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पीपल पूर्णिमा अर्थात बुद्ध पूर्णिमा :
पीपल मतलब बोधि वृक्ष और तथागत बुद्ध का सम्बंध

        जब बुद्ध को भारतीय समाज अपना शास्ता मान चुका था, तब से बुद्ध से जुड़ी हुई हर एक वस्तु भारतीय समाज में पूजनीय हो गई थी।
जब राजकुमार सिद्धार्थ को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ तो उस दिन के बाद सिद्धार्थ बुद्ध हो गए और सभी पीपल के पेड़  बोधि-वृक्ष हो गए,,, और आज भी परम्परागत रूप से पीपल के पेड़ को पूजा जाता है।
आज भी कोई उसे काटना, उखाड़ना पसंद नहीं करता है।

कालांतर में जब बुद्ध के धम्म को खत्म कर दिया गया तो भी सभी जातियों की औरतें पीपल को धागा बांधकर पीपल को प्रणाम करती है, यद्यपि उनको नहीं पता कि इस दिवस को पूजने का इतिहास क्या है। लेकिन परंपरा चली आ रही है। इस पूजा का आधार पीपल और तथागत बुद्ध ही है।
इसी प्रकार सुजाता की पायस (खीर) भी बुद्ध के कारण प्रसिद्ध हुई।

यदि उस समय सुजाता नाम की स्त्री सिद्धार्थ को जंगल में नहीं मिलती और मुरझाए हुए सिद्धार्थ को खीर नहीं खिलाती,,, पानी नहीं पिलाती तो हो सकता है कि सिद्धार्थ का वो दिन अंतिम दिन ही होता।
परन्तु खीर खाने के बाद सिद्धार्थ को एहसास हुआ कि यदि यह औरत थोड़ी देर और नहीं आती,,,, मुझे नहीं संभालती,,,  मुझे भोजन नहीं देती तो अनर्थ हो सकता था। पायस खाकर शरीर में जान आई और सिद्धार्थ,,,,,, बुद्ध हो गए।
जो लोग बुद्ध को नहीं जानते वह आज की बुद्ध पूर्णिमा को पीपल पूर्णिमा के नाम से पूजते हैं,,, जानते हैं और नमन करते हैं। आज विश्व में भारत का नाम तथागत बुद्ध व उनकी शिक्षा के कारण मर्यादा व गौरव के साथ लिया जाता है। बुद्ध व बुद्ध की शिक्षा ने संसार की मानवता को बड़ा ऊंचा उठाया है।

~ एलआर बीबान, बीकानेर

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