भारत का संविधान के मौलिक अधिकार, अनुच्छेद-21 देता है आपको चैन की नींद का अधिकार

चैन की नींद लेना संविधान के आर्टिकल 21 के तहत राइट टू लाइफ के अंतर्गत आता है

• जागो हुक्मरान न्यूज़

आराम से नींद लेने का अधिकार: मुझे नींद चाहिए..!

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

भारत का संविधान के मौलिक अधिकार, अनुच्छेद-21 देता है आपको चैन की नींद का अधिकार

चैन की नींद लेना संविधान के आर्टिकल 21 के तहत राइट टू लाइफ के अंतर्गत आता है

________________________________________

Right To Sleep: रामलीला मैदान वाले केस में सुप्रीम कोर्ट के जज ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा था कि चैन की नींद लेना किसी व्यक्ति का फंडामेंटल अधिकार है.
Right To Sleep: मुझे नींद चाहिए… भारत का संविधान देता है आपको चैन की नींद का अधिकार
भारत का संविधान देता है सोने का अधिकार

भारत में रहने वाले हर भारतीय नागरिक के पास संवैधानिक रूप से कुछ अधिकार हैं, जिन्हें कोई छीन नहीं सकता है. इन्हीं अधिकारों में से एक अधिकार है चैन की नींद. अगर कोई व्यक्ति या संस्था किसी भारतीय नागरिक के नींद में बेवजह खलल डालता है तो यह उस व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन है, जो उसे भारतीय संविधान द्वारा मिले हैं.

कोर्ट ने भी माना:- दरअसल, हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस पर एक अहम बयान दिया था. मामला ये था कि बॉम्बे हाईकोर्ट महाराष्ट्र के एक सीनियर सिटिजन राम इसरानी द्वारा लगाई गई एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था. राम इसरानी द्वारा दायर की गई इस याचिका में कहा गया कि एक मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी उनसे पूछताछ करना चाह रही थी, जिसके लिए उन्होंने हां भी कर दी थी. लेकिन इसके बाद भी ईडी के अधिकारियों ने रात के 10 बजे से लेकर सुबह के 3:30 बजे तक उनका बयान लिया.

हाईकोर्ट ने इस याचिका को तो खारिज कर दिया, लेकिन ईडी की इस तरह की कार्यवाही पर उसने सवाल जरूर उठाए. कोर्ट के मुताबिक, सोने या फिर झपकी लेने का अधिकार एक मानवीय और बुनियादी आवश्यक्ता है. इससे किसी को वंचित करना व्यक्ति के मानवाधिकारों का उल्लंघन है. इसके अलावा आपको याद होगा साल 2012 में भी दिल्ली के रामलीला मैदान में पुलिस की कार्रवाई पर भी सुप्रीम कोर्ट ने कुछ इसी तरह का बयान दिया था.

संविधान के इस आर्टिकल के तहत है अधिकार:- दरअसल, चैन की नींद लेना संविधान के आर्टिकल 21 के तहत राइट टू लाइफ के अंतर्गत आता है. रामलीला मैदान वाले केस में सुप्रीम कोर्ट के जज ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा था कि चैन की नींद लेना किसी व्यक्ति का फंडामेंटल अधिकार है. ये जीवन के लिए जरूरी है और इसे किसी भी व्यक्ति से नहीं छीना जा सकता. हालांकि, कोर्ट ने यहां ये भी साफ किया था कि आपको सोने का अधिकार है, लेकिन सही जगह पर. ऐसा ना हो कि आप कोर्ट में या फिर संसद में सो रहे हों.

लेखक: हरीराम जाट, नसीराबाद (राज.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *