• जागो हुक्मरान न्यूज़

~ वैचारिक क्रांति ~

एक पिता जन्माष्टमी पर अपने बच्चे को कृष्ण की ड्रेस में तैयार करके विद्यालय छोड़ने जा रहा था। उसी विद्यालय में पढ़ने वाले एक और बच्चे के पिता अपने बेटे को डॉक्टर की ड्रेस में तैयार करके स्कूल छोड़ने आए।

जैसे ही वे दोनों पिता अपने बच्चों को लेकर विद्यालय के गेट पर पहुंचे तो, डॉक्टर के कपड़े पहने बच्चे ने अपने पिता से पूछा पिताजी मेरे स्कूल के सभी बच्चों ने यह अलग सी ड्रेस पहनी है और मुझे आपने डॉक्टर की ड्रेस क्यों पहनाई ?
पिताजी बड़े विनम्र स्वभाव से बोले बेटा आपसे मैं एक प्रश्न पूछूं ?
डॉक्टर की ड्रेस पहना बच्चा: जी पिताजी
बेटा जब तुम बीमार होते हो तब हम तुम्हारा इलाज करवाने कहां जाते हैं ?
बच्चे ने जवाब दिया: डॉक्टर के पास।

पिता ने बच्चे से कहा बेटा जब हम सब बीमार होते हैं तो डॉक्टर के पास जाते हैं ना कि किसी धार्मिक स्थलों या मंदिर, मस्जिद, चर्च में।
इन बच्चों ने कृष्ण की ड्रेस पहनी है, जो कि एक कल्पना और मिथ्या है ?
बच्चे ने पूछा: वो कैसे ?
पिता ने समझया: अगर सच में धार्मिक स्थलों या मंदिर, मस्जिद, चर्च में ईश्वर होते, तो हम अपना इलाज धार्मिक स्थलों पर जाकर मंदिर, मस्जिद और चर्च में बैठेदे वी-देवता से करवाते न कि किसी डॉक्टर से।
इसीलिए मैंने तुम्हें डॉक्टर की ड्रेस पहनाई है ताकि तुम भी बड़े होकर डॉक्टर बनकर किसी की जान बचा सको। इतना कहकर पिता अपने बच्चे को विद्यालय में छोड़कर ऑफिस चले जाते हैं।

डॉक्टर की ड्रेस पहने बच्चा स्कूल के अंदर गया। विद्यालय प्रांगण में लगे स्टेज पर अध्यापक प्रत्येक बच्चे को एक-एक करके अपनी बात कहने के लिए स्टेज पर बुला रहे थे।
डॉक्टर की ड्रेस पहना बच्चा जब स्टेज पर पहुंचा तब सभी विद्यार्थी और अध्यापक जोर-जोर से हंसने लगे, बच्चे पर हंसते-हंसते अध्यापक ने कहा बेटा आपने डॉक्टर की ड्रेस क्यों पहनी है?
आज तो कृष्ण जन्माष्टमी है आपको कृष्ण के कपड़े पहनने चाहिए थे ?
बच्चे ने असाधारण सा जवाब दिया: टीचर जब मेरे पिताजी बीमार होंगे तब मैं डॉक्टर बनकर अपने पिता जी का इलाज कर सकता हूं। मेरे पिताजी का इलाज करने कृष्ण नहीं आएंगे।

बच्चे का जवाब सुनकर पूरे विद्यालय प्रांगण में सन्नाटा सा छा गया। पीछे बैठे एक बुजुर्ग व्यक्ति ने ताली बजाई तो पूरा प्रांगण तालियों की आवाज से गूंज उठा और बच्चे पर हंसने वाले अध्यापकों के पास शर्मिंदगी के अलावा कुछ ना था।

बच्चे तो अबोध होते है, उन्हें सही गलत और सच झूठ का उतना ज्ञान नहीं होता है। हमारे बच्चों का जीवन हम स्वयं ही गलत राह पर मोड़ते है। क्योंकि हम अपने बच्चों को वास्तविक जीवन जीना कभी सिखाते ही नहीं। बच्चों को केवल और केवल कल्पना, मिथ्या और चमत्कार ही दिखाते और सिखाते हैं।
आप अपने बच्चों को वास्तविक जीवन जीने की कला सिखाएं ना की काल्पनिक और मिथ्या।
       ना आस्तिक बनो, ना नास्तिक बनो,
                बल्कि वास्तविक बनो
 अंधविश्वास और पाखंड मिटाओ वैज्ञानिक सोच अपनाओ ।

~ डगराराम पँवार “नवनीत्”
प्रदेश अध्यक्ष, राष्टीय दलित साहित्य अकादमी, राजस्थान
सम्पर्क- 94146 08534

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