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विश्व की वास्तविक क्रांति: आधुनिक भारत की सामाजिक और शैक्षणिक क्रांति महात्मा ज्योतिबा फूले और सावित्री बाई फुले ने 1848 में प्रारंभ की।

वो थे इसलिए आज हम हैं।…

भारत के शोषितों वंचितों पिछड़ों, बहुजन क्रांति के ध्वजवाहक, मानवता के प्रचारक महिलाओं में शिक्षा अलख जगाने वाले सामाजिक क्रांति के पुरोधा राष्ट्रपिता, बहुजन नायक, ओबीसी समाज के सम्मान के प्रतीक सामाजिक क्रांति व शिक्षा के अग्रदूत राष्ट्रपिता ज्योतिवाराव फुले ने 1848 का वर्ष दुनिया भर में महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आया है।

फुले साहब ताउम्र शोषितों के पक्ष में अन्यायकारी व्यवस्था के खिलाफ लड़ते रहे। 19वीं सदी के अंतिम दशक में पूना प्लेग महामारी से ग्रस्त हुआ था। फुले दम्पति ने प्लेग रोगियों की अथक सेवा की। इसी दौरान ज्योतिराव फुले भी प्लेग की चपेट में आ गए और 28 नवम्बर 1890 को मौत हो गई।।

‘‘राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने कहा है-
विद्या बिना मति गयी, मति बिना नीति गयी, नीति बिना गति गयी, गति बिना वित्त गया, वित्त बिना शूद गये, इतने अनर्थ,एक अविद्या ने किये।

महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था।
राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले ने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पत्नी माता सावित्री बाई फुले जी के साथ मिलकर काम किया।

आज हम बात कर रहें हैं बहुजन क्रांति के ध्वजवाहक, सत्यशोधक समाज के संस्थापक, मानवता के प्रचारक महिलाओं में शिक्षा अलख जगाने वाले सामाजिक, शैक्षणिक क्रांति के अग्रदूत, राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले की। प्रथम बार महिलाओं के लिए शिक्षा का द्वार खोलने वाली मदर इंडिया सावित्री बाई फुले एंव राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले के चरणों में शत्-शत् नमन एंव विनम्र श्रद्धांजलि।

क्या आप लोगों को पता है महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने 174 साल पहले ही खोल दिए थे।
महात्मा ज्योतिबा फूले और सावित्री बाई फुले ने मिलकर 01 जनवरी 1848 को पूना (महाराष्ट्र) में शूद्र, अति शुद्र, लड़कियों के लिए पहला पाठशाला खोला।।

ज्योतिबा फूले का बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम उठाया!!

♦15 मई1848 को दूसरा।
♦03 जुलाई1851 को तीसरा।
♦17 सितम्बर1851 को एक पाठशाला लड़को के लिए भी खोला।
♦15 मार्च1852 को चौथा पाठशाला खोला।

ब्राह्मणों ने स्कूल बंद करने की धमकियां दी। वे उनकी धमकियों से डरे नहीं है, उनके परिश्रम और लगातार लग्न से कन्या पाठशाला में लड़कियों की संख्या बढ़ने लगी, जिससे एक शिक्षक की अति आवश्यकता हुई। दूसरा शिक्षक मिलना बहुत ही मुश्किल था।
अत: इसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई को घर पर ही लिखा पढ़ाकर तैयार किया और फिर वे देश की पहली महिला शिक्षिका के रूप में पढ़ाने लगी।
इस कृत्य को उन्होने आग में घी डालने का काम किया!
ब्राह्मण क्रोध से पागल हो उठे, जब माता सावित्री बाई फुले स्कूल जाती तो रास्ते से गुजरते समय लोग उन पर मिट्टी के ढेले, कीचड़, कंकड़, पत्थर, गोबर फेंकने लगे लेकिन वे बिकुल ही विचलित नहीं हुई और न ही घबराई। वे रास्ते में रुककर कहती थी कि, “भगवान तुमको क्षमा करे” मैं अपना कर्तव्य पूरा कर रही हूं। आप लोग अपना कर्तव्य पूरा करो।

18 महिला स्‍कूल मुम्बई सरकार के अभिलेखों में भी ज्योतिबा फुले द्वारा पुणे एवं उसके आस-पास के क्षेत्रों में शुद्र बालक-बालिकाओं के लिए कुल 22 स्कूल खोले जाने का उल्लेख मिलता है | ज्योतिबा फुले के महत्व को इससे भी समझा जा सकता है कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक ’शूद्र कौन थे?’ को 10 अक्टूबर 1946 को महात्मा फुले को समर्पित करते हुए लिखा- ‘जिन्होंने हिन्दु समाज की छोटी जातियों को उच्च वर्णो के प्रति उनकी गुलामी की भावना के संबंध में जागृत किया और जिन्होंने विदेशी शासन से मुक्ति पाने से भी ज्यादा सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना को महत्व दिया,उस आधुनिक भारत के महान ज्योतिबा फुले की स्मृकति में सादर समर्पित। ज्योतिबा फुले ऐसे महान विचारक, समाज सेवी तथा क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे जिन्होंने भारतीय सामाजिक संरचना की जड़ता को ध्वस्त करने का काम किया। महिलाओं, दलितों एवं शूद्रों की अपमानजनक जीवन स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए वे आजीवन संघर्षरत रहे।

राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी का जीवन परिचय।
‘‘बहुजनों के इस अप्रितम योद्धा,क्रांतिकारी लेखक, प्रकाशकऔर जातिवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना के प्रखर नायक, महामानव महात्मा ज्योतिबा फुले जी का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के माली जाति के परिवार में हुआ था। ज्योतिबा फुले जी के पिता का नाम गोविन्द राव और माता का नाम चिमनबाई था। ज्योतिबा फुले के बड़े भाई का नाम राजाराम था पूना के आस-पास माली जाति के लोगों को फुले (फूल वाले) कहा जाता है ज्योतिराव फुले की माता चिमनाबाई का निधन उस समय हो गया जब वे मात्र एक वर्ष के थे| अब उनके पिता जी के सामने ज्योतिबा के पालन-पोषण की चिंता थी. उन्होंने उनके लिए एक धाय को नौकर रखा लेकिन दूसरी शादी नहीं की उस धाय ने भी एक माता के समान ज्योतिबा का पालन-पोषण किया।

महात्मा ज्योतिबा बहुत बुद्धिमान थे उन्होंने मराठी में अध्ययन किया, वे महान क्रांतिकारी, भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक एवं दार्शनिक थे। 1840 में ज्योतिबा का विवाह माता सावित्रीबाई से हुआ था।

19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें ‘महात्मा फुले’ एवं ‘ज्‍योतिबा फुले’ के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिबा जी महाराष्ट्र के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने शिवाजी के पराक्रम, साहस और कुशलता पर गीत लिखे। उन्होंने शिवाजी के महान आदर्शों का वर्णन किया।

महाराष्ट्र के समाज सुधारकों राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले में सर्वाधिक आक्रामक, प्रतिभा संपन्न और विद्रोही व्यक्तित्व महात्मा ज्योतिबा फुले भारतीय सामाजिक क्रांति के जनक कहलाते हैं। ज्योतिबा फुले जी ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले जी के साथ मिलकर उन्नीसवीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, शिक्षा छुआछूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह तथा विधवा-विवाह जैसी कुरीतियां और समाज में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़ियों के विरुद्ध संघर्ष किया. ज्योतिबा फुले जी माता सावित्री बाई फुले के मार्गदर्शन, संरक्षक, गुरु, प्रेरणा स्रोत तो थे ही पर जब तक वो जीवित रहे सावित्रीबाई का होसला बढ़ाते रहे और किसी की परवाह ना करते हुए आगे बढने की प्रेरणा देते रहे ।

शिक्षा के असली प्रचारक राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिराव फूले जी थे और प्रथम महिला शिक्षा का विद्यालय की स्थापना फुले साहब की ही देन है। ज्योतिबा फुले जी ने 1848 में भारत का प्रथम स्कूल खोला तब तक तो बॉम्बे हाई स्कूल भी नहीँ खुला था। उन्होंने लड़कियोँ को पढाने के लिये कुल तीन स्कूल खोले। ज्योतिबा फुले जी को अपने स्कूल में जब लड़कियोँ को पढाने के लिये महिला टीचर (शिक्षिका) तक नहीँ मिली, तब उन्होनेँ अपनी पत्नी सावित्री बाई को शिक्षण के लिये तैयार किया। 1853 में महात्मा ज्योतिराव फुले जी और उनकी पत्नी सावित्री बाई ने अपने मकान में प्रौढ़ों के लिए रात्रि पाठशाला खोली।

राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले फुले एक समता मूलक और न्याय पर आधारित समाज की बात कर रहे थे इसलिए उन्होंने अपनी रचनाओं में किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए विस्तृत योजना का उल्लेख किया है। पशुपालन, खेती, सिंचाई व्यवस्था सबके बारे में उन्होंने विस्तार से लिखा है। गरीबों के बच्चों की शिक्षा पर उन्होंने बहुत जोर दिया।

राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले आज से 150 साल पहले ‘कृषि विद्यालय’ की बात उठायी। ये वो समय था, जबकि किसानों की दुर्दशा पर कोई समाज सुधारक बोलते नहीँ थे। जानकार बताते हैं कि 1875 में पुणे और अहमद नगर जिलों का जो किसानों का आंदोलन था, वह महात्मा फुले की प्रेरणा से ही हुआ था। इस दौर के समाज सुधारकों में किसानों के बारे में विस्तार से सोच-विचार करने का रिवाज़ नहीं था लेकिन राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले ने इस सबको अपने आंदोलन का हिस्सा बनाया। राष्ट्रपिता ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया। 1 जनवरी 1848 से लेकर 15 मार्च 1852 के दौरान सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने बिना किसी आर्थिक मदद और सहारे के लड़कियों के लिए 18 विद्यालय खोले।
उस दौर में ऐसा सामाजिक क्रांतिकारी की पहल पहले किसी ने नही की थी। इन शिक्षा केन्द्र में से एक 1849 में पूना में ही उस्मान शेख के घर पर मुस्लिम स्त्रियों व बच्चों के लिए खोला था।

राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले एवं माता सावित्रीबाई अपने विद्यार्थियों से कहा करतें थे कि “कड़ी मेहनत करो, अच्छे से पढ़ाई करो और अच्छा काम करो”
ब्रिटिश सरकार के शिक्षा विभाग ने शिक्षा के क्षेत्र में मदर इंडिया सावित्रीबाई फुले और महात्मा ज्योतिबा फुले के योगदान को देखते हुए 16 नवम्बर 1852 को उन्हें शॉल भेंटकर सम्मानित किया।

हरीराम जाट
नसीराबाद, अजमेर (राज.) मो.- 94613-76979

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