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– मेरे घर भी आई दिवाली –

मेरे घर भी आई दिवाली,
धूम-धड़ाका लाई दिवाली।
रंग-बिरंगी आई दिवाली,
घर-घर में लाई खुशहाली।।

मम्मी ने भी पहन ही डाली,
आज वो साड़ी गोटे वाली।
बात भी थी आज निराली,
पूरी हुई इच्छा बरसों वाली।।

पापा ने करी बात निराली,
बीड़ी-सिगरेट कुंए में डाली।
छोड़ी लत भी जुए वाली,
दूर करी दारू करी प्याली।।

मम्मी जी धीरे से बोली,
“मेरे घर भी आई दिवाली”।
आई दिवाली आई दिवाली,
धूम-धड़ाका लाई दिवाली।।

लेखक- डॉ गुलाब चन्द जिन्दल ‘मेघ’
गुलाब बाड़ी, अजमेर,(राज) सम्पर्क -9460180510

( नोट- यह कविता वर्ष 2003 में लिखी गई, जो ‘हकदार’ पाक्षिक समाचार पत्र में प्रकाशित हुई थी )

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