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जोधपुर | भगवद्गुण सम्पन्न अध्यात्म विभूति श्रीवैषणव संत परम पूज्य स्वामी श्री रामप्रकाशाचर्य जी महाराज “अच्युत” को पीएचडी की मानद उपाधि सनराइज यूनिवर्सिटी बीकानेर की तरफ से प्रदान की गई। शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोच्च उपाधि पीएचडी साहित्य एवं रचना को देखकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त सनराइज विश्वविद्यालय द्वारा मानद पीएचडी डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की उपाधि से विभूषित किया गया।
यह कार्यक्रम रामसिंह मेमोरियल सभागार जोधपुर के परिसर में उत्तम आश्रम मानव कल्याण समिति की देखरेख में राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत और शेरगढ विधायक मीना कंवर उम्मेदसिंह और अनेक प्रोफेसरों की उपस्थिति में संपन्न हुआ। और महाराज की पुरी जीवनी प्रदर्शित की गई।

स्वामीजी का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मीरपुर खास में दिनांक 22 नवंबर 1930 को मेघवंशी परिवार में हुआ। महाराज जी ने 5 वर्ष की उम्र में परम योगीराज एवं ब्रह्मनिष्ठ संत श्री उत्तम राम जी महाराज बैरागी से गुरु दीक्षा ली और 12 वर्ष की अवस्था में भेष दीक्षा ली थी। स्वामीजी ने भारत की स्वाधीनता प्राप्ति के लिए स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी कार्य किया। जब भारत स्वतंत्र हुआ तब बंटवारे की वजह से सिंध प्रांत में स्थित विशाल आश्रम को छोड़कर महाराज अपने गुरुदेव के साथ भारत आ गए। सन् 1950 में नागोरी गेट के बाहर काग भुषुण्डि ऋषि की तपस्थली में उत्तम आश्रम की स्थापना की। राजगुरु स्वामी श्री हरिराम महाराज बैरागी की श्री वैष्णव रामानंदी परंपरा में स्थापित यह आश्रम महाराज की कर्मस्थली रहा। स्वामीजी ने आध्यात्मिक साधना सत्साहित्य लेखन-प्रकाशन के साथ-साथ हिंदू सेवा मंडल, काशी विश्वनाथ मंदिर आंदोलन, विश्व हिंदू परिषद आदि संस्थाओं से जुड़कर सामाजिक मार्गदर्शन भी करते रहे हैं।

वि.सं. 2034 में गुरुदेव स्वामी श्री उत्तम राम जी महाराज के ब्रह्मलीन होने के उपरांत स्वामी जी श्री वैष्णव विरक्त गूदड़ गद्दी जोधपुर के षष्ठ पीठाधीश्वर के रूप में गद्दी पर आसीन हुए।
महाराज ने अपने जीवन में समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों का अपने प्रवचन एवं लेखनी के माध्यम से निवारण करने का प्रयास किया। महाराज श्री ने केवल अपने प्रवचनों में निषेधात्मक उपदेशों के द्वारा ही नहीं अपितु कईयों को शक्तिपात द्वारा भी व्यसनों को छुड़ाकर उनका जीवन सुखमय कर दिया। स्वामी जी ने नशा खंडन दर्पण जैसी पुस्तकें भी लिखी। महाराज ने अपने वचनों के माध्यम से शास्त्रों की विभिन्न उदाहरण देकर अस्पृश्यता एवं अनेक अंधविश्वासी धर्म के नाम पर कुप्रथाओं के निवारण का सार्थक प्रयास किया। स्वामीजी ने अपने जीवन में शिक्षा से संबंधित विभिन्न योग्यताएं अर्जित की है जैसे तर्कवागीश, आयुर्वेदरत्न, साहित्य शास्त्री, साहित्याचार्य, कवि भूषण, विद्या-वाचस्पति, धर्मवारिधि, आयुर्वेद में चिकित्सा RMP आदि एवं श्री स्वामीजी ने पूर्व आचार्यों द्वारा रचित 17 विविध ग्रंथों का संपादन किया इसके अलावा स्वरचित रचना में 57 ग्रंथों का प्रकाशन करवाया और बाहरी विविध संतो की रचना के 86 ग्रंथों का संपादन एवं प्रकाशन करवा कर आध्यात्मिक साहित्य जगत में उत्कृष्ट कार्य किया।
सैकड़ों सर्व समाज के श्रद्धालुओं, भक्तों और बुद्धिजीवियों के मध्य यह कार्यक्रम संपन्न हुआ अंत में महाराजश्री ने कहा कि कि जब तक हम गुण जैसे सत, पवित्रता, दया, त्याग, क्षमा, समानता और तप आदि प्राप्त नहीं कर लेते तब तक हम पशु के समान है क्योंकि पशु भी खाता है, सोता है , संतान पैदा करता है और डरता है जब हम धर्म करते हैं तब हम मनुष्य कहलाने लायक बनते हैं।

कार्यक्रम में अनेक वक्ताओं ने महाराज का गुणगान किया अंत में डॉक्टर संत श्री सुखदेव प्रसाद योगाचार्य ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग किया। नाश्ते की व्यवस्था सरवड़ी से पीराराम देवपाल ने की और गैर नृत्य सणतरा की टीम द्वारा किया गया और अपने क्षैत्र से अमृतरामजी महाराज महंत रणजीत आश्रम बालोतरा, सालगराम परिहार नेशनल अवॉर्डी, गणेशराम बुनकर समदड़ी, भीमाराम देवपाल सरवड़ी, घेवरराम पांचाल टापरा, लुणाराम जीनगर कल्याणपुर, जोगाराम देवपाल सरवड़ी, इंजिनियर कमलेश देवपाल सरवड़ी, बाबुराम देवपाल, और राकेश देवपाल उपस्थित रहे और स्वामीजी का सम्मान किया।

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