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किसानों के मसीहा थे छोटूराम, सरदार पटेल ने उनके बारे में कही थी ये खास बात…

चौधरी सर छोटूराम जी का जन्म 24 नवंबर, 1881 में झज्जर, हरियाणा के एक छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था. उन्हें ब्रिटिश शासन में किसानों के अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने के लिए जाना जाता था.

वे पंजाब प्रांत के सम्मानित नेताओं में से थे और उन्होंने 1937 के प्रांतीय विधानसभा चुनावों के बाद अपने विकास मंत्री के रूप में कार्य किया. उन्हें नैतिक साहस की मिसाल और किसानों का मसीहा माना जाता था. उन्हें दीनबंधू भी कहा जाता है.

उनका असली नाम रिछपाल था और वो घर में सबसे छोटे थे, इसलिए उनका नाम छोटू राम पड़ गया. उन्होंने अपने गांव से पढ़ाई करने के बाद दिल्ली में स्कूली शिक्षा ली और सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया. साथ ही अखबार में काम करने से लेकर वकालत भी की.

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कहा जाता है कि सर छोटूराम बहुत ही साधारण जीवन जीते थे. और वे अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा रोहतक के एक स्कूल को दान कर दिया करते थे. वकालत करने के साथ ही उन्होंने 1912 में जाट सभा का गठन किया और प्रथम विश्व युद्ध में उन्होंने रोहतक के 22 हजार से ज्यादा सैनिकों को सेना में भर्ती करवाया.

1916 में जब रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ तो वो इसके अध्यक्ष बने. लेकिन बाद में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से असहमत होकर इससे अलग हो गए. उनका कहना था कि इसमें किसानों का फायदा नहीं था. उन्होंने यूनियनिस्ट पार्टी का गठन किया और 1937 के प्रोवेंशियल असेंबली चुनावों में उनकी पार्टी को जीत मिली थी और वो विकास व राजस्व मंत्री बने.

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चौधरी सर छोटूराम जी का योगदान

साहूकार पंजीकरण एक्ट (1934)– यह कानून 2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ था. इसके अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज़ नहीं दे पाएगा और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर पायेगा. इस अधिनियम के कारण साहूकारों की एक फौज पर अंकुश लग गया.

गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट (1938)– यह कानून 9 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ. इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थी तथा 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वो सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं. इस कानून के तहत केवल एक सादे कागज पर जिलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था. इस कानून में अगर मूलराशि का दोगुणा धन साहूकार प्राप्‍त कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया.

कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम(1938)– यह अधिनियम 5 मई 1939 से प्रभावी माना गया. इसके तहत नोटिफाइड एरिया में मार्किट कमेटियों का गठन किया गया. एक कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार किसानों को अपनी फसल का मूल्य एक रुपये में से 60 पैसे ही मिल पाता था. अनेक कटौतियों का सामना किसानों को करना पड़ता था. आढ़त, तुलाई, रोलाई, मुनीमी, पल्लेदारी और कितनी ही कटौतियां होती थीं. इस अधिनियम के तहत किसानों को उसकी फसल का उचित मूल्य दिलवाने का नियम बना. आढ़तियों के शोषण से किसानों को निजात इसी अधिनियम ने दिलवाई.

व्यवसाय श्रमिक अधिनियम (1940)– यह अधिनियम 11 जून 1940 को लागू हुआ. बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाए जाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई. सप्‍ताह में 61 घंटे, एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकेगा. वर्ष भर में 14 छुट्टियां दी जाएंगी. 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जाएगी. दुकान व व्यवसायिक संस्थान रविवार को बंद रहेंगे. छोटी-छोटी गलतियों पर वेतन नहीं काटा जाएगा. जुर्माने की राशि श्रमिक कल्याण के लिए ही प्रयोग हो पाएगी. इन सबकी जांच एक श्रम निरीक्षक द्वारा समय-समय पर की जाया करेगी.

कर्जा माफी अधिनियम(1934) – यह क्रान्तिकारी ऐतिहासिक अधिनियम दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने 8 अप्रैल 1935 में किसान व मजदूर को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए बनवाया. इस कानून के तहत अगर कर्जे का दुगुना पैसा दिया जा चुका है तो ऋणी ऋण-मुक्त समझा जाएगा. इस अधिनियम के तहत कर्जा माफी (रीकैन्सिलेशन) बोर्ड बनाए गए जिसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते थे. दाम दुप्पटा का नियम लागू किया गया. इसके अनुसार दुधारू पशु, बछड़ा, ऊंट, रेहड़ा, घेर, गितवाड़ आदि आजीविका के साधनों की नीलामी नहीं की जाएगी.

मोर के शिकार पर पाबंदी – चौधरी छोटूराम ने भ्रष्ट सरकारी अफसरों और सूदखोर महाजनों के शोषण के खिलाफ अनेक लेख लिखे. कोर्ट मे उनके विरुद्ध मुकदमें लड़े व जीते. मोर बचाओ ‘ठग्गी के बाजार की सैर’, ‘बेचार जमींदार, ‘जाट नौजवानों के लिए जिन्दगी के नुस्खे’ और ‘पाकिस्तान’ आदि लेखों द्वारा किसानों में राजनैतिक चेतना, स्वाभिमानी भावना तथा देशभक्ति की भावना पैदा करने का प्रयास किया.

भाखड़ा बांध – सर छोटूराम ने ही भाखड़ा बांध का प्रस्ताव रखा था. सतलुज के पानी का अधिकार बिलासपुर के राजा का था. झज्जर के महान सपूत ने बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.

मृत्यु: छोटू राम की मृत्यु 9 जनवरी 1945 को हुई।

लेखक- हरीराम जाट
नसीराबाद, अजमेर (राज.) मो.- 9461376979

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