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‘प्रकृति ही ईश्वर है- तथागत गौतम बुद्ध’
यों तो कण-कण में भगवान बुद्ध समाहित है। विश्व के हर कोने में उनके पावन पद चिन्ह आज भी प्राणी मात्र को अपनी उपस्थिति का अहसास करवाते हैं। समुद्र की गहराई, पर्वत, पहाड़ों, नदियों झीलों, खेत-खलिहानों, झुग्गी झोपड़ियों व शहरों से लेकर बौद्ध विहारों तक चारों तरफ बुद्ध ही बुद्ध है। बुद्धाब्द 2568 वैशाख शुक्ला पूर्णिमा को प्रारम्भ होगा।
तथागत बुद्ध संक्षिप्त परिचय-
1. जन्म: भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व नेपाल के कपिलवस्तु गणराज्य के लुम्बिनी वन में हुआ था। इनका बचपन का नाम राजकुमार सिद्धार्थ था तथा इनकी माताजी का नाम महा माया व पिताजी का नाम शुद्धोधन था जो कि शाक्य वंश के थे। वे कपिलवस्तु के शासक थे। जन्म के सात दिन बाद ही तथागत बुद्ध की माताजी का निर्वाण हो गया था। उसकी मौसी गौतमी ने ही उनका लालन पालन किया था। जिस कारण उनका नाम गौतम पड़ा। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा के साथ हुआ और उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम राहुल था।
2. बुद्ध का गृह त्याग: तथागत बुद्ध बचपन से ही सांसारिक जीवन से मुक्त होना चाहते थे और अपने जीवन का कल्याण करना चाहते थे। वे शासन-प्रशासन एवं भौतिक सुख सुविधाओं से विरक्त होना चाहते थे। अतः उन्होंने 29 वर्ष की अल्पायु में ही बिना किसी को बताए गृह त्याग दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े।
3. ज्ञान की प्राप्ति: गौतम बुद्ध हिमालय की तराइयों एवं वादियों को पार करते हुए भारत देश के बिहार प्रान्त में बोध गया आए तथा यहाँ पर उन्होंने सघन वनों के बीच स्वछंद वातावरण में पीपल के पेड़ (बोधि वृक्ष) के नीचे ज्ञान की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की और उन्हें 49 वें दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई।
4. प्रथम धम्मोपदेश: तथागत बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हो जाने के बाद वे तीर्थाटन को निकले और सर्व प्रथम उन्होंने सारनाथ में पांच भिक्खुओं (कौण्डिल्य, वप्प, भददीय, अस्सजी व महानाम) को अपना पहला ज्ञानोपदेश दिया। इतिहास में उसे धम्म चक्र प्रवर्तन कहते हैं। उनका उपदेश बहुजन हिताय,बहुजन सुखाय की भावना पर आधारित था। इसी दिन गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्य का उद्घोष भी किया था। उसके बाद राजगीर व श्रावस्ती में उपदेश दिए।
5. चार आर्य सत्य: (१) दुःख- संसार में दुःख है।, (२) दुःख समुदाय/दुःखों का कारण- दुःख के कारण है।, (३) दुःख का निदान/निरोध- दुःखों का निवारण है।, (४) दुःख का मार्ग- अष्टांगिक मार्ग है।
6. अष्टांगिक मार्ग: तथागत गौतम बुद्ध ने दुःखों से मुक्ति पाने के लिए अष्टांगिक मार्ग अपनाने को कहा है। जो बुद्ध के आठ नियम भी कहा जाता है-
(१) सम्यक दृष्टि, (२) सम्यक संकल्प, (३) सम्यक वचन, (४) सम्यक कर्म, (५) सम्यक आजीविका,(६) सम्यक व्यायाम, (७) सम्यक स्मृति, (८) सम्यक समाधि।
इस मार्ग के प्रथम दो अंग प्रज्ञा के और अंतिम तीन समाधि के है। बीच के तीन अंग शील के हैं। इस तरह प्रज्ञा, शील और समाधि इन तीनों में आठों अंगों सन्निवेश हो जाता है।
