला, कुष्ठशाला आदि की स्थापना की। यह संस्था आज भी जनसेवा के प्रति सदैव तत्पर रहती है।
  • स्वच्छता अभियान: सन्त गाडगे बाबा ने जीवन पर्यंत स्वच्छता अभियान पर ही विशेष बल दिया था। उनका मानना था कि अगर हमारे आस पास का वातावरण साफ-सुथरा होगा तो चारों तरफ खुशहाली होगी। पर्यावरण संरक्षण के लिए वे अधिक से अधिक वृक्षारोपण लगाने व नदियों, तालाबों, आम चौराहों को साफ-सुथरा रखने में ही अपना समय व्यतीत करते थे। इसीलिए उन्होंने गाँव गॉंव जाकर स्वच्छता के लिए अलख जगाया था। अतः यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि स्वच्छता व समानता के लिए पहले प्रतीक गाँधी जी नहीं बल्कि सन्त गाडगे बाबा थे।
  • अवधारणा: सन्त गाडगे बाबा वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले महान समाज सुधारक थे। वे कीर्तन भी करते तथा सन्त तुकाराम जी को अपना गुरु मानते थे।
  • विशेष- (१) महाराष्ट्र में मिट्टी के घड़े/मटके को गाड़गा कहते हैं। सन्त गाडगे बाबा हमेशा अपने हाथ में मिट्टी का छोटा बर्तन रखते थे जिस कारण उनका नाम गाडगे बाबा पड़ गया।
  • (२) संघ लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ.एम.एल. शहारे ने अपनी आत्मकथा “यादों के झरोखे से” में बाबा साहेब डॉ आंबेडकर व सन्त गाडगे बाबा के बारे में जिक्र किया है। वे लिखते हैं कि उन दोनों की आपस में काफी अच्छी मित्रता थी। उन दोनों की कई बार विभिन्न पहलुओं पर आपसी चर्चाएं व मुलाकातें हुई है। दोनों एक-दूसरे का आदर व सम्मान करते थे।
  • (३) 01 मई 1983 को महाराष्ट्र सरकार ने अमरावती में सन्त गाडगे बाबा के सम्मान में सन्त गाडगे बाबा विद्यापीठ की स्थापना की।
  • (४) 20 दिसम्बर 1998 को उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी किया है।
  • (५) सन 2001 में महाराष्ट्र सरकार ने उनकी स्मृति में सन्त गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान शुरू किया है।
  • परिनिर्वाण: जीवन में अंतिम समय में वे बीमार हो गए थे,जब उन्हें अस्पताल से छुट्टी दी गई तो ज्ञात हुआ कि 6 दिसम्बर 1956 को बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर जी का परिनिर्वाण हो गया है। यह दुःखद समाचार सुनकर उन्हें बहुत अफसोस हुआ कि वे अंतिम समय में बाबा साहेब का दर्शन नहीं कर पाएं। वे अक्सर व्यथित रहने लगे तथा 20 दिसम्बर 1956 को उनका परिनिर्वाण हो गया।
  • उपसंहार: सन्त गाडगे बाबा का पूरा जीवन समाजोपयोगी, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा आदि पर आधारित रहा है तथा पाखण्डवाद, बाह्य आडम्बर, छुआछूत, भेदभाव, सामाजिक असमानता, नशाखोरी, सामाजिक बुराइयों को जड़मूल से समाप्त करने पर रहा है। राष्ट्र सन्त गाडगे बाबा एक सच्चे कर्मयोगी थे। उन्होंने तीर्थ स्थानों पर बड़ी-बड़ी धर्मशालाएं इसीलिए बनवाई ताकि गरीब यात्रियों को वहाँ पर मुफ्त में रहने की सुविधा मिल सके। नासिक में उनके द्वारा निर्मित धर्मशाला में करीब 500 यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था है। यहाँ पर यात्रियों को सिगड़ी,बर्तन आदि निःशुल्क दिए जाते हैं। उनका मत है कि मन्दिर विद्यालय से बड़े नहीं है। अगर पैसों की तंगी है तो घर के बर्तन बेच दो, गहने बेच दो लेकिन अपने बच्चों को शिक्षा दिलाएं बिना मत रखो। आज उनकी 149 वीं जन्म जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।

आलेख: मास्टर भोमाराम बोस
प्रदेश महामंत्री (संगठन)
भारतीय दलित साहित्य अकादमी, राजस्थान प्रदेश
प्रदेश संगठन मंत्री: राजस्थान मेघवाल परिषद, बीकानेर
सम्पर्क- 98292 36009

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