7. पंचशील: बुद्ध के पंचशील सिद्धांतों का व्यवहारिक जीवन में विशेष महत्व है। इसी से व्यक्ति के व्यक्तित्व का आभास होता है। जो निम्न प्रकार है- (१) हिंसा नहीं करना, (२) चोरी नहीं करना, (३) व्यभिचार नहीं करना, (४) झूठ नहीं बोलना तथा (५) नशा नहीं करना है। इन्हीं पंचशील सिद्धांतों से बौद्ध धम्म ध्वज का निर्माण किया गया है जिसे पंचशील ध्वज कहते हैं। इस ध्वज में पांच रंग क्रमशः नीला, पीला, लाल, सफेद और कषाय है।
8. त्रिपिटक: इसमें में बौद्ध धम्म के नियम, शिक्षाएं व टिप्पणियों हैं जो क्रमशः निम्न है- (१) विनय पिटक- इसमें बौद्ध भिक्षुओं के लिए नियम है,(२) सुत्त पिटक-इसमें बुद्ध का धम्म और शिक्षाएं हैं, (३) अभिधम्म पिटक- इसमें धम्म पर टिप्पणियों आदि हैं।
9. बौद्ध धम्म में आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व: वैसे तो बौद्ध धम्म में पूर्णिमा, अमावश्या आदि तिथियां का महत्व है लेकिन कहा जाता है कि वैशाख शुक्ल पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। क्योंकि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। (528 ईसवी पूर्व 35 वर्ष की आयु में) और इसी दिन उनका महा परिनिर्वाण (483 ईसवी पूर्व 80 वर्ष की आयु में) हुआ था। इसीलिए इसे त्रिविध पावनी बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है।
10. बुद्ध की शिक्षा: बुद्ध कहते हैं कि- (१) झूठ बोलने का मतलब है कि सत्य को छिपाना, समाज में अशांति फैलाना तथा जानबूझकर दूसरों का अहित करना। अगर आपके द्वारा कही गई बात से सत्य छिपता है, समाज में अशांति फैलती है और दूसरों का अहित होता है तो हमेशा सत्य मार्ग पर चलना होगा।
(२) प्रकृति ही ईश्वर है, विज्ञान ही सत्य है, इंसानियत ही धर्म है, कर्म ही पूजा है, मानवता ही श्रेष्ठ धर्म है तथा मानव व प्राणी मात्र की मदद ही सर्वोच्च सेवा है।
(३) सूर्य, चन्द्र और सत्य यह चीजें कभी नहीं छिप सकती है।
(४) जीवन में हजारों लड़ाइयों जीतने से अच्छा है कि तुम स्वयं पर विजय प्राप्त कर लो, फिर जीत हमेशा तुम्हारी ही होगी। इसे तुमसे कोई नहीं छीन सकता है।
(५) भवतु सब्ब मंगल अर्थात सबका कल्याण हो, सबका मंगल हो, सभी प्राणी सुखी हो।
11.बुद्ध का अंतिम उपदेश: तथागत गौतम बुद्ध का अंतिम उपदेश अप्प दीप्पो भवः अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो। बौद्ध धम्म के ग्रन्थ पाली लिपि में लिखे गए हैं।
12. बुद्ध की शरण में जाने का मार्ग: बुद्ध की शरण में जाने का बहुत आसान तरीका है जो सहज व सुलभ है।
बुद्धम शरणम गच्छामि:
संघम शरणम गच्छामि:
धम्मम शरणम गच्छामि:
13. उपसंहार: दया और करुणा के सागर भगवान बुद्ध ने ईश्वर के अस्तित्व को ठुकराकर अनीश्वरवादी दृष्टिकोण को अपनाया और मानव को पाखण्ड व अंधविश्वास से मुक्ति दिलाई। उन्होंने वर्ण व्यवस्था व जाति प्रथा का भी खंडन किया। भारत देश ही नहीं अपितु विश्व के बहुत से देशों ने बौद्ध धम्म को अपनाया। क्योंकि यह सत्य और अहिंसा पर आधारित है और प्रकृति व वैज्ञानिक आधार पर खरा उतरने वाला है। जो दया, करुणा, समानता, बन्धुता का संदेश देता है। जिसमें विश्व कल्याण की भावना है। सन्त शिरोमणि गुरु रविदास जी महाराज, सन्त कबीर, गुरु नानक, संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर आदि सैंकड़ों सन्तों एवं महापुरुषों ने बौद्ध धम्म एवं दर्शन को आत्मसात किया है।
तथागत गौतम बुद्ध के 2568 वे जन्मोत्सव एवं बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक बधाई एवं मङ्गल कामनाएं।
लेखक- मास्टर भोमाराम बोस
प्रदेश महामंत्री (संगठन): भारतीय दलित साहित्य अकादमी, राजस्थान प्रदेश
सम्पर्क- 98292 36009